कोलोन कैंसर से दुनिया के चहेते सितारे और हॉलीवुड फिल्म ब्लैक पैंथर के लीड एक्टर की आज मौत हो गई। एक्टर लंबे समय से कोलोन कैंसर से जूझ रहे थे। आखिर ये कोलोन कैंसर है क्या। कितना खतरनाक है और क्या इसका इलाज है? जानिए इससे जुड़ी हर बात।
कोलोन यानी कोलोरेक्टल कैंसर
इसे कोलोन कैंसर या रेक्टल कैंसर भी कहा जाता है। कोलोरेक्टल कैंसर कोलोन और मलाशय का कैंसर है, जो कोलन और मलाशय के अस्तर में पॉलिप्स के विकास के साथ शुरू होता है। इसे कोलोन कैंसर या रेक्टल कैंसर भी कहा जाता है। कोलोन उर और मलाशय बड़ी अंत के भाग हैं। ये पाचन तंत्र का सबसे निचला भाग होता है।
कोलोन इन्फेक्शन से कैंसर तक की कहानी
आंत के इस कैंसर की शुरुआत इन्फेक्शन से होती है. अक्सर हम इसपर अधिक ध्यान नहीं देते। अक्सर जब हम अपने दिनचर्या के विपरीत कुछ खा लेते हैं या कुछ ऐसा खाते हैं जो नहीं पचता। पाचन क्रिया के दौरान कई तरह के मलाशय में कई तरह के केमिकल बन जाते हैं, जो आगे चलकर इन्फेक्शन यानी संक्रमण का कारण बनते हैं। इसी पर ध्यान नहीं देने पर आगे चलकर ये कैंसर का रूप ले लेता है।
सेहत के दुश्मन और कोलोन कैंसर के दोस्त हैं ये चीजें
कोलोन कैंसर कई चीजों से होता है। कई अध्ययन से पता चला है कि कोलोन कैंसर का कारण गलत खानपान, बहुत अधिक मांसाहार, कम फाइबर वाली चीजें, इसके होने का मुख्य कारण होती हैं। कई शोध में पाया गया है कि कोलोन कैंसर का कारण धूम्रपान भी है।
क्या कोलोन कैंसर से बचाव संभव है ?
हर बीमारी का इलाज है, बस समय सही होना चाहिए। विशेषज्ञों की मानें तो 50 साल की उम्र के बाद कोलोन कैंसर की जांच हमेशा करवाते रहने से इसके होने से पहले इसकी जानकारी मिल जाती है, इससे इलाज करना आसान हो जाता है। मरीज का इलाज हो सकता है। पारिवारिक इतिहास होने और अगर पहले से ही इससे जूझ रहे हैं और कैंसर का आखिरी स्टेज है तो बचाव में परेशानी हो सकती है। उम्र बढ़ने के साथ ही इस कैंसर का खतरा भी बढ़ जाता है।
क्यों भारत में कोलोन कैंसर के आंकड़ें कम हैं ?
भारत में कोलोरेक्टल कैंसर के आंकड़ें पश्चिमी देशों की तुलना में कम है। पश्चिमी देशों में कोलोन कैंसर से अधिक लोग पीड़ित होते हैं और मौत का आंकड़ा भी अधिक है। मलाशय कैंसर होने की औसत आयु चालीस साल से पैंतालिस साल के मध्य की है। यही वो उम्र है जब कोलोन कैंसर अधिक होता है। कैंसर शब्द ही ऐसा है जो आपको पहले ही डरा देता है, आपका मनोबल तोड़ देता है, लेकिन हकीकत तो ये है कि सबकुछ जानते हुए भी लोग अपने खानपान और दिनचर्या में बदलाव नहीं करते। समय रहते ही संभल जाएं। इस तरह की बीमारियों को अपने घर के मेन डोर से बाहर रखें।