नई दिल्ली : देश में कोरोना वायरस संक्रमण के मामले 76.51 लाख को पार कर चुके हैं, जबकि अब तक 1.15 लाख से अधिक लोग इस घातक बीमारी से जान गंवा चुके हैं। इस बीच लोगों में यह अवधारणा भी पनपती जा रही है कि एक बार संक्रमण से उबरने के बाद ऐसे लोगों के दोबारा संक्रमित होने की संभावना नहीं रहती और इसलिए वे इस बीमारी के रोकथाम को लेकर जरूरी एहतियातों के पालन में भी कई बार लापरवाही करते दिखाई पड़ जाते हैं। लेकिन इस संबंध में आईसीएम की चेतावनी गंभीर है, जिसे समझने और गंभीरता से लेने की जरूरत है।
आईसीएमआर की चेतावनी कोरोना वायरस संक्रमण के री-इंफेक्शन के संदर्भ में और भी महत्वपूर्ण हो जाती है। देश में ऐसे मामले सामने आ रहे हैं, जिनमें एक बार ठीक होने के बाद भी ऐसे लोगों के दोबारा संक्रमित होने की रिपोर्ट सामने आ रही है। आईसीएमआर के मुताबिक, अगर वायरस से ठीक होने वाले किसी व्यक्ति में पांच महीनों में एंटीबॉडी कम हो जाती है, तो उसे फिर से कोरोना वायरस से संक्रमित होने का खतरा होता है।
सीडीसी के मुताबिक, अगर कोई व्यक्ति 90 दिन के बाद फिर से संक्रमित हो जाता है तो इसे री-इंफेक्शन यानी व्यक्ति का दोबारा इस घातक बीमारी की चपेट में आना कहा जाता है। कोरोना से एक बार संक्रमित हो जाने के बाद किसी व्यक्ति के शरीर में एंटीबॉडी कितने दिनों तक रहता है, इस बारे में आईसीएमआर के निदेशक बलराम भार्गव का कहते हैं, कुछ अध्ययन के मुताबिक, एंटी बॉडी तीन महीने तक शरीर में रहता है, जबकि कुछ के मुताबिक, यह पांच महीने तक संबंधित व्यक्ति के शरीर में रहता है।
संक्रमण से बचाव के लिए मास्क पहनने पर जोर देते हुए भार्गव ने यह भी कहा कि अगर कोई व्यक्ति कोविड-19 से पहले संक्रमित हो चुका है तो इसका अर्थ यह कतई नहीं समझा जाना चाहिए कि अब उसे कभी संक्रमण नहीं हो सकता। अन्य लोगों की तरह उसे भी सावधानी रखने की जरूरत है। इस संबंध में 'द लैंसेट' में प्रकाशित एक अध्ययन को समझने की जरूरत है, जिसमें कहा गया है कि दूसरी बार संक्रमित होने पर कोरोना के मरीजों में अधिक गंभीर लक्षण महसूस हो सकते हैं और एक बार संक्रमित हो जाने के बाद इम्युनिटी को लेकर कोई गारंटी नहीं दी जा सकती।
आईसीएमआर के मुताबिक, री-इंफेक्शन के मामलों की पहचान करने में 90 से 100 दिन का समय लग सकता है। हालांकि डब्ल्यूएचओ ने इसे लेकर अभी दिनों की संख्या तय नहीं की है, पर इसे लगभग 100 दिनों का माना जा रहा है।