Coronavirus effect: कोरोना से ठीक होने के बाद भी है खतरा! स्वस्थ होने के बाद भी इन अंगों पर संक्रमण का असर

हेल्थ
आईएएनएस
Updated Aug 31, 2020 | 19:39 IST

Coronavirus effect on body parts: कोरोना वायरस से ठीक होने के बाद भी कुछ लोगों को संक्रमण की तकलीफ बनी रहती है। ऐसा देखने में आया है और कुछ रिपोर्ट इस बात की तस्दीक करते हैं।

Coronavirus effect on Body
शरीर के अंगों पर कोरोना वायरस का प्रभाव। 
मुख्य बातें
  • कोरोनावायरस से ठीक हो रहे लोगों में से अधिकांश के दिल, फेफड़े और नर्वस सिस्टम पर संक्रमण का असर
  • दुनिया भर में कोरोना से संक्रमित लोगों की संख्या करोड़ों में होने वाली है
  • एक रिपोर्ट के मुताबिक कोरोना के इलाज के बाद 55 फीसद रोगियों में नर्वस सिस्टम की शिकायतें मिलीं हैं

लखनऊ: मेडिसिनल केमेस्ट्री के मशहूर वैज्ञानिक प्रो. राम शंकर उपाध्याय का मानना है कि कोरोनावायरस से ठीक हो रहे लोगों में से अधिकांश के दिल, फेफड़े और नर्वस सिस्टम पर संक्रमण का असर दिख रहा है। उन्होंने कहा कि संक्रमित लोगों के स्वस्थ होने के बाद भी शरीर के अंगों पर कोराना का प्रभाव दिखाई देना चिंता का विषय है। इसके बारे में भी सोचना होगा।

प्रो़ उपाध्याय ने कहा कि दुनिया भर में कोरोना से संक्रमित लोगों की संख्या करोड़ों में होने वाली है। उन्होंने बताया कि लैनसेट में हाल में प्रकाशित एक रिपोर्ट के मुताबिक कोरोना के इलाज के बाद 55 फीसद रोगियों में नर्वस सिस्टम की शिकायतें मिलीं हैं। इसी तरह जर्मनी में हुए एक अध्ययन में संक्रमण से बचने वाले 75 फीसद लोगों के दिल की संरचना में बदलाव दिखा। ऐसे में यह जानना बेहद जरूरी है कि इसका संबंधित लोगों पर भविष्य में क्या असर होगा। इसका असर कैसे न्यूनतम किया जाए, इस पर भी फोकस करने की जरूरत है। साथ ही यह मानकर भी काम करना होगा कि कोविड-19 अंतिम नहीं है। आगे भी ऐसे हालात आ सकते हैं। तैयारियां इसके मद्देनजर भी होनी चाहिए।

कारगर दवा की तलाश करनी होगी तेज

कोरोना के बचाव और इलाज के बारे में पूछने पर मेडिसिनल केमेस्ट्री के वैज्ञानिक ने कहा कि इस रोग के लिए टीका और स्पेसिफिक दवा के लिए जो काम हो रहा है उसके अलावा जरूरत इस बात की है कि पहले से मौजूद फार्मुलेशन के कंबीनेशन से संक्रमण रोकने और संक्रमण होने पर कारगर दवा की तलाश को और तेज किया जाय। उन्होंने बताया कि अब तक कैंसर की करीब 15 दवा और दर्जन भर एंटी इन्फ्लेमेटरी दवाएं कोविड के लक्षणों के इलाज में उपयोगी पायी गई हैं। इन पर और काम करने की जरूरत है।

भारत की दवा इंडस्ट्री के बारे में उन्होंने कहा, जिन ऐक्टिव फार्मास्यूटिकल इंग्रेडिएंट्स (एपीआई) से दवाएं बनती हैं, वे 75 से 80 फीसद तक चीन से आती हैं। कुछ तो 100 फीसद। मैं चाहता हूं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आत्मनिर्भर भारत के सपने को साकार करने के लिए ये एपीआई भारत में ही बनें। इनकी मात्रा भरपूर हो ताकि इनसे तैयार दवाओं के दाम भी वाजिब हों। चूंकि मैं उत्तर प्रदेश का हूं। लिहाजा ऐसा कुछ करने की पहली प्राथमिकता उप्र ही रहेगी। इसके लिए प्रारंभिक स्तर पर सरकार से बातचीत भी जारी है।

यूपी में आगरा के मूल निवासी प्रो़ उपाध्याय लेक्साई लाइफ साइंसेज प्राइवेट लिमिटेड हैदराबाद के सीईओ (मुख्य कार्यकारी अधिकारी) और अमेरिका के ओम अन्कोलजी के मुख्य वैज्ञानिक हैं। एक दशक से अधिक समय तक वह स्वीडन (स्टकहोम) के उपशाला विश्वविद्यालय में असिस्टेंट प्रोफेसर रहे हैं। इसके अलावा वह मैक्स प्लैंक जर्मनी (बर्लिन) और मेडिसिनल रिसर्च कउंसिल ब्रिटेन (लंदन), रैनबैक्सी, ल्यूपिन जैसी नामचीन संस्थाओं में भी काम कर चुके हैं। कई जरूरी दवाओं की खोज में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका रही है। इनमें से करीब 20 पेटेंट हो चुकी हैं। अंतरराष्ट्रीय पत्रिकाओं में उनके दो दर्जन से अधिक शोधपत्र प्रकाशित हो चुके हैं। वह लेक्साई और सीएसआईआर (कउंसिल अफ साइंटिफि क एंड इंडस्ट्री रिसर्च) से मिलकर कोविड की दवा खोजने पर भी काम कर रहे हैं। फि लहाल अमेरिका, यूरोप एवं स्कैंडिनेवियन देशों में कंपनी के विस्तार के लिए वह स्टकहोम में रह रहे हैं। वह अपने राज्य उत्तर प्रदेश के लिए भी कुछ करना चाहते हैं।
 

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