इंसानों के चार प्रकार के ब्लड ग्रुप्स होते हैं- ए(A), बी(B), एबी(AB) और ओ(O) । डेली लाइफ में हमारा हमारे ब्लड ग्रुप से उतना कोई खास वास्ता नहीं पड़ता लेकिन जब हमें किसी को ब्लड डोनेट करना होता है तब हमें इससे वास्ता पड़ता है। हालांकि कुछ शोध रिपोर्ट में ये सामने आया है कि अलग-अलग ब्लड ग्रुप के लोगों पर कोरोना वायरस का अलग-अलग प्रकार से असर पड़ता है।
एक रिपोर्ट में ये दावा किया गया था कि ए ब्लड ग्रुप के लोगों को कोरोना वायरस के संक्रमण का खतरा ज्यादा रहता है, उनमें कोरोना के लक्षण बड़े तेजी से बनते हैं। जबकि ओ ब्लड ग्रुप के लोगों में कोरोना वायरस के संक्रमण का खतरा सबसे कम होता है।
हाल ही में मैसाचुसेट्स जनरल हॉस्पीटल में इस बात पर एक शोध किया गया जिसमें इसका कोई सबूत नहीं पाया गया कि अगर किसी को कोरोना वायरस का संक्रमण हुआ है तो उसपर ब्लड ग्रुप की कोई भूमिका होती है। पिछले अन्य रिपोर्ट में इस बात का दावा भी किया गया था कि ब्लड ग्रुप का असर कैंसर जैसी बीमारियों और अन्य ऐसी ही घातक बीमारियों पर पड़ता है।
लोगों के अलग-अलग ब्लड ग्रुप क्यों होते हैं उनकी क्या भूमिका है इसका बड़े पैमाने पर कोई कारण अभी तक सामने नहीं आया है लेकिन ऐसा माना जाता है कि इनका सीधा अलर वायरस और बड़ी बीमारियों पर होता है। अलग-अलग प्रकार के ब्लड ग्रुप के लोगों पर किसी बीमारी या किसी वायरस का कितना असर पड़ता है अभी तक वैज्ञानिकों ने इसी बात का पता लगाया है। ब्लड ग्रुप का सबसे पहले पता ऑस्ट्रियन इम्योनलॉजिस्ट डॉ. कार्ल लैंडस्टेनर ने 1901 में लगाया गया था। इंसानों में ब्लड ग्रुप अनुवांशिक रुप से उनके माता-पिता से आता है।
ओबीओ ब्लड ग्रुप को एंटीबॉडीज माना जाता है जिनमें एंटीजेन्स पाया जाता है। जो रेड ब्लड सेल्स के उपर शुगर और प्रोटीन्स का कवर होता है उसे एंटीजेन्स कहा जाता है। अगर किसी का ए ब्लड ग्रुप है और उसे बी ब्लड ग्रुप चढ़ाया जाता है तो उसका एंटीबॉडीज उसे रिजेक्ट कर देगा। ब्लड सर्कुलेशन में दिक्कत आने लगेगी और इसका सीधा असर ब्लीडिंग और ब्रीदिंग पर पड़ने लगेगा। मरीज ऐसे में मर भी सकता है। लेकिन अगर उसे ए ब्लड ग्रुप या ओ ग्रुप का ब्लड चढ़ाया जाता है तो वह स्वस्थ रहेगा।
यूरोपियन रिसर्चर ने शोध में ये पता लगाया था कि ए ब्लड ग्रुप वाले लोगों को कोरोना वायरस के संक्रमण का खतरा 45 फीसदी तक होता है जबकि ओ ब्लड ग्रुप वालों को इसका खतरा उतना नहीं रहता है। सर्वे में 1900 लोग स्पेन और इटली गंभीर रुप से कोरोना संक्रमित पाए गए थे जबकि 2300 लोग स्वस्थ पाए गए थे।
हालांकि इन सभी दावों को फ्रेंच मेडिकल रिसर्च के रिसर्चर उतना सही नहीं ठहराते हैं। वे इनकी दो थ्योरी बताते हैं। उनका मानना है कि इसका कोई पक्का सबूत नहीं है कि कोविड और ब्लड ग्रुप का आपस में कोई संबंध है। उनका मानना है कि ऐसा माना जा सकता है कि ओ ब्लड ग्रुप वालों को कोरोना वायरस के संक्रमण का खतरा कम होता है जबकि अगर किसी ब्लड क्लॉटिंग हो गई हो तो उसे कोरोना वायरस के संक्रमण का खतरा ज्यादा हो जाता है।