Explainer: इलेक्ट्रॉनिक गैजेट्स बढ़ा रहे हैं 'आंखों में सूखापन' का खतरा, क्या है लक्षण और कैसे करें बचाव

लोग शिकायत करते हैं उनकी आंखें सूखी सूखी रहती हैं, अब सवाल यह है कि आखिर वो कौन सी वजह से है और उससे निपटने का उपाय क्या है।

eye dry syndrome, eye test, eye cataract, eye 7 hospital
इलेक्ट्रॉनिक उपकरण बढ़ा रहे हैं 'आंखों में सूखापन' का खतरा  

बीते कुछ महीनों के दौरान नेत्र विशेषज्ञों के पास 'ड्राय आई सिंड्रोम' यानी आंखों में सूखापन के पीड़ितों की संख्याा में इजाफा हुआ है। चिंता की बात यह है कि इसके पीड़ितों में सिर्फ युवा और वयस्क ही नहीं बल्कि स्कूलों में पढ़ रहे बच्चे भी शामिल हैं। आखिर बच्चों में ड्राय आई सिंड्रोम की समस्या बढ़ने की वजह क्या है? नेत्र विशेषज्ञ डॉक्टर राहिल चौधरी इसकी एक बड़ी वजह मोबाइल फोन, कम्प्यूटर, टेलीविजन जैसे इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों के साथ बच्चों का अपनी दिनचर्या का लंबा वक्त बिताना है। वैसे भी बीते दो सालों की बात करें तो कोरोना महामारी के कारण स्कूल बंद रहे और बच्चों ने इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों की मदद से ऑनलाइन क्लासेज कीं। उसी दौरान लॉकडाउन लगने की वजह से बच्चे घरों में ही रहे और सूरज की प्राकृतिक रोशनी से भी उनकी दूरी बनी। हालांकि इसमें कोई दो राय नहीं कि इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों ने सिर्फ बच्चों बल्कि बड़ों की आंखों को भी प्रभावित किया है। आखिर क्या है ड्राय आई सिंड्रोम और किन वजहों से हो सकती है यह समस्या जानते हैं। 

क्या है ड्राय आई सिंड्रोम 
हमारी आंखों में ​एक 'टियर फिल्म' यानी आंसुओं को परत होती है जो आंखों को नम बनाए रखने के साथ ही उसे सुरक्षा कवच भी प्रदान करती है। अगर यह टियर फिल्म क्षतिग्रस्त हो जाय या आंखों में कम आंसू बनें या फिर आंसुओं की गुणवत्ता प्रभावित हो जाए तो उस व्यक्ति को आंखों के सूखेपन की समस्या से ग्रसित माना जाता है। 

इन वजहों से होती है यह समस्या 
डॉक्टर राहिल चौधरी के मुताबिक ड्राय आई सिंड्रोम आम तौर पर बढ़ती उम्र के साथ होती है। जैसे—जैसे इंसान की उम्र बढ़ती है आंखों में आंसुओं का निर्माण कम होता है। इसके अलावा अगर कोई स्लोगरेन्स सिंड्रोम, रूमैटाइड आर्थराइटिस, कोलेजन वास्क्युलर डिजीज, ऑटोइम्यून डिसीज, थायरॉइड डिसआर्डर या विटामिन ए की कमी से पीड़ित हो तो उसके इस समस्या के प्रभाव में आने की आशंका बढ़ जाती है। महिलाओं की बात करें तो आंखों के मेकअप का बहुत अधिक इस्तेमाल करने वाली या फिर लंबे समय तक गर्भनिरोधक गोलियों का सेवन करने वाली महिलाओं में भी आंसुओं का सामान्य उत्पादन प्रभावित होता है। साथ ही गर्भावस्था के कारण हार्मोन परिवर्तनों और मीनोपॉज की स्थिति भी ड्राय आई सिंड्रोम का खतरा बढ़ जाता है। ड्राय आई सिंड्रोम के लिए कई बार मौसम भी जिम्मेदार बनता है। गर्मी के मौसम में चलने वाली लू तो वहीं सर्दी की ठंडी हवा भी आंखों के आंसुओं को प्रभावित करती है। इसके अलावा घर—ऑफिस में एयरकंडीशनर के नियंत्रित तापमान में लंबा समय बिताना, कम्प्यूटर पर लगातार कई घंटे काम करना, देर तक मोबाइल फोन या टेलीविजन स्क्रीन देखना साथ ही पलकों को निरंतर न झपकाने से भी यह समस्या पैदा होती है।

लक्षण 
इस समस्या के पीड़ित को आंखों में जलन, तेज दर्द, आंखों का लाल होना, आंखों या उसके आसपास चिपचिपे म्युकस का जमाव, रोशनी में आंखों का चौंधियाना, थोड़ा सा काम करने के बाद ही आंखों में थकान, कुछ पढ़ने या कम्प्यूटर पर काम करने में परेशानी का अनुभव होना महसूस होने लगता है। वहीं कुछ पीड़ितों को आंखों में किरकिरी व भारीपन महसूस होता है तो वहीं कई पीड़ितों की दृष्टि धुंधली पड़ने लग जाती है। अगर सही समय पर ड्राय आई सिंड्रोम का बचाव न किया जाय तो दृष्टता बाधित होने का खतरा रहता है साथ ही इसकी वजह से पीड़ित की आंखों का कॉर्निया भी प्रभावित हो सकता है। 

कैसे पहचानें लक्षण
इस समस्या की गंभीरता का पता लगाने के लिए कुछ जांच करवाई जाती हैं जिनमें शिर्मर व टियर ऑस्मोलैरिटी मुख्य हैं। किसी व्यक्ति की आंखें किस मात्रा में आंसुओं का निर्माण कर रही हैं उसका पता लगाने के लिए शिर्मर टेस्ट किया जाता हैं। वहीं टियर ऑस्मोलैरिटी टेस्ट के जरिये आंसुओं की संरचना परखी जाती है। सूखी आंखों की समस्या के पीड़ित के आंसुओं में पानी की मात्रा भी कम हो जाती है। ऐसे में जरूरत के मुताबिक आंसुओं की गुणवत्ता जांचने के लिए भी टेस्ट करवाए जाते हैं। 

निदान और उपचार 
ड्राय आई सिंड्रोम का उपचार, समस्या की गंभीरता के अनुसार तय किया जाता है। जिन लोगों को मामूली समस्या होती है उन्हें आंखों में डालने वाली दवाइयों से आराम मिल जाता है जबकि कुछ मामलों में विशेष तरह के कॉन्टेक्ट लेंस लगाने की सलाह दी जाती है। लेकिन गंभीर स्थिति में उपचार का तरीका बदला जाता है। इस स्थिति में नेत्र विशेषज्ञ कई बार ऑटोलोगस ब्लड सीरम ड्रॉप्स का विकल्प चुनते हैं जिसे खुद रोगी के ही रक्त से तैयार किया जाता है। कई मामलों में लैक्रिमल प्लग्स के जरिये आंखों के कोनों में होने वाली सूक्ष्म छिद्रों का बंद किया जाता है जो कि दर्दरहित प्रक्रिया होती है। डॉक्टर राहिल चौधरी के अनुसार नई तकनीकों के लिहाज से ड्राय आई के निदान के लिए मौजूदा समय में लिपि फ्लो विकल्प का भी इस्तेमाल किया जा रहा है। उपचार की इस प्रक्रिया में पलकों की धीरे से मालिश करके रोगी के दर्द को कम किया जाता है। लिपि फ्लो ट्रीटममेंट की एक प्रक्रिया करीब 15 से 20 मिनट में पूरी हो जाती है। साथ ही कुछ मामलों में आईपीएल अर्थात इंटेंस पल्स्ड लाइट ट्रीटमेंट का विकल्प अपनाया जाता है। हालांकि गर्भवती महिलाओं के अलावा संवेदनशील त्वचा वाले लोगों को इलाज के इस विकल्प से सामान्यतया दूर ही रखा जाता है। 

ऐसे करें बचाव  
न सिर्फ ड्राय आई सिंड्रोम बल्कि आंखों से जुड़ी कई दूसरी समस्याओं से बचाव के लिए भी जरूरी है कि आप अपनी पलकों को बार—बार झपकाएं। ऐसा करना तब और भी ज्यादा जरूरी हो जाता है जब आप एयरकंडीशंड माहौल में काम करते हों। ऐसे माहौल में शुष्कता भरी ठंडक रहती है इसलिए 15 से 30 मिनट काम करने के बाद कम से कम आधे मिनट तक के लिए अपनी आंखों को बंद कर लें, इससे आंखें नम रहेंगी। जहां काम कर रहे हों, वहां रोशनी की पर्याप्त व्यवस्था रखें। कम्प्यूटर स्क्रीन और आंखों के बीच कम से कम दो फुट की दूरी बनाएं। साथ ही सुनिश्चित करें कि कम्प्यूटर मॉनिटर को आप गर्दन उठाकर देखें, इससे आंखों पर कम दबाव पड़ेगा। आंखों को हवा और धूप से बचाने के लिए चश्मों का इस्तेमाल करें। साथ ही भोजन में विटामिन ए और ओमेगा—3 को पर्याप्त मात्रा में शामिल करें। ऐसा करके आप न सिर्फ ड्राय आई सिंड्रोम बल्कि नेत्र संबंधी कई दूसरी समस्याओं से भी खुद को बचा सकेंगे।

अगली खबर