नई दिल्ली : माना जाता है कि एक आम इंसान एक मिनट में एवरेज तौर पर 10 बार पलकें झपकाता है। वहीं अगर इससे ज्यादा बार पलकें झपकती हैं तो आई एक्सपर्ट इस पर तुरंत ध्यान देने की सलाह देते हैं। दरअसल, ये ब्लेफरोस्पाज्म बीमारी के लक्षण हो सकते हैं जिसमें बार-बार पलकें झपकती हैं। ऐसा करने से आंखों की मांसपेशियां सिकुड़ने लगती हैं और पलकों में दर्द भी रहता है।
विशेषज्ञों के मुताबिक, अगर इस बीमारी पर समय रहते ध्यान न दिया जाए तो नेत्रहीनता का खतरा तक हो सकता है। दरअसल ब्लेफरोस्पाज्म में मांसपेशियों की सिकुड़न के कारण पलकें पूरी तरह बंद हो सकती हैं, जिससे आंखें और नजरों के पूरी तरह सामान्य होने के बाद भी व्यावहारिक नेत्रहीनता उत्पन्न हो सकती है। आंखों के डॉक्टरों की मानें तो ब्लेफरोस्पाज्म में पलकों को उठाने में परेशानी होती है। वहीं आंखें सामान्य से ज्यादा छोटी दिखाई देती हैं और तनाव से सिर दर्द होने लगता है।
दिमाग पर भी हो सकता है असर
ब्लेफरोस्पाज्म बीमारी से व्यक्ति की एक या दोनों आंखें प्रभावित हो सकती हैं। एक्सपर्ट्स बताते हैं - कभी कभी इस समस्या से व्यक्ति के चेहरे की बनावट भी बदल जाती है, लेकिन उसके देखने की क्षमता प्रभावित नहीं होती। आगे चलकर यह समस्या मांसपेशियों, नसों, मस्तिष्क या आंखों को भी गंभीर रूप से प्रभावित कर सकती है।
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किस वजह से होता है ऐसा
शिशु की मांसपेशियों के विकास में समस्या आने से ऊपरी पलक में ब्लेफरोस्पाज्म हो जाता है। अगर पलक झपकने से बच्चे को देखने में परेशानी हो रही है, तो तुरंत सर्जरी करानी चाहिए नहीं तो आगे चलकर आंखों की रोशनी जा सकती है।
वहीं उम्र बढ़ने से ब्लेफरोस्पाज्म होना भी आम है। दरअसल उम्र बढ़ने से लीवेटर टिशू के पलकें उठाए रखने के काम में रुकावट आती है। इस उम्र में आमतौर पर दोनों आंखें प्रभावित हो जाती हैं।
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आंखों की एक्सरसाइज कर सकती है इलाज
इस बीमारी के इलाज के लिए हालांकि दवाओं पर ज्यादा निर्भर होने की बजाय आंखों की एक्सरसाइज ज्यादा प्रभावी है :
- दाएं हाथ के अंगूठे को सीधा तानकर रखते हुए अन्य अंगुलियों से मुट्ठी बंद कर लें। दाएं हाथ को कंधों की ऊंचाई तक सीधा सामने की ओर उठाकर रखें। अब दृष्टि को बिना पलक झपकाए अंगूठे पर केन्द्रित करें। ऐसा 5 बार करें।
- अब दाएं हाथ को सामने से हटाकर धीरे-धीरे दायीं ओर ले जाएं। उस समय दृष्टि भी अंगूठे पर केन्द्रित रखते हुए दांयी ओर ले जाएं। ध्यान रहे कि चेहरे को स्थिर रखते हुए केवल पलकों को ही दायीं ओर ले जाना है। यह क्रिया बांयी ओर भी करें।
- चेहरे को सामने की ओर स्थिर रखकर आंख की पुतलियों को ज्यादा से ज्यादा ऊपर की ओर ले जाएं। पुतलियों को तब तक ऊपर रखें, जब तक आंखों में जलन के साथ पानी न निकलने लगे। यह क्रिया नीचे, दायीं और बायीं ओर से भी करें।
नोट : इस बारे में खुद से राय न बनाएं। बल्कि किसी अच्छे डॉक्टर से संपर्क करें।
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