लीची क्या सेहत के लिए इतनी खतरनाक है कि उससे किसी की मौत हो सकती है। अगर ऐसा है तो लीची कोई नया फल नहीं है। इसे सदियों से लोग खाते आ रहे हैं लेकिन ऐसे तो कोई नहीं मरता। और अगर लीची जहरीली थी तो क्या सारे ही बच्चों ने जहरीली लीची खाई होगी? जबकि लीची में इतने गुण होते हैं कि इन्हें खाने से सेहत और बेहतर होनी चाहिए। यही नहीं कई बीमारियों का इलाज लीची में छुपा है तो आखिर ये लीची किसी कि मौत के लिए जिम्मेदार कैसे बन गई?
ऐसे प्रश्न आपके अंदर भी खूब उठ रहे होंगे। यही वजह है कि आज बिहार में हुई बच्चों की मौत और लीची के कनेक्शन के बारे में विस्तार से जानें और यह भी जाने की अगर लीची ही मौत के लिए जिम्मेदार बनी तो इसके पीछे क्या परिस्थितयां या वजह रही होगी।
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करंट की तरह चढ़ता है बुखार इसलिए नाम पड़ा चमकी
एक्यूट इंसेफेलाइटिस सिंड्रोम का नाम चमकी बुखार इसलिए पड़ा क्योंकि इसमें बच्चों के शरीर का तापमान अचानक से इतना बढ़ जाता था कि उनके शरीर में कंपन होने लगती थी। उन्हें झटके से लगते थे। यही कारण है के क्षेत्रीय लोगों ने इसे चमकी बुखार का नाम दे दिया लेकिन हालांकि ये एक्यूट इंसेफेलाइटिस सिंड्रोम ही है।
रिसर्च में लीची बन रही मौत का प्रमुख कारण
मुजफ्फरपुर में चमकी बुखार को एक रिसर्च में न्यूरोलॉजिकल बीमारी माना गया है। द लेनसेट ग्लोबल हेल्थ मेडिकल जनरल में छपी रिसर्च का दावा है कि इस बीमारी के पीछे लीची कारण है। रिसर्च में बच्चों की मौत की जांच के बाद यह पाया गया कि जिन बच्चों की मौत हुई उसके पीछे इंस्लोपैथी यानी दिमागी बुखार वजह थी
लेकिन इस वजह का कारण लीची ही बनी थी। क्योंकि क्योंकि जो भी बच्चे इस बीमारी के चपेट में आए थे उन्होंने रात में खाना नहीं खाया था और रात या अगले दिन खूब लीची खाई थी। इससे उन्हें हाइपोग्लैसीमिया का खतरा उत्पन्न हो गया। अचानक शुगर का स्तर कम होने और दिमाग पर बुखार चढ़ने से इनकी मौत बताई जा रही है।
तो लीची क्यों बनी खतरनाक
अब यह सोचने की बात है कि लीची को जहरीली नहीं थी और सेहत के लिए फायदेमंद भी होती है तो ये बच्चों की मौत का कारण क्यों और कैसे बन गई। दरअसल लीची में कोई दोष नहीं था। दिक्कत इसे खाने के तरीके से थी। बच्चों ने लंबे समय तक कुछ नहीं खाया था और वे बच्चे ज्यादातर कुपोषण के शिकार थे। लंबे समय बाद बच्चों ने ढेर सारी लीची खा ली और पानी भी नहीं पिया। इसे शरीर में सोडियम की मात्रा कम हो गई। क्योंकि बच्चे कुपोषण ग्रस्त थे इसलिए उनका शरीर स्वत: कमजोर था और ऐसे में जब शरीर में पानी की कमी के साथ हाइपोग्लैसीमिया का अटैक पड़ा था वह तुरंत दिमागी बुखार के चपेट में आ गए।
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अमेरिकन टीम ने माना था लीची में है कुछ खतरनाक
लीची में प्राकृतिक रूप से एक खतरनाक तत्व को अमेरिकन टीम ने जांच में होना पाया था। यह तत्व मिथाइलीनसाइक्लोप्रॉपिलग्लाइसीन है। टीम ने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि जो बच्चे बुखार से पीड़ित हुए थे वह एक दिन पहले लीची खाए थे और वह कुपोषित भी थे। छह साल पहले राज्य सरकार ने यह जांच करवाई थी और तब भी यही बात सामने आई थी कि लीची को खाली पेट खाना कुपोषित बच्चों के लिए खतरनाक साबित हो रहा है। क्योंकि इससे हाइपोग्लाइसीन ए का स्तर बच्चों में बढ़ जाता है।
इस साल इसलिए शिकार हुए बच्चे
2014 में भी यही बीमारी फैली थी लेकिन अमेरिकन टीम ने बीमारी के शिकार 74 फीसदी बच्चों को बचा लिया था। उन्होंने बीमार बच्चों की नसों में 10 फीसदी डेक्स्ट्रोज़ का डोज़ दे दिया जिससे उनकी जान बच गई। टीम ने सिफारिश की थी की खाली पेट लीची खाने से रोकने के लिए विशेष प्रचार –प्रसार किया जाए। खास कर कुपोषित बच्चों को खाली पेट सोने से बिलकुल मना किया गया था। ये प्रचार प्रसार कुछ एक साल तो चला लेकिन इस साल जानकारी के अभाव में वही हुआ जिसका डर था। द हिंदू में छपी रिपोर्ट की मानें तो इस साल राज्य सरकार और प्रशासन बचाव के लिए जागरूकता अभियान चलाने में फेल रहा है।
लीची में हैं बहुत विटामिन और मिनिरल्स
लीची विटामिन सी, बी कांप्लेक्स के साथ एंटिऑक्सीडेंट से भरा होता है। लीची आर्थराइटिस, अस्थमा, ब्लड प्रेशर के साथ दिल के लिए भी बहुत अच्छा होता है। इसमें मैंगनीज़, मैग्नीशियत, तांबा, आयरन खूब होता है।
तो याद रखें लीची फायदेमंद है, लेकिन इसे खाली पेट बिलकुल न खाएं। साथ ही इसे खाने के बाद खूब पानी भी पीएं और खाना भी खा लें।
डिस्क्लेमर: प्रस्तुत लेख में सुझाए गए टिप्स और सलाह केवल आम जानकारी के लिए हैं और इसे पेशेवर चिकित्सा सलाह के रूप में नहीं लिया जा सकता।
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