कोरोना संकट के दौर में भी जोखिम भरे सेक्स से परहेज नहीं, एसटीआई के मामले बढ़े, शोध में खुलासा  

संस्था ने सोशल आइसोलेशन उपायों का पालन करने वाले कोविड-19 के ऐसे मरीज जो 15 मार्च 2020 से 14 अप्रैल 2020 के बीच एसआईटी से संक्रमित पाए गए, इनकी तुलना पिछले साल के इसी समय के मरीजों से की।

New research reveals risky sexual behaviour, STIs are rising despite COVID-19 pandemic
कोरोना संकट के दौर में भी जोखिम भरे सेक्स से परहेज नहीं।  |  तस्वीर साभार: ANI

वाशिंगटन : कोविड-19 के प्रकोप से लोगों को बचाने के लिए देशों को लॉकडाउन एवं सख्त प्रतिबंधों के दौर से गुजरना पड़ा है लेकिन इस दौरान चौंकाने वाली बात भी सामने आई है। एक अध्ययन में यह बात सामने आई है कि प्रतिबंधों के बावजूद लोग गोनोरिया, सेकेंड्री सिफलिस एवं माइकोप्लाज्मा जेनिटेलियम (एमजी) सहित सेक्सुअल ट्रांसमिटेड इंफेक्शन  (एसटीआई) का शिकार हुए हैं। यह शोध यूरोपियन अकेडमी ऑफ डर्मेटॉलॉजी एंड वेनेरोलॉजी की ओर से किया गया है। संस्था ने यह शोध इटली के मिलान स्थित अपने दो प्रमुख केंद्रों में किया। 

गे लोग ज्यादा हुए संक्रमित
संस्था ने सोशल आइसोलेशन उपायों का पालन करने वाले कोविड-19 के ऐसे मरीज जो 15 मार्च 2020 से 14 अप्रैल 2020 के बीच एसआईटी से संक्रमित पाए गए, इनकी तुलना पिछले साल के इसी समय के मरीजों से की। इस अध्ययन के दौरान सेकेंड्री सिफलिस एवं गोनोरिया सहित बैक्टिरियल इंफेक्शन में वृद्धि पाई गई। गे लोगों में यह संक्रमण ज्यादा पाया गया। अध्ययन के निष्कर्ष में यह कहा गया है कि लॉकडाउन और सोशल डिस्टैंसिंग का पालन करने के दिशानिर्देशों के बावजूद यह महामारी लोगों को जोखिम भरे व्यवहार को नियंत्रित करने में सफल नहीं हो पाई और एसटीआई की संख्या में बढ़ोतरी हुई।

युवा वर्ग ने उठाया ज्यादा जोखिम
शोध से जुड़े डॉक्टर मार्को कुजिनी का कहना है, 'यह माना जा रहा था कि लॉकडाउन सेक्स एवं एसटीआई की रोकथाम में मददगार होगा लेकिन लॉकडाउन की छोटी अवधि के दौरान सामने आए एसआईटी के मरीजों की संख्या देखकर मैं हैरान हूं। गोनोरिया एवं सिफलिस 30 साल के आयु वर्ग के लोगों में प्रमुख रूप से पाया जाता है। चूंकि कोविड का शिकार ज्यादातर बुजुर्ग लोग हुए ऐसे में युवा वर्ग यौन व्यवहार में ज्यादा सक्रिय हुआ और संकटग्रस्त समय में भी जोखिम लेने से परहेज नहीं किया।'

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