सावधान! फिर सामने आया प्लास्टिक खिलौनो का खतरा, बच्चों के लिए खरीदने से पहले नोट करें ये बातें

kids health tips in hindi: बच्चों के लिए प्लास्टिक वाले खिलौन हमेशा ध्यान से खरीदें। कई खिलौनों में ऐसे केमिकल होते हैं जो लंबे समय तक बच्चों की सेहत को नुकसान पहुंचा सकते हैं। जानें इन खिलौनों से खेलने से क्या खतरा हो सकता है बच्चों को।den

plastic toys for kids can be dangerous to health know what study has to say warn kids health in hindi
बच्चों के लिए प्लास्टिक खिलौने खरीदने से पहले जानें खतरा  

kids health tips in hindi: प्लास्टिक का उपयोग न केवल प्रकृति के लिए बल्कि आपकी सेहत के लिए भी बहुत हानिकारक हो सकता है। खासतौर से जब इसके उपयोग से छोटे बच्चों के लिए गंभीर स्वास्थ्य समस्याएं खड़ी हो जाए। क्या आप जानते हैं कि कई विशेषज्ञों द्वारा इस बात की चेतावनी दी गई है कि प्लास्टिक से बनी गुड़िया, मूर्तियां और लेगो जैसे अन्य खिलौने बच्चों के स्वास्थ्य के लिए जोखिम पैदा करते हैं।

एक अध्ययन में पाया गया है कि प्लास्टिक से बने अधिकांश खिलौने कई तरह के जहरीले रसायनों से मिलकर बने होते हैं। यही नहीं इन रसायनों का स्तर इतनी खतरनाक मात्रा में होता है कि इससे आपके बच्चे का विकास रुक सकता है। भविष्य में कैंसर और बांझपन जैसी समस्याएं भी उत्पन्न हो सकती है। स्वीडन में कुछ शोधकर्ताओं के समूह ने लगभग 150 से अधिक नए एवं पुराने खिलौनों में दो प्रकार के हानिकारक पर्दाथों को देखा है।

जहरीले रसायनों के उपयोग की कानूनी सीमा पार

रिसर्च में पता चला है कि लगभग दस में तीन नए खिलौनों में जहरीले रसायनों की मात्रा कानूनी सीमाओं को पार करती नजर आई हैं। साथ ही करीब 80 प्रतिशत पुराने खिलौने ऐसे थे जिन्होंने यूरोपीय संघ और यूके द्वारा तय की गई कानूनी सीमा का उल्लंघन किया है। जिसका अर्थ है कि शरीर को इस तरह के रसायनों को तोड़कर बाहर निकालने में सालों लग सकते हैं। साथ ही ये बात भी सामने आई है कि कैसे ये विषाक्त पदार्थ कार्बन उत्सर्जन और जलवायु परिवर्तन की समस्या को बढ़ा सकते हैं।

इन गंभीर बीमारियों का खतरा बढ़ सकता है

यूनिवर्सिटी ऑफ गोथेनबर्ग के कुछ विशेषज्ञों द्वारा लगभग 157 अलग अलग प्रकार के खिलौनों का परीक्षण किया गया। जिसमें बॉल, गुड़िया, मूर्तियाँ, ड्रेस अप आइटम्स आदि शामिल थे। ये टेस्ट फेथलेट्स या क्लोरीनयुक्त पैराफिन जैसे पदार्थों के लिए किया गया था। 

ये वो रसायन हैं जिनका इस्तेमाल प्लास्टिक को अधिक टिकाऊ बनाने के लिए किया जाता है जिसे प्लास्टिसाइजर के रूप में भी जाना जाता है। इसके उपयोग से खिलौने गैर ज्वलनशील तो बनते हैं, मगर ये मनुष्यों के लिए किसी जहर से कम हानिकारक नहीं माना जाता है।

शरीर में फेथलेट्स जाने से आपको अस्थमा, ब्रेस्ट कैंसर, मोटापा, डायबिटीज, कम आईक्यू, विकास में बाधा और प्रजनन संबंधी गंभीर दिक्कतों का सामना करना पड़ सकता है। माना जाता है कि एक बार ये जहरीले रसायन जब हमारे शरीर में प्रवेश कर जाते हैं, उसके बाद ये डीएनए को बाधित कर देते हैं जो कैंसर का कारण बन सकता है। 

निर्धारित से 400 गुना ज्यादा मात्रा में रसायन का उपयोग

यूरोपीय संघ और ब्रिटेन द्वारा तय कानूनों के मुताबिक निर्माता खिलौने के कुल वजन के 0.1 प्रतिशत से अधिक मात्रा में फेथलेट्स जैसे रसायन का उपयोग नहीं कर सकते हैं। वहीं क्लोरीनयुक्त पैराफिन की सीमा 0.15 प्रतिशत तय की गई है। 

लेकिन चिंता का विषय यह है कि अध्ययन में 30 प्रतिशत नए खिलौने ऐसे थे जिनमें रसायनों का स्तर कानूनी सीमा से बहुत अधिक था। स्थिति इसलिए इतनी खराब मानी जा रही है क्योंकि इन पदार्थों का स्तर निर्धारित से 84 प्रतिशत अधिक था। 

प्रोफेसर बेथानी कार्नी अल्मरोथ जो एक प्रमुख शोधकर्ता हैं बताते हैं कि कई पुरानी गेंदों में खिलौने के वजन से 40 प्रतिशत से अधिक की मात्रा में फेथलेट्स जैसे फॉरएवर केमिकल्स पाए गए हैं जो कानूनी सीमा से 400 गुना ज्यादा हैं। साथ ही ये अध्ययन इस बात को भी इंगित करता है कि कैसे रीयूज और रीसायकल करना हमेशा एक अच्छा विकल्प नहीं माना जा सकता।

एक अच्छी अर्थव्यवस्था में इस प्रकार के संक्रमणों से बचने के लिए नीतिगत उपायों को तलाशने की आवश्यकता होती है। जो प्लास्टिक जैसे अन्य खतरनाक रसायनों से छुटकारा दिलाने में कारगर हो। साथ ही ये बात भी गौरतलब है कि, प्लास्टिक के खिलौनों में छिपे रसायनों की कानूनी सीमाएं हाल ही में लाई गई है, जिसका अर्थ है कि वे पुराने उत्पादों पर लागू ही नहीं होती हैं।

फॉरएवर केमिकल्स क्या होते हैं?

ये कुछ इस प्रकार के औद्योगिक कंपाउंड्स का एक वर्ग होते हैं, जो पर्यावरण में छोड़े जाने के बाद भी टूटते नहीं हैं। तथा मनुष्य भोजन, पानी, मिट्टी के संपर्क में आने के बाद इन रसायनों के संपर्क में भी आ जाता है।
आमतौर पर आप इन रसायनों को पॉलीफ्लोरोआकाइल पदार्थ या पीएफएएस के रूप में भी जान सकते हैं। जो आपके किचन में इस्तेमाल होने वाले कुकवेयर या कालीन, वस्त्र तथा अन्य वस्तुओं को पानी और दूसरे पदार्थों से लगने वाले दागो से बचाया जा सके।

गर्भवती महिलाओं के लिए खतरा

पीएफएएस जैसे रसायन मैन्युफैक्चरिंग फैसिलिटीज, सैन्य ठिकानों और अग्निशमन प्रशिक्षण केंद्रों के आस पास के पानी में पाए जाते हैं। जहां लौ प्रतिरोधी फोम का उपयोग किया जाता है। इन हानिकारक रसायनों को किडनी, टेस्टिकुलर कैंसर, खराब इम्यून सिस्टम, जन्म दोष, कम जन्म वजन आदि के खतरों से जोड़ा गया है। अध्ययन के अनुसार लगभग सभी गर्भवती महिलाएं इस प्रकार के रसायनों के संपर्क में आ रही हैं। तथा उनमें कैंसर होने का खतरा दूसरों की तुलना में सबसे ज्यादा माना जा रहा है।

सैन फ्रांसिस्को के कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने लगभग 171 महिलाओं की यूरीन के सैम्पल का टेस्ट किया। परीक्षण में पाया गया कि लगभग सभी महिलाओं में मेलामाइन और इसका उप उत्पाद साया यूरिक एसिड मौजूद था। जो बर्तन, प्लास्टिक, रसोई काउंटर और कीटनाशकों के संपर्क में आने के बाद शरीर में प्रवेश कर सकता है। 

इन उत्पादों से हो सकता है संपर्क

आज लगभग हर कोई, खासतौर से महिलाएं प्लास्टिक, सफाई उत्पाद, कपड़ो और अन्य घरेलू सामानों में मिले रसायनों के संपर्क में आ ही जाते हैं। जिससे कैंसर का रिस्क बढ़ने के साथ साथ बच्चों का विकास रुकने जैसी समस्याएं हो सकती हैं।
ऐसा वातावरण में कपड़ो के रंगों और पिगमेंट द्वारा भी भारी मात्रा में किया जा सकता है। डॉ. ट्रेसी वुड्रफ जो अध्ययन का नेतृत्व करने के साथ साथ एक स्त्री रोग विशेषज्ञ भी है कहती हैं कि इस प्रकार के रसायनों की उपस्थिति एक गंभीर चिंता का विषय है। तथा इस तरह के बहुत सारे रसायन जब एक साथ मिलेंगे तो उनका प्रभाव और बुरा भी हो सकता है।

हालांकि अब एक समस्या ये भी है कि ये इस प्रकार के रसायन हैं, जिनसे आज के दौर में पूरी तरह बच पाना लगभग असंभव ही है। मगर प्लास्टिक में लिपटे फल तथा सब्जियां और बच्चों द्वारा मुंह में लिए जाने वाले खिलौनों को कम खरीदकर कुछ हद तक सुधार हो सकता है।

साथ ही यह भी जानना जरूरी है कि यू तो इस तरह के रसायनों की अभी तक नियमित निगरानी नहीं की गई है। मगर एफडीए यानी फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन का कहना है कि शरीर के वजन के दो पाउंड के प्रति 0.06 मिलीग्राम से नीचे मेलामाइन के संपर्क में आना सुरक्षित हो सकता है। वहीं विश्व स्वास्थ्य संगठन का कहना है कि यह 0.2 मिलीग्राम तक सुरक्षित हो सकता है।

(Disclaimer: ये खबर एक शोध के आधार पर लिखी गई है। टाइम्स नाउ नवभारत इसकी पुष्टि नहीं करता है। )

अगली खबर