10 Percent Quota का केस SC मेंः ये हैं वे तीन पहलू, जिन पर जताई गई कड़ी आपत्ति

देश
अभिषेक गुप्ता
अभिषेक गुप्ता | Principal Correspondent
Updated Sep 13, 2022 | 08:33 IST

10 Percent Quota: यह केस चीफ जस्टिस यू.यू.ललित के नेतृत्व वाली पांच सदस्‍यों की बेंच के पास है।

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तस्वीर का इस्तेमाल सिर्फ प्रस्तुतिकरण के लिए किया गया है।  |  तस्वीर साभार: Getty Images

10 Percent Quota: देश में 103वें संविधान संशोधन के माध्यम से गरीब सवर्णों के लिए 10 फीसदी आरक्षण (EWS) की व्यवस्था की गई है। पर गरीब सवर्णों के लिए आरक्षण (Reservation of Poor Upper Castes) का मुद्दा फिलहाल गर्माया हुआ है। इस वर्ग के लिए तय आरक्षण के बंदोबस्त को चुनौती दी गई है और आपत्तियां जताई गई हैं। ऐसे में सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) मामले से जुड़ी याचिकाओं पर मंगलवार (13 सितंबर, 2022) से सुनवाई शुरू करेगा। केस चीफ जस्टिस यू.यू.ललित के नेतृत्व वाली पांच सदस्‍यों की बेंच के पास है। आइए जानते हैं कि 10 फीसदी कोटा से जुड़े कौन-कौन से हैं तीन पहलू हैं, जिन्हें लेकर कड़ा विरोध और ऐतराज जताया गया:

  1. ऊंची जातियों को शामिल करने पर ऐतराजः दरअसल, जो लोग प्रावधान को लेकर आपत्ति जता रहे हैं, उनका कहना है कि यह संवैधानिक दृष्टि से सरासर अनुचित है। उनके मुताबिक, आर्थिक आधार पर सवर्णों को आरक्षण देने का प्रावधान किसी मजाक जैसा है। चूंकि, संविधान में रिजर्वेशन का प्रावधान सामाजिक पिछड़ेपन का आधार बनाकर दिया किया गया और उसका उद्देश्य वंचित-शोषित तबके का सामाजिक उत्थान और कल्याण कराने में मदद करना है।
  2. आरक्षण के उद्देश्य का मसलाः विरोध इस बात पर भी है कि आरक्षण का उद्देश्य क्या है। सुप्रीम कोर्ट को इस संदर्भ में डीएमके का बयान पार्टी के सचिव आरएस भारती ने सौंपा है, जिसके अनुसार, संविधान के हिसाब से रिजर्वेशन तब मान्य है, जब उसका उद्देश्य सामाजिक समानता हो। आर्थिक आधार पर इसका प्रावधान संवैधानिक नहीं हो सकता है। ऊंची जातियों को फिलहाल की आर्थिक स्थिति से इतर रिजर्वेशन देना इसकी मूल भावना के खिलाफ जाता है। 
  3. 'आर्थिक नहीं हो सकता आरक्षण का आधार':  आरक्षण का उद्देश्य पिछड़े वर्ग के लिए नौकरियों में भागीदारी के माध्यम से सामाजिक बराबरी के मकसद को पूरा करना है। यह टिप्पणी टॉप कोर्ट ने इंदिरा साहनी केस में की थी, जिससे 10 फीसदी कोटे से जुड़े तीसरे अहम पहलू का जन्म हो जाता है। मूल रूप से इसमें आरक्षण का आधार समझने की बात कही गई है। डीएमके का मानना है कि शैक्षणिक संस्थानों के साथ नौकरियों में आरक्षण का आधार आर्थिक नहीं हो सकता है। 

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