पीएम मोदी के नीमू दौरे से गदगद हैं पूर्व सैन्य दिग्गज ताशी, कहा-1992 में चीन ने इस तरह किया था हमला

देश
आईएएनएस
Updated Jul 09, 2020 | 21:55 IST

पूर्व सैन्य दिग्गज तेसरिंग ताशी ने कहा कि पीएम मोदी का यह दौरा बेहद जरूरी था इससे शहीद सैनिकों की आत्मा जरूर खुश हुई होगी।

1962 War Veteran Tashi says PM Modi’s visit to Nimo has really boosted the morale of our soldiers
पीएम मोदी के नीमू दौरे से गदगद हैं पूर्व सैन्य दिग्गज ताशी 
मुख्य बातें
  • 90 वर्षीय ताशी बोले- भारतीय सेना के मनोबल के लिए बेहद जरूरी था पीएम का दौरा
  • 1959 में फौज में शामिल हुए थे ताशी, 1962 मे चीन के खिलाफ लड़ा युद्ध
  • चीन के साथ हुए युद्ध की एक-एक कहानी आज ताशी को याद है मुंहजुबानी

नीमू/लेह: चीन से 1962 के युद्ध में लोहा लेने वाले पूर्व सैन्य दिग्गज तेसरिंग ताशी इस बात को लेकर अति उत्साहित हैं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने चीन के साथ चल रहे सीमा गतिरोध के बीच एक सप्ताह पहले ही उनके लेह स्थित उनके गांव का दौरा किया। ताशी ने हंसते हुए कहा, मुझे नहीं पता था कि भारत के प्रधानमंत्री मेरे गांव में यहीं पर थे और सैनिकों से बात कर रहे थे। मुझे उनके जाने के बाद पता चला।

जरूरी था पीएम का दौरा

ताशी ने कहा, नीमो के लिए उनका दौरा वास्तव में आवश्यक था। इसने हमारे सैनिकों का मनोबल बढ़ाया है। वह आगे की पोस्ट (फॉरवर्ड पोस्ट) पर तो नहीं जा सकते थे, लेकिन यह बहुत अच्छा था कि उन्होंने यहां भाषण दिया। उन्होंने कहा कि इस दौरे ने सैनिकों की आत्माओं को भी शांति पहुंचाई और इससे जरूर सेना भी खुश होगी।लद्दाख की गलवान घाटी में 15 जून की रात चीनी सैनिकों के साथ हिंसक झड़प के दौरान भारत ने एक कर्नल सहित 20 सैनिकों को खो दिया था। जवानों की शहादत के बाद चीन से चल रहे गतिरोध के बीच प्रधानमंत्री ने नीमू की यात्रा की, जिसका भारतीय सेना के मनोबल के साथ ही 80 वर्षीय ताशी के लिए भी बड़ा महत्व है।

62 की हार का आज भी है मलाल

चीन के साथ 1962 के युद्ध में भारत की हार के 58 साल बाद भी हवलदार की आवाज से पछतावा और शोक नहीं मिट सका है, क्योंकि वह याद करते हैं कि कैसे भारत युद्ध और क्षेत्र को चीन से हार गया था। 1962 के युद्ध से पहले चीन के तत्कालीन प्रमुख झोउ एनलाई के दृष्टिकोण के बारे में बताते हुए पूर्व सैन्य दिग्गज ने कहा, मुंह में राम राम और बगल में छुरी। ताशी ने उस समय को भी याद किया, जब वह 1959 में सेना में शामिल हुए थे और इसके तीन साल बाद ही चीन के साथ युद्ध छिड़ गया।

ऐसे शुरू हुआ था 1992 का युद्ध

 उन्होंने कहा, युद्ध रात एक बजे (20 अक्टूबर, 1962) से शुरू हुआ। भारत और चीन दोनों के पास डीबीओ (दौलत बेग ओल्डी) के पास सैन्य चौकियां हुआ करती थीं, जो 16600 फीट की ऊंचाई पर दुनिया की सबसे ऊंची हवाई पट्टी में से एक थी। ताशी ने कहा, हम पैदल गश्त करते थे, जबकि चीनी घोड़ों पर। हमारे वाहन हमारी पोस्ट तक नहीं पहुंच पाए, लेकिन उनके पहुंच गए। उनकी संख्या हमारे से अधिक थी। हम बहुत कम थे।

उन्होंने कहा, उस समय सेना की केवल दो इकाइयां थीं - एक चुशुल में और दूसरी डीबीओ में। इसलिए हमने पठानकोट से जाट रेजिमेंट के अपने सैनिकों को सीधे डीबीओ हवाई पट्टी पर एयरलिफ्ट किया। चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) ने चिप चैप घाटी, गलवान घाटी, पैंगोंग झील और अन्य कई जगहों पर स्थित भारतीय सैन्य चौकियों पर हमला किया था। चिप चैप नदी पूर्व से पश्चिम तक दौलत बेग ओल्डी के दक्षिण में बहती है।

ठंड से कठिन हो गए थे हालात

 अक्टूबर के महीने तक लद्दाख में सर्दी पूरे जोरों पर पहुंच चुकी थी और डीबीओ जैसे ऊंचाई वाले क्षेत्रों में बेहद कठिनाई आ रही थी। तापमान भी हिमांक बिंदु (फ्रिजिंग प्वाइंट) तक पहुंच गया था। ताशी ने कहा, हमारे सैनिकों को जलवायु के अनुकूल होने का समय ही नहीं मिला, लेकिन उन्होंने लड़ने का फैसला किया। उनके हाथ जम गए, उन्होंने अपने अंग खो दिए। इसलिए हमें पीछे हटना पड़ा। ताशी ने उल्लेख किया कि ठंड में सैनिकों की मौत कैसे हुई।

उन्होंने युद्ध के समय को याद करते हुए कहा कि सेना ने पास की पोस्ट पर 20 से 30 जवानों को खो दिया। ताशी ने कहा, वे (पीपुल्स लिबरेशन आर्मी) हमारे कुछ सैनिक कैदियों को भी ले गए। हालांकि उनमें से एक बच गया। मैं नहीं जानता कि वह वापस कैसे आया। रात के लगभग दो बजे ताशी एक शक्तिमान ट्रक में डीबीओ से सहायता के लिए और अधिक सैनिकों को लाने के लिए चल दिए।

ऐसी बची जान

उन्होंने कहा, मुझे 30 से 40 सैनिकों का साथ मिल गया, लेकिन हमारा वाहन एक जमे हुए प्रवाह में बर्फ में फंस गया। शायद हमारी जान बच गई, क्योंकि हमारा वाहन फंस गया। जब हम चलने के लिए तैयार हुए तो सुबह हो चुकी थी अब तब हम देख भी सकते थे। सुबह की रोशनी के कारण हमारे कमांडेंट ने हमें थोड़ा और आगे बढ़ाने में सक्षम किया। मैं गाइड था। लेकिन जिस समय तक हम वहां पहुंचे तो पीएलए के सैनिकों ने हमारे क्षेत्र पर कब्जा कर लिया था। इसलिए हमें वापस लौटना पड़ा।

आज का भारत 1962 वाला नहीं

ताशी ने कुमाऊं रेजिमेंट के मेजर शैतान सिंह की शहादत को भी याद किया, जिन्होंने रेजांग ला रिज पर कब्जा करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी, जो हवाई पट्टी को चीनी हाथों में जाने से रोकने के लिए काफी महत्वपूर्ण था। हालांकि ताशी मानते हैं कि भारत अब 1962 वाला भारत नहीं है और चीन अब उसे नहीं हरा सकता है। उन्होंने कहा कि आज का भारत बहुत मजबूत है और यह बुलंदी छू रहा है। ताशी ने कहा कि अब वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर भारतीय सैनिकों की हर जरूरत पूरी हो रही है।

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