नई दिल्ली। ऐसा कहा जाता है कि अगर किसी समाज में महिलाएं सशक्त हैं तो वो समाज अपने आप तरक्की करता है। भारत के संदर्भ में अगर देखा जाए तो 1950 से लेकर अब तक के सफर में महिलाएं, पुरुषों के साथ कांधे से कांधा मिलाकर आगे बढ़ रही है। चाहे इंजीनियरिंग हो, मेडिकल हो, साइंस हो , बॉलीवुड हो या रक्षा क्षेत्र हो भारतीय महिलाओं का डंका बज रहा है। हर वर्ष जब 8 मार्च को पूरी दुनिया अंतरराष्ट्रीय महिला मनाती है तो भारत में एक सवाल पूछा जाता है कि राजनीति के क्षेत्र में खासतौर से संसद में महिलाओं को पर्याप्त भागीदारी कब मिलेगी।
33 फीसद आरक्षण की राजनीतिक जुगाली
संसद में महिलाओं को 33 फीसद आरक्षण पर राजनीतिक जुगाली तो करते हैं लेकिन जब बात अमल करने की होती है तो वो पीछे हट जाते हैं। इसके पीछे कुछ तथ्य भी हैं जिसे राजनीतिक दल नजरंदाज भी नहीं कर सकते हैं। दरअसल 2008 में राज्यसभा से 33 फीसद आरक्षण के प्रस्ताव को पास कर दिया था।लेकिन लोकसभा से उस विधेयक के पारित होने का इंतजार आधी आबादी को आज भी है।
1974 में पहली बार महिला आरक्षण का मुद्दा उठा
1974 में संसद में महिलाओं के प्रतिनिधित्व को आकलन संबंधी समिति की रिपोर्ट में उठाया गया था। राजनीतिक संस्थाओं में महिलाओं की कम संख्या का ज़िक्र करते हुए रिपोर्ट में पंचायतों और स्थानीय निकायों में महिलाओं के लिये सीटें आरक्षित करने का सुझाव दिया गया।
1993 में संविधान में 73वें और 74वें संशोधन के तहत पंचायतों और नगरपालिकाओं में महिलाओं के लिये 33 प्रतिशत सीटें आरक्षित की गईं।1996 में महिला आरक्षण विधेयक को पहली बार एच.डी. देवगौड़ा सरकार ने 81वें संविधान संशोधन विधेयक के रूप में संसद में पेश किया। लेकिन देवगौड़ा सरकार अल्पमत में आ गई और 11वीं लोकसभा को भंग कर दिया गया।
आरक्षण के समर्थन में सभी दल फिर भी विरोध
1996 का विधेयक भारी विरोध के बीच संयुक्त संसदीय समिति के हवाले कर दिया गया था।1998 में तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने लोकसभा में फिर से विधेयक पेश किया। लेकिन गठबंधन की मजबूरियों और भारी विरोध के बीच यह लैप्स हो गया।
1999, 2002 तथा 2003 में इसे फिर लाया गया, लेकिन नतीजा कुछ नहीं निकलामनमोहन सिंह सरकार ने 2008 में लोकसभा और विधानसभाओं में 33 प्रतिशत महिला आरक्षण से जुड़ा 108वां संविधान संशोधन विधेयक राज्यसभा में पेश किया।इसके दो साल बाद 2010 में तमाम राजनीतिक अवरोधों को दरकिनार कर राज्यसभा में यह विधेयक पारित करा दिया गया। हालांकि लोकसभा में पेंच फंसा हुआ है।
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