नई दिल्ली : देश आज 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध में मिली जीत का उत्सव मना रहा है तो यह दिन दिल्ली में 2012 की उस काली रात की भी याद दिलाता है, जब 23 साल की पैरामेडिकल छात्रा निर्भया के साथ छह लोगों ने दिल्ली की सड़कों पर बस में दरिंदगी की थी। निर्भया के चार दोषियों को मौत की सजा दी जा चुकी है, जबकि एक ने तिहाड़ में खुदकुशी कर ली थी, जबकि एक को नाबालिग होने के कारण मामूली सजा देकर छोड़ दिया गया। निर्भया के दोषियों को भले ही सजा मिल गई हो, पर ऐसी घटनाएं आज भी थमने का नाम नहीं ले रही हैं। निर्भया की मां अब सभी दुष्कर्म पीड़िताओं के लिए न्याय की आवाज बनेंगी और अपना संघर्ष जारी रखेंगी।
निर्भया के दोषियों को तिहाड़ जेल में फांसी दिए जाने के 9 माह बाद आशा देवी ने कहा कि बलात्कार पीड़िताओं के लिए न्याय की लड़ाई ही उनकी बेटी के लिए सच्ची श्रद्धांजलि होगी। निर्भया के साथ हुई दरिंदगी को याद करते हुए याद करते हुए आशा देवी ने कहा, 'मेरी बेटी को न्याय मिल गया। लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि मैं चुप बैठूंगी। मैं सभी बलात्कार पीड़िताओं को न्याय दिलाने के लिए लड़ती रहूंगी। ऐसा करके ही मैं अपनी बेटी को सच्ची श्रद्धांजलि अर्पित कर पाऊंगी। हर किसी को साथ मिलकर दुष्कर्म के खिलाफ आवाज उठाने की जरूरत है।'
निर्भया के साथ 16 दिसंबर, 2012 को सर्द रात में दिल्ली की सड़कों पर जो हैवानियत हुई थी, उसने पूरे राष्ट्र की अंतरात्मा को झकझोर कर रख दिया था और महिलाओं के खिलाफ अपराध पर रोकथाम को लेकर सख्त से सख्त कानून की आवश्यकता महसूस की गई। बेटी को न्याय दिलाने के लिए निर्भया की मां ने लंबा संघर्ष किया। सात साल के संघर्ष के बाद आखिरकार 20 मार्च, 2020 को निर्भया के चार दोषियों- मुकेश सिंह, अक्षय सिंह ठाकुर, विनय शर्मा और पवन गुप्ता को तिहाड़ जेल में फांसी दी गई।
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