हिंदी विवाद पर यूपी के मंत्री डॉ संजय निषाद भी कूदे लेकिन सवाल हिंदी विरोध कितना सही

यूपी सरकार में मंत्री डॉ संजय निषाद का कहना है कि जिन लोगों को हिंदी से ऐतराज है उन्हें देश छोड़ देना चाहिए।

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यूपी सरकार में मंत्री संजय निषाद की सलाह, जिन्हें हिंदी पसंद नहीं देश छोड़ दें 
मुख्य बातें
  • जिन्हें हिंदी पसंद नहीं उन्हें छोड़ देना चाहिए देश-संजय निषाद
  • गृहमंत्री ने हिंदी के ज्यादा से ज्यादा प्रयोग पर दिया था बल
  • दक्षिण भारत के गैर बीजेपी शासित राज्यों को है विरोध

इस समय हिंदी पर विवाद है। गृहमंत्री अमित शाह ने कहा कि हमें संवाद के तौर हिंदी का प्रयोग ज्यादा से ज्यादा  प्रयोग करना चाहिए। उनके इस बयान के बाद अलग अलग तरह की प्रतिक्रिया आई। दक्षिण भारत के गैर बीजेपी शासित राज्यों ने कहा कि हिंदी थोपने की कोशिश बर्दाश्त नहीं की जाएगी। ताजा मामला अजय देवगन और दक्षिण के कलाकार सुदीप किच्चा के बयानों से गरमाया। इन सबके बीच यूपी सरकार में मंत्री डॉ संजय निषाद ने कहा कि जिन लोगों को हिंदी से ऐतराज है उन्हें भारत छोड़ देना चाहिए। 

जिन्हें हिंदी पसंद नहीं, देश छोड़ दें
उत्तर प्रदेश के मंत्री संजय निषाद ने  तर्क दिया कि जो लोग भाषा नहीं बोलते हैं उन्हें भारत छोड़ देना चाहिए। अभिनेता अजय देवगन और किच्छा सुदीप के बीच ट्विटर पर हुए विवाद से प्रेरित हिंदी के लिए एक बढ़ी हुई पिच के मद्देनजर यह टिप्पणी आई।जो लोग भारत में रहना चाहते हैं उन्हें हिंदी से प्यार करना चाहिए। यदि आप हिंदी से प्यार नहीं करते हैं, तो यह माना जाएगा कि आप विदेशी हैं या विदेशी शक्तियों से जुड़े हुए हैं। हम क्षेत्रीय भाषाओं का सम्मान करते हैं, लेकिन यह देश एक है, और भारत के रूप में संविधान कहता है कि भारत 'हिंदुस्तान' है जिसका मतलब है कि हिंदी बोलने वालों के लिए जगह है। हिंदुस्तान उन लोगों के लिए जगह नहीं है जो हिंदी नहीं बोलते हैं। उन्होंने कहा कि उन्हें इस देश को छोड़कर कहीं और जाना चाहिए।उन्होंने यह भी जोर दिया कि कानून के अनुसार, हिंदी वास्तव में राष्ट्रभाषा थी। उन्होंने आगे कहा कि इस कानून का उल्लंघन करने वाले को सलाखों के पीछे डाल दिया जाना चाहिए  चाहे वे कितने भी महत्वपूर्ण या शक्तिशाली क्यों न हों।

भारत में अलग अलग भाषा बोलने वालों की संख्या फीसद में 

हिंदी 57.09
बंगाली 8.85
मराठी 8.18
तेलगू 7.71
तमिल 6.36
गुजराती 4.99
कन्नड़ 4.84
पंजाबी 2.97
मलयालम 2.93
असमी 1.94

इस तरह एक बार फिर शुरू हुआ विवाद
सुदीप द्वारा कन्नड़ फिल्म केजीएफ: चैप्टर 2 की रिकॉर्ड तोड़ अखिल भारतीय सफलता की सराहना करने के बाद एक बार फिर बहस छिड़ गई। नेताओं ने जल्द ही देवगन के इस तर्क का समर्थन करते हुए बहस में प्रवेश किया कि हिंदी हमारी राष्ट्रीय भाषा थी, है और हमेशा रहेगी जबकि दूसरों ने विरोध किया। भारतीय संविधान के अनुसार, वर्तमान में भारत की कोई 'राष्ट्रीय भाषा' नहीं है। बल्कि, जिस देश में - जहां के नागरिक 121 भाषाएं बोलते हैं और 270 मातृभाषाएं जानते हैं - वहां कई आधिकारिक भाषाएं हैं। स्वतंत्रता के बाद पहले 15 वर्षों तक अंग्रेजी मुख्य राजभाषा रही थी, लेकिन बाद में इसे हिंदी से बदल दिया गया। अंग्रेजी हालांकि सहायक आधिकारिक भाषा बनी हुई है। राज्यों की अपनी क्षेत्रीय आधिकारिक भाषाएं भी हैं।

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क्या कहते हैं जानकार
जानकारों का कहना है कि हिंदी पर बेवजह बखेड़ा किया जाता है। भारत जैसे देश में जहां अलग अलग भाषाएं और बोलियां है वहां किसी एक भाषा को थोपा नहीं जा सकता है। देश पर जब अंग्रेजी शासन था उन्होंने राजकाज की भाषा के तौर पर अंग्रेजी का इस्तेमाल किया। लेकिन आजादी के बाद इस बात पर मंथन हुआ कि राजकाज की भाषा में अंग्रेजी को दूसरा बेहतर विकल्प क्या हो सकता है। मंथन के बाद और देश में बहुसंख्यक आबादी और ज्यादातर इलाकों में हिंदी भाषी समाज को देखते हुए महसूस किया गया कि देवनागरी लिपि में राजकाज के लिए अंग्रेजी के साथ साथ हिंदी को भी अमल में लाया जाया और इसके साथ ही जो क्षेत्रीय भाषाएं है उनकी पहचान को भी अछुण्ण रखा जाए। अब जबकि साफ है कि हिंदी राजभाषा है तो जो लोग इसका विरोध करते हैं उनका सिर्फ निजी मकसद हो सकता है। 

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