कांग्रेस से 'आजाद' होने के बाद बोले गुलाम नबी, बनाएंगे नई पार्टी, क्या है राजनीतिक मायने

कांग्रेस छोड़ने के बाद गुलाम नबी आजाद ने कहा कि वो किसी पार्टी में नहीं जाएंगे बल्कि खुद की पार्टी बनाएंगे। उनके इस बयान का क्या मतलब है इसे समझने की कोशिश करेंगे।

Ghulam Nabi Azad, Congress, Jammu and Kashmir, Assembly elections, BJP
गुलाम नबी आजाद, कांग्रेस के पूर्व नेता 
मुख्य बातें
  • रणदीप सिंह सूरजेवाला ने गुलाम नबी आजाद पर साधा निशाना
  • चार दशक तक सत्ता का मजा लिया
  • अब कांग्रेस में खोट नजर आने लगी

शुक्रवार को गुलाम नबी आजाद ने कांग्रेस पार्टी को अलविदा कह दिया। कांग्रेस पार्टी से करीब 50 साल पुराना रिश्ता करीब दो साल की नाराजगी के बाद खत्म हो गया। कांग्रेस से आजाद होने के बाद स्वाभाविक था कि प्रतिक्रियाएं आतीं और वो आईं भी। कांग्रेस के कद्दावर नेता दिग्विजय सिंह ने कहा कि जोड़ने की बात करने वाले पार्टी तोड़ कर चले गए तो सलमान खुर्शीद ने कहा कि अगर आजाद को आजाद होना ही था तो सत्ता में रहते हुये कांग्रेस को छोड़ दिया होता। लेकिन इन सबके बीच गुलाम नबी आजाद ने कहा कि वो किसी पार्टी में नहीं जाएंगे बल्कि खुद की पार्टी बनाएंगे। आजाद के इस्तीफा देने के बाद जम्मू कश्मीर के कई दिग्गजों ने भी कांग्रेस को अलविदा कह दिया जिसमें ज्यादातर उनके समर्थक थे। खासतौर पर 6 पूर्व विधायकों ने कांग्रेस को  बाय बाय बोल दिया। अब सवाल यह है कि गुलाम नबी आजाद के पार्टी बनाने के राजनीतिक माएने क्या हैं।

जम्मू-कश्मीर की राजनीति पर ज्यादा असर
जानकारों के मुताबिक गुलाम नबी आजाद के इस्तीफे से सबसे ज्यादा जम्मू-कश्मीर की राजनीति पर होगा। आप देख सकते हैं कि आजाद के इस्तीफा देते ही उनके समर्थकों के इस्तीफे की झड़ी लग गई। खास बात यह है कि कांग्रेस के 6 पूर्व विधायकों ने पार्टी को अलविदा कह दिय़ा। निश्चित तौर पर यह कांग्रेस के लिए बड़ा झटका होगा। जम्मू-कश्मीर की राजनीति में परंपरागत तौर से नेशनल कांफ्रेस, पीडीपी, कांग्रेस, बीजेपी के अलावा एक चौथी पार्टी भी आएगी। अगर आजाद के इस्तीफे की बात करें तो उसका सबसे ज्यादा असर कांग्रेस पर ही होगा। अगर 90 विधानसभा वाली असेंबली में किसी दल को पूर्ण बहुमत नहीं मिलता है तो निश्चित तौर पर वो किंगमेकर की भूमिका में होंगे। 
परसेप्शन की लड़ाई में कांग्रेस की हार
गुलाम नबी आजाद की कांग्रेस के नेतृत्व से नाराजगी कोई नई घटना नहीं है। वो पिछले दो साल से बार बार पार्टी के फोरम और उससे इतर कहा करते थे कि कांग्रेस को बड़े बदलाव के दौर से गुजरना होगा। लेकिन जब उनकी कोशिश रंग नहीं लाई तो उसका दर्द उनके पत्र में नजर आया कि किस तरह से कांग्रेस की कमान एक ऐसे हाथ में है जो कुछ कर पाने में कामयाब नहीं है। इशारा खुले और सीधे तौर पर राहुल गांधी की तरफ था। अगर आजाद के इस्तीफे की बात करें तो देश के दूसरे हिस्सों में जमीनी स्तर पर कांग्रेस को कोई खास नुकसान भले ही ना हो। लेकिन परसेप्शन की लड़ाई में कांग्रेस की हार है और उसे आप बीजेपी के बयानों में भी देख सकते हैं। 

Times Now Navbharat पर पढ़ें India News in Hindi, साथ ही ब्रेकिंग न्यूज और लाइव न्यूज अपडेट के लिए हमें गूगल न्यूज़ पर फॉलो करें ।

अगली खबर