Amazing Indians Award 2022: बेसहारा बच्चों का सहारा हैं प्रमोद कुलकर्णी, खुशियों से भरते हैं बचपन

Amazing Indians Award 2022: बेसहारा बच्चों का जीवन बनाने और उन्हें मुख्य धारा से जोड़ने के लिए प्रमोद कुलकर्णी अपनी पूरी ताकत से जुट गए। उन्होंने अपने हितों की कभी परवाह नहीं की। उन्हें कारपोरेट की सम्मानित नौकरी मिली थी लेकिन उन्होंने उसे ठुकरा दिया।

Amazing Indians Award 2022: Pramod Kulkarni is support of destitute children, fills childhood with happiness
बेसहारा बच्चों का सहारा हैं प्रमोद कुलकर्णी। 

Amazing Indian 2022 : बेसहारा बच्चों के चेहरों पर खुशी लाना और इन बच्चों को दोबारा उनके परिवार से मिला देना, यह बहुत बड़ी बात है। घर-परिवार से बिछड़े बच्चों का सहारा  कैसे बना जाए, इसे कर्नाटक के प्रमोद कुलकर्णी से सीखा जा सकता है। कुलकर्णी ने बिछड़े बच्चों को परिवार से मिलाकर उनके चेहरों पर खुशिया लाई हैं। रेलवे प्लेटफॉर्मों पर गुजारा करने वाले बच्चों को रहने के लिए वह एक ठिकाना देते और इन बच्चों को समाज की मुख्यधारा से जोड़ने के लिए काम करते आए हैं। बेसहारा बच्चों का आसरा बनने के लिए टाइम्स नाउ ने उन्हें अपने 'अमेजिंग इंडियन' अवार्ड से सम्मानित किया है।  

बेसहारा बच्चों को उनके परिवार से मिलाते हैं कुलकर्णी
बेसहारा बच्चों का जीवन बनाने और उन्हें मुख्य धारा से जोड़ने के लिए कुलकर्णी अपनी पूरी ताकत से जुट गए। उन्होंने अपने हितों की कभी परवाह नहीं की। उन्हें कारपोरेट की सम्मानित नौकरी मिली थी लेकिन उन्होंने उसे ठुकरा दिया। बच्चों की भलाई के लिए वह एक एनजीओ से जुड़ गए। 67 साल के हो चुके कुलकर्णी बीते 32 साल से बिछड़े बच्चों को उनके माता-पिता से मिला रहे हैं। कहा जाता है कि मनुष्य के लिए भोजन, कपड़ा और मकान बुनियादी जरूरतें हैं। भोजन और कपड़ा तो आम तौर पर दान एवं अन्य तरीकों से मिल जाता है लेकिन आश्रय पाना कहीं मुश्किल होता है। कुलकर्णी बच्चों को आश्रय देते आए हैं। 

रेलवे प्लेटफार्म पर भटकते बच्चों को अपनाते हैं
बेसहारा बच्चों के लिए कई एनजीओ काम करते हैं। कई एनजीओ का मानना है कि ये बच्चे ऐसे परिवारों से आते हैं जिनका माहौल ठीक नहीं होता और इन बच्चों का परिवार में शोषण होता है। इसे देखते हुए इस तरह के एनजीओ बच्चों को दोबारा उनके परिवार से मिलाने की कोशिश नहीं करते जबकि कुलकर्णी की सोच उनकी जैसी नहीं है। कुलकर्णी रेलवे प्लेटफार्म पर भटक रहे बच्चों को अपने यहां लाते हैं और उनकी परवरिश करते हैं। फिर इन बच्चों के माता-पिता का पता लगाकर उन्हें दोबारा परिवार से जोड़ते हैं। 

आईआईएम अहमदाबाद से की है पढ़ाई
'साथी' के संस्थापक कुलकर्णी आईआईएम अहमदाबाद से उच्च डिग्री हासिल की है। साल 1981 में उन्होंने इस प्रतिष्ठित संस्था से स्टेटिक्स में एमएससी की। यहां से निकलने के बाद उन्हें कारपोरेट जगत से नौकरी के आकर्षक ऑफर मिले लेकिन उन्हें इस तरह की नौकरी पसंद नहीं आई। उन्होंने समाजसेवा का रास्ता चुना और एक एनजीओ से जुड़ गए। तब से कुलकर्णी अपनी शिक्षा एवं अनुभव का इस्तेमाल समाज की भलाई के लिए करते आ रहे हैं। कुलकर्णी की संस्था 'साथी' पुणे, मुगलसराय, वाराणसी, दिल्ली, कोलकाता सहित देश भर में 40 जगहों पर काम करती है। उनकी यह संस्था साल 2005 से 2020 के बीच 95,000 से ज्यादा बच्चों को उनके परिवार से मिला चुकी है। 
 

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