अंकिता मर्डर से उठे सवाल: 75 साल बाद भी अंग्रेजों का सिस्टम,60% एरिया में लेखपाल-कानूनगो के भरोसे जांच

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प्रशांत श्रीवास्तव
Updated Sep 28, 2022 | 13:44 IST

Ankita Bhandari Murder Case Update: उत्तराखंड का करीब 60 फीसदी एरिया रेवेन्यू पुलिस सिस्टम के तहत आता है। । यानी राज्य के 60 फीसदी इलाके में अपराध होने पर, दूसरे राज्यों की तरह पुलिस न तो एफआईआर दर्ज करती है और न ही शुरूआती जांच करती है। और अंकिता के पिता के साथ भी यही हुआ।

ANKITA BHANDAR DEATH AND POLICE SYSYTEM
अंकिता भंडरी की मौत से उत्तराखंड के पुलिस सिस्टम पर सवाल 
मुख्य बातें
  • राज्य के 60 फीसदी इलाके में पटवारी, लेखपाल, कानूनगो जो कि रेवेन्यू अधिकारी होते हैं। वह पुलिस का काम करते हैं।
  • राज्य में प्रति एक लाख आबादी पर 196.87 पुलिस के पद स्वीकृत हैं। लेकिन 188.16 पुलिस ही मौजूद हैं।
  • पूरे राज्य में केवल 159 थाने हैं। जबिक राज्य की इस समय करीब 2.31 करोड़ आबादी है।

Ankita Bhandari Murder Case Update: अंकिता भंडारी महज 19 साल की थी , उसकी भी दूसरी मिडिल क्लॉस लड़कियों के सपने थे। लेकिन पहली नौकरी ने ही अंकिता और उसके माता-पिता के सारे सपने को ऐसा तोड़ा है। जिससे अंकिता की माता-पिता शायद ही इस सदमे से कभी ऊबर पाए। पौड़ी गढ़वाल जिले के यमकेश्वर क्षेत्र के गंगा भोगपुर में वनतारा रिजॉर्ट अंकिता रिसेप्शनिस्ट थी। और 18-19 सितंबर से वह उस रिजॉर्ट से गायब हो गई थी। उसके बाद 24 सितंबर को ऋृषिकेश के पास एक नहर में उसकी लाश मिली।

अंकिता के पिता  वीरेंद्र सिंह भंडारी ने 19 सितंबर को राजस्व पुलिस चौकी उदयपुर तल्ला में मुकदमा दर्ज कराया था । अंकिता की मौत के सिलसिले में अभी तक भाजपा नेता के बेटे और रिजार्ट का संचालक पुलकित आर्य, मैनेजर सौरभ भास्कर और असिस्टेंट मैनेजर अंकित गुप्ता को गिरफ्तार किया जा चुका है। 

लेकिन अंकिता की मौत ने उत्तराखंड के पुलिस सिस्टम पर भी सवाल खड़े कर दिए हैं। असल में उत्तरांखड देश का इकलौता ऐसा राज्य है, जहां पर सुदूर क्षेत्रों, दुर्गम क्षेत्रों में आज भी 161 साल पुराना कानून लागू है। और उसी के आधार पर, किसी आपराधिक मामले में एफआईआर दर्ज करने से लेकर शुरूआती कार्रवाई की जाती है।

60 फीसदी इलाके में सामान्य पुलिस नहीं

इस व्यवस्था के बारे में पढ़ने में आश्चचर्य जरूर होगा, लेकिन हकीकत यही है कि साल 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के बाद,  जब अंग्रेजों ने भारत में नए सिरे कानून व्यवस्था का सिस्टम तैयार किया। तो 1861 में पुलिस एक्ट लागू किया था। जिसके एक खास प्रावधान को आजादी के बाद, जब उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश में शामिल था तो लागू कर दिया गया। उसके बाद जब उत्तराखंड के गठन के बाद उत्तराखंड पुलिस एक्ट 2007 लागू हुआ तो उस प्रावधान को भी सभी सरकारों ने जारी रखा।

हम बात इस कानून के तहत बनी रेवेन्यू पुलिस कर रहे हैं। जिसके तहत उत्तराखंड का करीब 60 फीसदी एरिया। इसी पुलिस के पास आता है। यानी राज्य के 60 फीसदी इलाके में अपराध होने पर, दूसरे राज्यों की तरह पुलिस न तो एफआईआर दर्ज करती है और न ही शुरूआती जांच करती है। और अंकिता के पिता के साथ भी यही हुआ। क्योकि उनका भी घर इसी 60 फीसदी इलाके में आता है।

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पटवारी, लेखपाल, कानूनगो ही करते हैं पुलिस का काम

राज्य के 60 फीसदी इलाके में पटवारी, लेखपाल, कानूनगो जो कि रेवेन्यू अधिकारी होते हैं। वह पुलिस का काम करते हैं। उनके पास एफआईआर लिखने, शुरूआती जांच करने और उसके आधार पर आरोपी के गिरफ्तारी का भी अधिकार होते हैं। इस प्रक्रिया के बाद ही मामले को पुलिस के उच्च अधिकारियों के पास भेजा जाता है। अंकिता के माता-पिता ने इसी व्यवस्था के तहत 19 सितंबर को राजस्व पुलिस चौकी उदयपुर तल्ला में मुकदमा दर्ज कराया था । 

कानून के तहत कुमाऊ और गढ़वाल डिविजन की हिल पट्टी,  टेहरी और उत्तर काशी जिले की हिल पट्टी और देहरादून जिले की जौनसार-भाबर क्षेत्र हैं। जहां पर पुलिस का काम रेवेन्यू ऑफिसर करते हैं।

16 में से 11 केस सबूतों के अभाव में बरी

यह व्यवस्था क्यों शुरू हुई इस पर पब्लिक पॉलिसी एक्सपर्ट और उत्तराखंड पर खास तौर से अध्ययन करने वाले अजीत सिंह ने टाइम्स नाउ नवभारत डिजिटल को बताया कि अंग्रेजों ने यह व्यवस्था अपनी सुविधा को देखते हुए बनाई थी दूसरी बात यह थी पहाड़ी क्षेत्रों में एक दौर ऐसा था कि अपराध नहीं के बराबर होते थे। लेकिन वह दौर अब नहीं रह गया है। ऐसे में पुराने सिस्टम से न्याय दिलाना मुश्किल होता जा रहा है। पिछले 3 साल के ब्यौरों को देखा जाय, तो एक रिपोर्ट के अनुसार 16 आपराधिक मामले में रेवेन्यू अधिकारी द्वारा ट्रांसफर किए गए। लेकिन उसमें 11 मामलों में आरोपी में सबूतो के अभाव में बरी हो गए। 

साफ है कि अपराध की जांच में प्रोफेशनल रवैया नहीं अपनाया गया। अब कोई लेखपाल, कानूनगो किसी अपराध की जांच करेगा, समझा जा सकता है कि वह इसके लिए कितना योग्य है। इसके अलावा भ्रष्टाचार और मिलीभगत के कारण भी मामलों की लीपापोती की जाती है। और इसका आसान तरीका है कि जांच को लटका कर रखा जाय। ऐसे में इस सिस्टम को खत्म करने की जरूरत है। साफ है कि 60 फीसदी इलाके में न थाना और न चौकी है।

साल 2018 में उत्तराखंड हाई कोर्ट भी रेवेन्यू अधिकारी द्वारा पुलिस का काम करने वाली व्यवस्था को खत्म करने के निर्देश दे चुका हैं। लेकिन अभी तक ऐसा नहीं हो पाया है।

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राज्य में केवल 159 थाने 

उत्तराखंड  पुलिस प्रणाली पर एक नजर
अपराध-2021 34875
क्राइम रेट 340.9 (प्रति एक लाख आबादी पर)
पुलिस बल 188.16 (प्रति एक लाख आबादी पर)
थान 159

नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो 2021 के अनुसार राज्य की इस समय करीब 2.31 करोड़ आबादी है। साल 2021 में राज्य में 34875 आपराधिक मामले दर्ज हुए हैं। और महिलाओं के प्रति सेक्शन-354 के तहत 551 अपराधिक मामले दर्ज हुए हैं। इसी तरह एक अगर प्रति एक लाख आबादी पर अपराध के मामले (क्राइम रेट) देखे जाय तो 340.9 है। राज्य में पुलिस के स्वीकृत पोस्ट और उपलब्ध संख्या की बात की जाय को उसमें भी कमी नजर आती हैं। प्रति एक लाख पर 196.87 पुलिस के पद स्वीकृत हैं। लेकिन 188.16 पुलिस ही मौजूद हैं। इसी तरह पूरे राज्य में केवल 159 थाने हैं।

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