हलाल सर्टिफिकेशन के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अर्जी, याचिकाकर्ता बोले- 1974 से पहले नहीं थी व्यवस्था

हलाल सर्टिफिकेशन के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दायर की गई है। याचिकाकर्ताओं का कहना है कि 1974 से पहले इस तरह की व्यवस्था नहीं थी।

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हलाल सर्टिफिकेशन के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अर्जी, याचिकाकर्ता बोले- 1974 से पहले नहीं थी व्यवस्था 
मुख्य बातें
  • हलाल मीट के खिलाफ कर्नाटक में हंगामा हुआ था
  • बीजेपी के एक नेता ने इसे आर्थिक जिहाद बताया था
  • बीजेपी नेता के बयान पर कई मुस्लिम संगठनों से ऐतराज जताया था

कर्नाटक में हिजाब विवाद के बीच हलाल मीट का मुद्दा उठा था। बीजेपी के एक कद्दावर नेता ने तो इसे आर्थिक जिहाद तक करार दिया है। अब यह मामला सियासी मैदान से अदालत के चौखट तक जा पहुंचा है। हलाल प्रमाणित उत्पादों के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गई है। याचिका में हलाल प्रमाणित उत्पादों पर लगाम लगाने की अपील है। अर्जी को वकीस विभोर आनंद और रवि कुमार तोमर ने दायर किया है। 

1974 से पहले हलाल सर्टिफिकेशन की व्यवस्था नहीं थी
याचिका में अपील की गई है कि अदालत इस संबंध में हलाल प्रोडक्ट से जुड़े संबंधित अधिकरणों को निर्देश जारी करे ताकि भारत में इसका व्यापार बंद हो सके। याचिका में बताया गया है कि हलाल सर्टिफिकेशन की व्यवस्था पहली बार 1974 में लागू की गई। 1974 से पहले हलास प्रमाणीकरण की व्यवस्था नहीं थी। इसके साथ यह भी बताया गया है कि 1974 से 1993 तक हलाल सर्टिफिकेशन सिर्फ मीट प्रोडक्ट के लिए दिया जाता था।लेकिन बाद में इसमें कई और उत्पादों को शामिल किया गया। 

जबरदस्ती हलाल मीट खिलाने का जिक्र
अर्जी में अपील की गई है कि 1974 से अब तक जितने हलाल सर्टिफिकेट जारी किये गए हैं उन्हें खारिज किया जाए। इस अर्जी को देश की 85 फीसद जनसंख्या की तरह से दायर की गई है। खास तौर से संविधान के अनुच्छेद 14, 21 के उल्लंघन का भी जिक्र है। याचिकाकर्ताओं का कहना है कि महज 15 फीसद लोगों की भलाई के लिए इस तरह की व्यवस्था को अमल में कैसे रखा जा सकता है। 85 फीसद आबादी को जबरदस्ती हलाल मीट खिलाने की कोशिश की जा रही है।

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