नई दिल्ली। रामलीला मैदान में वैसे तो राजनीतिक दल मजमा लगाते हैं,सत्ता पक्ष अपनी बात रखता है तो विपक्ष सरकार के खिलाफ इस मैदान से संदेश देता है। यह मैदान अन्ना आंदोलन का गवाह बना तो एक ऐसी शख्सित की शपथ का भी साक्षी बना जो महज एक साल की सक्रिय राजनीतिक संघर्ष के बाद दिल्ली की सत्ता पर काबिज हो चुका था और उस शख्स का नाम था अरविंद केजरीवाल। आप के संयोजक केजरीवाल एक नहीं, दो नहीं तीसरी बार दिल्ली की कमान संभालने जा रहे हैं और रामलीला मैदान एक बार फिर उनके शपथ का साक्षी बनेगा तो इंतजार इसका भी है कि क्या एक बार फिर रामलीला मैदान में इंसान से इंसान का भाईचारा का तराना सीएम अरविंद केजरीवाल से सुनने को मिलेगा।
2013 में पहली बार बनी थी केजरीवाल सरकार
2013 का वो साल था जब एक नई पार्टी आम आदमी पार्टी की पहचान के साथ दिल्ली की राजनीति में तेजी से जगह बनाती जा रही थी। दिल्ली के साथ साथ देश की फिजा में कांग्रेस के खिलाफ माहौल था। 15 वर्षों के शासन के बाद शीला दीक्षित दम ठोंक रही थीं तो बीजेपी को भी अपने वनवास के खत्म होने का इंतजार था। लेकिन जो नतीजे आए वो चौंकाने वाले थे, बीजेपी बड़ी पार्टी के तौर पर सामने थी तो आप भी उससे महज एक सीट पीछे और कांग्रेस का प्रदर्शन उम्मीद के बहुत खिलाफ नहीं था। यहीं पर केजरीवाल ने एक अनूठा प्रयोग किया जो भारतीय राजनीति का स्वरूप ही था। लेकिन उन्होंने कांग्रेस के साथ शर्त लगाई। कांग्रेस के पास कोई चारा नहीं था और दोनों दल एक साथ आए।
अरविंद केजरीवाल की शपथ की खास बातें
28 दिसंबर 2013 दिन शनिवार... पहली बार शपथ
14 फरवरी 2014 को इस्तीफा---जनलोकपाल के मुद्दे पर कांग्रेस पर लगाया वादाखिलाफी का आरोप और 49 दिन बाद दिया इस्तीफा।
14 फरवरी 2015 दूसरी बार शपथ.. दिन शनिवार
16 फरवरी 2015 तीसरी बार शपथ---दिन रविवार
रामलीला मैदान से अलग अंदाज में केजरी शपथ
रामलीला मैदान में शपथ मंच पर दुबले कद काठी के अरविंद केजरीवाल पहुंचे तो दिल्ली की फिजा में गजब का उत्साह था। उस शपथ की खासियत यह थी कि किसी सीएम ने न केवल खुद गाना गया बल्कि लोगों से साथ देने का आग्रह भी किया। लोगों ने भी निराश नहीं किया और सीएम के तराने को दोहराते रहे। यह बात अलग है कि केजरीवाल की सरकार पहली सरकार सिर्फ 49 दिन चली। अरविंद केजरीवाल को लगने लगा कि अब वो राष्ट्रीय फलक पर किस्मत आजमा सकते हैं और उस दिशा में आगे बढ़ते हुए वाराणसी में नरेंद्र मोदी के खिलाफ ताल ठोंकी लेकिन करारी हार का सामना करना पड़ा।
क्या एक बार फिर 2013, 2015 दोहराएंगे केजरीवाल
2014 के अंत में एक बार दिल्ली चुनाव में जाने के लिए तैयार थी। केजरीवाल दिल्ली की जनता के बीच गए अपनी गल्तियों को मानते हुए माफी मांग ली। दिल्ली की जनता ने उन्हें माफ कर दिया और चुनावी नतीजा ऐतिहासिक था। 70 में से 67 सीटें आप की झोली में जा गिरी। एक बार फिर रामलीला मैदान में अरविंद केजरीवाल की शपथ का गवाह बना। इस दफा भी उन्होंने एक बार फिर सबसे इंसान का इंसान से भाईचारा को गुनगुनाने की अपील की। अगर हम 2020 के चुनावी नतीजों की बात करें तो तीसरी बार जनादेश केजरीवाल के पक्ष में है, देखने वाली बात यह होगी कि अपने चिर परिचित अंदाज में वो उसी तराने को दोहराते हैं या नहीं।
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