नहीं चला परिवार का मैजिक, बेअसर हुए आजम, भाजपा ने अखिलेश के गढ़ में ऐसे लगाई सेंध

देश
प्रशांत श्रीवास्तव
Updated Jun 26, 2022 | 17:20 IST

Rampur,Azamgarh by Election 2022: भाजपा को विधानसभा चुनाव में बड़े बहुमत के साथ जीतने के बावजूद आजमगढ़ में सभी 5 सीटों पर हार मिली थी। वहीं  जेल में बंद रहने के बावजूद आजम खान का रामपुर में करिश्मा चला था और सपा को जिले की 5 में से 3 सीटों पर जीत हासिल हुई थी।

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भाजपा ने आजमगढ़, रामपुर में ऐसे लगाई सेंध  |  तस्वीर साभार: ANI
मुख्य बातें
  • धर्मेंद्र यादव की हार से साफ हो गया है कि जनता ने परिवारवाद को नकार दिया है।
  • आजमगढ़ में बसपा ने सपा के वोट में बड़ी सेंध लगाई है।
  • रामपुुर में सपा की हार का असर आने वाले दिनों में आजम खान और अखिलेश यादव के रिश्तों पर भी दिख सकता है।

Rampur,Azamgarh by Election 2022: करीब साढ़े तीन महीने पहले उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ (Yogi Adityanath) के नेतृत्व में भाजपा (BJP) ने जब बड़ी जीत (255 विधानसभा सीट) हासिल कर , सत्ता में दोबारा वापसी की थी, उस वक्त उसे आजमगढ़ (Ajamgarh) और रामपुर (Rampur) के नतीजों का जरूर मलाल रहा होगा। क्योंकि बड़े बहुमत के साथ जीतने के बावजूद आजमगढ़ में भाजपा को सभी 5 सीटों पर हार मिली थी। वहीं  जेल में बंद रहने के बावजूद आजम खान का रामपुर में करिश्मा चला था और सपा को जिले की 5 में से 3 सीटों पर जीत हासिल हुई थी। लेकिन साढ़े तीन महीने बाद ही जनता ने अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) और आजम खान (Azam khan) के गढ़ में भाजपा को जिताकर को दो बड़े संदेश दे दिए हैं।

सबसे पहला और बड़ा संदेश यह है कि जनता ने परिवारवाद को नकार दिया है। दूसरा संदेश यह है कि रामपुर में अब आजम खान का पहले वाला जादू नहीं रह गया है। इसके अलावा नतीजों ने बसपा के लिए राहत की खबर लाई है। क्योंकि आजमगढ़ में बसपा उम्मीदवार को मिले वोटों से साफ है कि मायावती का दलित-मुस्लिम दांव को जनता ने पूरी तरह नहीं नकारा है, और यह उनकी भविष्य की राजनीति के लिए भी अहम संदेश है। जबकि भाजपा की जीत ने एक बार फिर साबित कर दिया है कि योगी आदित्यनाथ के मुकाबले फिलहाल विपक्ष में कोई नहीं है।

परिवारवाद को जनता ने नकारा

पिछले 26 साल का रिकॉर्ड देखा जाय तो आजमगढ़ में समाजवादी पार्टी  का एकतरफा दबदबा रहा है। इस दौरान 7 बार लोकसभा सीट के लिए चुनाव हुए हैं और इसमें से 4 बार सपा ने जीत हासिल की है। जबकि 2 बार बसपा और एक बार भाजपा को जीत हासिल हुई थी। इसमें से 2014 में मुलायम सिंह यादव और 2019 में अखिलेश यादव सांसद रहे हैं। ऐसे में जब अखिलेश ने विधायक के लिए सांसद की सीट छोड़ी तो उन्होंने  परिवार से चचेरे भाई धर्मेंद्र यादव को मैदान में उतारा लेकिन उनका यह दांव काम नहीं आया है। और धर्मेंद्र यादव के खिलाफ भाजपा नेता और भोजपुरी स्टार दिनेश लाल यादव ऊर्फ निरहुआ ने निर्णायक जीत हासिल कर ली है। साफ है कि अखिलेश यादव का परिवार को अपनी सींट सौंपने का दांव फेल हो गया है।

बसपा ने बिगाड़ा खेल 

आजमगढ़ में जब 2019 में लोकसभा चुनाव हुए थे, तो उस वक्त सपा और बसपा ने मिलकर चुनाव लड़ा था। ऐसे में अखिलेश यादव के खिलाफ बसपा ने उम्मीदवार नहीं उतारा था। उन चुनावों में अखिलेश यादव ने, भाजपा प्रत्याशी  निरहुआ को करीब 2.80 लाख वोटों से हराया था। लेकिन इस बार मायावती ने बसपा से शाह आलम उर्फ गुड्डू जमाली को मैदान में उतारा था। और खबर लिखे जाने तक  जमाली को मिले 2.66 लाख वोटों ने ही धर्मेंद्र यादव के लिए मुश्किलें खड़ी कर दी हैं। क्योंकि निरहुआ धर्मेंद्र यादव से करीब 8700  वोटों से जीते हैं। उन्हें 3.12 लाख और धर्मेंद्र यादव को करीब 3.04 लाख वोट मिले हैं।

साफ है कि मायावती ने सपा को बड़ा झटका दिया है। क्योंकि मुस्लिम वोट बंट गया और सपा को उसका खामियाजा भुगतना पड़ा है। साथ ही इस चुनाव से मायावती को भी संजीवनी मिलेगी। क्योंकि विधानसभा चुनाव के नतीजों के बाद ऐसा लग रहा था। दलित वोट बैंक भी मायावती से खिसक गया है। लेकिन शाह आलम उर्फ गुड्डू जमाली को 2.60 लाख से ज्यादा वोट मिलने से साफ है कि इन चुनाव में दलित और मुस्लिम वोट मायावती को बड़ी संख्या में मिले हैं। ऐसे में विधानसभा चुनाव में केवल एक सीट पाने वाली बसपा को आगे के लिए संजीवनी मिल गई है।

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आजम खान भी बेअसर

इन उप चुनाव में सपा की ओर से सबसे ज्यादा मेहनत आजम खान ने की थी। 27 महीने बाद जेल से निकलने के बाद, उनकी कोशिश थी कि वह रामपुर और आजमगढ़ में सपा को जीत दिलाकर, अपने कद को कहीं ज्यादा मजबूत कर पाएंगे। लेकिन उनकी यह कोशिश फेल हो गई है। और सबसे बड़ी बात यह है कि वह रामपुर सीट भी नहीं बचा पाए हैं। वहां से समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार मोहम्मद आसिम रजा, भाजपा के उम्मीदवार घनश्याम सिंह लोधी से 42 हजार से ज्यादा के बड़े अंतर से चुनाव हार गए हैं। लोधी कभी आजम खान के दाहिना हाथ हुआ करते थे। और 2022 में ही उन्होंने सपा का दामन छोड़, भाजपा का हाथ थामा था। इसी तरह आसिम रजा भी बेहद आजम खान के बेहद करीबी थी। लेकिन रजा की हार से 10 बार से रामपुर से विधायक रह चुके आजम खान को बड़ा झटका दिया है। और इसका असर आने वाले दिनों में अखिलेश-आजम के रिश्तों पर भी दिख सकता है।

अखिलेश ने क्यों बनाई दूरी

उप चुनाव के प्रचार से अखिलेश यादव की दूरी भी कई सवाल खड़े कर रहे हैं। एक तरफ जहां भाजपा के चुनाव प्रचार की कमान मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ खुद संभाले हुए थे। वहीं अखिलेश यादव ने आजमगढ़ और रामपुर में चुनाव प्रचार ही नहीं किया और सब-कुछ आजम खान के भरोसे छोड़ दिया था। ऐसे में एक सवाल यह भी उठ रहा है कि अखिलेश यादव ने उप चुनाव से दूरी क्यों बनाई रखी थी। यह सवाल जब प्रचार के दौरान पूछा जा रहा था तो सपा के नेताओं का कहना था कि जीत का पूरा भरोसा है, और अखिलेश यादव के बिना गए भी जाती हासिल हो जाएगी। लेकिन अब पार्टी के अंदर यह सवाल जरूर उठेंगे। सपा प्रमुख ने क्यों दूरी बनाई थी। 

भाजपा को मिला फायदा

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने उप चुनाव में हुई जीत की वजह, भेद-भाव के बिना हर वर्ग के लिए कए गए काम और डब इंजन की सरकार और भाजपा की लोक कल्याणकारी नीतियों को बताया है। इस जीत के बाद उत्तर प्रदेश से भाजपा को लोक सभा सांसदों की संख्या 64 हो गई है। जबकि समाजवादी पार्टी के सांसदों की संख्या 5 से घटकर 3 हो गई है। इन नतीजों का 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले चुनावी गठबंधनों पर भी असर पड़ने की संभावना है। क्योंकि उप चुनाव में सपा के लिए, उनके गठबंधन के साथी जयंत चौधरी और ओम प्रकार राजभर ने भी प्रचार किया था। लेकिन अखिलेश की दूरी और  सपा के गढ़ में भाजपी की जीत नए समीकरण की राह जरूर खोल सकती है।

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