नई दिल्ली : शहीद-ए-आजम भगत सिंह का जन्म 28 सितंबर 1907 को पंजाब के एक सिख परिवार में हुआ था। वे बेहद कम उम्र में स्वतंत्रता सेनानियों में से एक थे जिन्हें छोटी उम्र में फांसी के फंदे पर लटका दिया गया था। भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में वे एक बहादुर व क्रांतिकारी सेनानी थी। उनकी देशभक्ति की भावना ना केवल अंग्रेजी शासन के खिलाफ थी बल्कि अपने ही देश में धर्म के नाम पर बंटे हुए लोगों के खिलाफ भी थी।
उन्होंने असहयोग आंदोलन में भी हिस्सा लिया था। बाद में वे मार्क्स की क्रांतिकारी विचारधाराओं से प्रेरित हुए। छात्र जीवन में वे एक मेधावी छात्र थे जिन्हें पढ़ने के अलावा एक्स्ट्रा करिकुलर एक्टिविटीज में भी खूब मन लगता था। 13 साल की उम्र में ही उन्होंने स्कूल छोड़ दिया और देश की सेवा में अपने जीवन को लगा दिया। महज 23 साल की उम्र में ही वे इस दुनिया को अलविदा कह गए।
हंसते-हंसते फांसे के फंदे पर झूल गए
एक ब्रिटिश पुलिस अधिकारी को मारने के जुर्म में उन्हें अंग्रेजी हुकूमत के द्वारा फांसी की सजा सुनाई गई और इस तरह वे 23 मार्च 1931 को 23 साल की उम्र में ही हंसते-हंसते अपनी जान दे दी। जिस समय जालियांवाला बाग हत्याकांड हुआ था उस समय वे 12 साल के थे। घटना वाले दिन वो स्कूल में थे।
शहीद भारतीयों के खून की करते थे पूजा
कहा जाता है कि उन्होंने उस दिन स्कूल बंक कर दिया था और उस जगह पर गए थे। वहां से उन्होंने शहीद हुए भारतीयों के खून से सनी मिट्टी को एक बोतल में भरा था और घर ले आए थे। वे हर रोज उसकी पूजा करते थे। वे 8 साल की उम्र से ही अंग्रेजी शासन के खिलाफ हो गए थे। इतनी छोटी उम्र से ही वे अंग्रेजों को देश से खदेड़ने की बात करते थे।
शादी की बात पर ये था जवाब
एक बार जब उनके माता-पिता ने उनसे शादी को लेकर बात की तो वे भागकर कानपुर आ गए। उन्होंने अपने माता-पिता से कह दिया कि अगर मैं अंग्रेजी शासन काल में शादी करुंगा तो मेरी 'दुल्हन' केवल मौत होगी। वे लेनिन से भी प्रभावित हुए। वे कहते थे कि वे (अंग्रेज) मुझे भले ही मार देंगे लेकिन मेरे विचारों को नहीं मार पाएंगे। वे मुझे भले ही मार देंगे लेकिन मेरी आत्मा को नहीं मार पाएंगे।
अंग्रेजों को लिखी थी अंतिम चिट्ठी
उन्होंने अंग्रेजों को लिखे अपने अंतिम लेटर में कहा था कि फांसी देने के बजाए वे उन्हें गोली मार दें। हालांकि अंग्रेजों ने उनकी बात नहीं मानी। कहा जाता है कि जब उन्हें फांसी दी जा रही थी उस समय वे मुस्कुरा रहे थे। इससे अंग्रेजों को उनपर और क्रोध आ रहा था। भगत सिंह ने 'इंकलाब जिंदाबाद' का नारा दिया जो बाद में देशभर में प्रचलित हो गया और आज भी इस नारे को लगाया जाता है।
जेल में जोर-जोर से हंस रही थी
एक किस्सा ये भी है कि जब वे जेल में थे तब उनकी मां उनसे मिलने आई थी उस समय वे काफी जोर-जोर से हंस रहे थे। उन्हें इस तरह हंसता देख जेल अधिकारी बेहद आश्चर्यचकित थे कि जो आदमी मौत से चंद कदम दूर है वह इतना खुश कैसे रह सकता है।
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