नई दिल्ली: गणित (Math) के क्षेत्र में अपनी अलग ही पहचान रखने वाले महान गणितज्ञ वशिष्ठ नारायण सिंह (Vashishtha Narayan Singh) की पटना में डेथ हो गई है सिंह करीब 40 साल से सिजोफ्रेनिया बीमारी से पीड़ित थे। दुखद बात ये है कि डेथ के बाद वशिष्ठ नारायण सिंह का पार्थिव शरीर अस्पताल परिसर में काफी देर तक स्ट्रेचर पर रखा रहा।
बताया जा रहा है कि पटना मेडिकल कालेज प्रशासन की तरफ से एंबुलेंस उपलब्ध नहीं कराई गई उनके परिजनों को काफी देर तक पार्थिव शरीर के साथ अस्पताल के बाहर ही खड़े रहना पड़ा। डॉ़ सिंह के भाई अयोध्या प्रसाद सिंह ने अस्पताल प्रशासन पर उपेक्षा करने का आरोप लगाया है।
उनका आरोप है कि अस्पताल ने एंबुलेंस तक उपलब्ध नहीं करवाया और शव को बाहर निकाल दिया। बाद में मीडिया में खबर आने के बाद प्रशासन एंबुलेंस लेकर पहुंचा। उनके भाई ने कहा कि जब जिंदा में ही कुछ नहीं किया गया तो अब सरकार क्या करेगी? उन्होंने एक कहावत कही, अंधे के सामने रोना, अपना ही दीदा (आंख) खोना।
वहीं इस मामले पर कवि कुमार विश्वास ने बिहार सरकार पर निशाना है और ट्वीट करते हुए लिखा, 'उफ्फ, इतनी विराट प्रतिभा की ऐसी उपेक्षा?
वशिष्ठ नारायण जी के करीबी ने बताया कि कुछ समय से पटना में रहने वाले सिंह की तबीयत गुरुवार तड़के खराब हो गई थी, जिसके बाद परिजन उन्हें लेकर तत्काल पटना मेडिकल कॉलेज व अस्पताल (पीएमसीएच) पहुंचे, जहां चिकित्सकों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया।
वहीं उनके निधन पर उपेक्षा के बाद कुमार विश्वास के किए गए ट्वीट के बाद केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह ने भी कहा है कि इस महान विभूति का अंतिम संस्कार राजकीय सम्मान के साथ किया जाएगा।
बिहार के भोजपुर के बसंतपुर के रहने वाले सिंह की तबीयत पिछले महीने भी खराब हुई थी, जिनका इलाज पीएमसीएच में ही कराया गया था, बाद में इन्हें छुट्टी दे दी गई थी। उनके निधन पर बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने शोक जताया है। उन्होंने डॉ़ सिंह के निधन पर शोक जताते हुए कहा कि सिंह ने समाज और बिहार का नाम रौशन किया है। उन्होंने कहा, 'उनका निधन बिहार के लिए अपूर्णीय क्षति है। वे प्रतिष्ठित व्यक्ति थे। उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करता हूं।'
आंइस्टीन के सापेक्ष सिद्धांत को दी थी चुनौती
गणितज्ञ वशिष्ठ नारायण सिंह अपने शैक्षणिक जीवनकाल से ही कुशाग्र रहे थे। डॉ़ सिंह नेतरहाट आवासीय विद्यालय के छात्र थे और सन 1962 उन्होंने दसवीं की परीक्षा उत्तीर्ण की थी। पटना सायंस कॉलेज में पढ़ते हुए उनकी मुलाकात अमेरिका से पटना आए प्रोफेसर कैली से हुई।
उनकी प्रतिभा से प्रभावित होकर प्रोफेसर कैली ने उन्हे बर्कली आ कर शोध करने का निमंत्रण दिया। कहा जाता है कि उन्होंने आंइस्टीन के सापेक्ष सिद्धांत को चुनौती दी थी। गणितज्ञ वशिष्ठ नारायण सिंह अपने शैक्षणिक जीवनकाल से ही कुशाग्र रहे थे।
कैलीफोर्निया विश्वविद्यालय से ली थी पीएचडी की डिग्री
सन 1963 में वे कैलीफोर्निया विश्वविद्यालय में शोध के लिए चले गए। 1969 में उन्होंने कैलीफोर्निया विश्वविद्यालय से पीएचडी की डिग्री प्राप्त की। चक्रीय सदिश समष्टि सिद्धांत पर किए गए उनके शोध कार्य ने उन्हें भारत और विश्वभर में प्रसिद्ध कर दिया।
अपनी पढ़ाई खत्म करने के बाद कुछ समय के लिए वह भारत आए, मगर जल्द ही अमेरिका वापस चले गए और वॉशिंगटन में गणित के प्रोफेसर के पद पर काम किया। इसके बाद 1971 में सिंह पुन: भारत वापस लौट गए। उन्होंने भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, कानपुर और भारतीय सांख्यिकी संस्थान, कोलकाता में भी काम किया। साल 1974 से वे कई गंभीर बीमारियों से ग्रसित हो गए थे।
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