इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ पीठ के समक्ष एक याचिका दायर की गई है जिसमें भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) को आगरा में स्थित ताजमहल के अंदर 20 कमरे खोलने के लिए निर्देश जारी करने की मांग की गई है। इसका मकसद है कि यह पता लगाया जाए कि क्या हिंदू मूर्तियां और शिलालेख वहां छिपे हुए हैं? भारतीय जनता पार्टी (BJP) के अयोध्या जिले के मीडिया प्रभारी डॉ रजनीश ने ये याचिका दायर की है। सुनवाई के लिए अदालत में मामला सूचीबद्ध होने के बाद वकील रुद्र विक्रम सिंह अदालत में उनका प्रतिनिधित्व करेंगे।
इन कमरों की जांच के लिए और वहां हिंदू मूर्तियों या शास्त्रों से जुड़े सबूतों की तलाश के लिए समिति के गठन की भी मांग की है, जो राज्य सरकार द्वारा गठित हो।
भाजपा नेता ने कहा कि ताजमहल से जुड़ा एक पुराना विवाद है। ताजमहल में करीब 20 कमरे बंद हैं और किसी को अंदर जाने की इजाजत नहीं है। ऐसा माना जाता है कि इन कमरों में हिंदू देवताओं और शास्त्रों की मूर्तियां हैं। मैंने उच्च न्यायालय में एक याचिका दायर कर एएसआई को तथ्यों का पता लगाने के लिए इन कमरों को खोलने का निर्देश देने की मांग की है। इन कमरों को खोलने और सभी विवादों को शांत करने में कोई बुराई नहीं है।
2015 में छह वकीलों ने दावा किया कि ताजमहल मूल रूप से एक शिव मंदिर था। 2017 में भाजपा नेता विनय कटियार ने दावा दोहराया। जनवरी 2019 में भाजपा नेता अनंत कुमार हेगड़े ने यह भी दावा किया कि ताजमहल शाहजहां द्वारा नहीं बनाया गया था, बल्कि उनके द्वारा राजा जयसिम्हा से खरीदा गया था।
इस तरह के दावों को न केवल इतिहासकारों द्वारा बल्कि भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण द्वारा भी रोक दिया गया। फरवरी 2018 में एएसआई ने आगरा की एक अदालत में एक हलफनामा दायर किया, जिसमें कहा गया था कि ताजमहल को वास्तव में मुगल सम्राट शाहजहां द्वारा एक मकबरे के रूप में बनाया गया था।
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