नई दिल्ली। लगता है छत्तीसगढ़ में मुख्य मंत्री (सीएम) की कुर्सी किसकी होगी, इसकी पिक्चर अभी बाकी है। क्योंकि एक बार फिर कुर्सी के दावेदार और राज्य सरकार में स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंहदेव दिल्ली में हैं। आधिकारिक तौर पर तो यही कहा जा रहा है कि मंत्री जी निजी कार्य से हैं, पर कहानी कुछ और ही है। क्योंकि बीते शुक्रवार को जब मुख्य मंत्री भूपेश बघेल यह कह कर राजधानी रायपुर गए थे कि मैंने राहुल जी को बतौर मुख्यमंत्री छत्तीसगढ़ आमंत्रित किया है। वह राज्य में अब तक हुए विकास कार्यों को देखेंगे। वहीं ढाई-ढाई साल मुख्यमंत्री रहने वाले फॉर्मूले की बात पर बघेल ने कहा कि राज्य प्रभारी पी एल पूनिया इस बारे में पहले ही साफ कर चुके हैं। इस बारे में आगे कहने की कुछ जरूरत नहीं है। उससे यह बात तो साफ हो गई थी कि अभी आलाकमान ने बघेल की येलो सिग्नल ही दिया है और ग्रीन सिग्नल का इंतजार है।
भूपेश बघेल और टीएस सिंह देव की लड़ाई सार्वजनिक
'छत्तीसगढ़ डोल रहा है, बाबा-बाबा बोल रहा है' बनाम 'छत्तीसगढ़ अड़ा हुआ है दाउ संग खड़ा हुआ है' के नारे अब खुलेआम कांग्रेस के भीतर गुटबाजी को सार्वजनिक कर रहे हैं। और यह गुटबाजी शुक्रवार की बैठक के बाद भी खत्म नहीं हुई है। यही नहीं टीएस सिंहदेव ने 24 अगस्त को राहुल गांधी के साथ हुई मीटिंग के बाद अपनी दावेदारी का इशारा कर दिया था। उन्होंने मीडिया से बात करते हुए कहा अगर कोई खिलाड़ी एक टीम में खेलता है तो क्या वह कैप्टन बनने के बारे में नहीं सोचता है, क्या आप में से कोई कैप्टन नहीं बनना चाहता। उन्होंने कहा कि सवाल सिर्फ उसके विचार का नहीं बल्कि उसकी क्षमताओं का है, अब आखिरी फैसला हाई कमान का ही होगा। यही नहीं वह यह भी दावा कर रहे हैं कि फैसला होना अभी बाकी है। ऐसे में सिंहदेव का अचानक दिल्ली पहुंचाना कई सारे संकेत दे रहा है।
अचानक दिल्ली पहुंचे
सूत्रों के अनुसार टीएस सिंहदेव बीते सोमवार को अचानक दिल्ली के लिए रवाना हुए हैं। उनका पहले से दिल्ली जाने का कोई प्लान नहीं था। इसके अलावा इन घटनाक्रमों को बेहद करीब से देखने वाले एक सूत्र का कहना है कि 24 अगस्त को जब आलाकमान से दिल्ली में भूपेश बघेल और टीएस सिंह देव की मुलाकात हुई तो उस वक्त सिंहदेव ने आलाकमान से साफ कर दिया था कि तय फॉर्मूले के अनुसार उन्हें सत्ता मिलनी चाहिए। अगर उसे लागू नहीं किया गया तो वह मंत्रिमंडल छोड़े देंगे। साथ ही उन्होंने इस बात के भी संकेत दिए थे कि वह पार्टी भी छोड़ सकते हैं। उस बैठक में राहुल गांधी भी तय फॉर्मूले के अनुसार बदलाव चाह रहे थे। इस बैठक में उत्तर प्रदेश की प्रभारी प्रियंका गांधी भी मौजूद थी। ऐसा माना जा रहा है कि राहुल और प्रियंका बिना किसी विवाद के सत्ता परिवर्तन चाहते हैं।
बगावत का डर
असल में आलाकमान जल्दबाजी में कोई फैसला नहीं करना चाहता है क्योंकि जिस तरह से भूपेश बघेल ने बीते बृहस्पतिवार को बिना बुलाए अपने समर्थक विधायकों को रायपुर से दिल्ली रातों-रात पहुंचाया था। उससे साफ है कि वह आलाकमान को यह संदेश देना चाहते हैं कि अगर उनसे कुर्सी छीनी गई तो पार्टी में बगावत हो सकती है। बृहस्पतिवार और शुक्रवार को 50 से ज्यादा विधायक दिल्ली पहुंच गए थे। जबकि प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष मोहन मरकाम ने कहा था कि आलाकमान ने विधायकों को दिल्ली नहीं बुलाया है। उन्होंने दिल्ली गए विधायकों को भी अप्रत्यक्ष रुप से संदेश भी दिया था कि वह अनुशासन में रहे और पार्टी आलाकमान के निर्देशों का पालन करें। ऐसे में आलाकमान को इस बात का भी डर है कि पार्टी में कोई बगावत न हो जाय। जो एक नई मुसबीत बन सकता है। क्योंकि पहले ही वह पंजाब और राजस्थान की गुटबाजी से परेशान है। इस खींचतान में एक बात तो साफ हो गई है कि अभी पिक्चर खत्म नहीं हुई है।
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