नई दिल्ली: जम्मू-कश्मीर के हंदवाड़ा (Handwara Encounter) में शनिवार से शुरू हुई मुठभेड़ में भारतीय सेना के दो जांबाज ऑफिसर सहित पांच सुरक्षाकर्मी शहीद हो गए है। शहीद होने से पहले इन्होंने बंधक बनाए गए स्थानीय लोगों को सुरक्षित बचाया और दो आतंकी भी इस दौरान मारे गए। आतंकवादियों के साथ हुई मुठभेड़ में कर्नल आशुतोष शर्मा, मेजर अनुज सूद के अलावा नायक राजेश कुमार, लांस नायक दिनेश और जम्मू-कश्मीर पुलिस के उपनिरीक्षक शकील काजी भी शहीद हो गए।
पुलिस और आरआर ने मिलकर चलाया था अभियान
शुक्रवार को जैसे ही सुरक्षाबलों को सूचना मिली की हंदवाड़ा में कुछ आतंकी छिपे हैं तो तुरंत राष्ट्रीय रायफल (आरआर) ने पुलिस के साथ मिलकर संयुक्त अभियान शुरू किया और आतंकियों की तलाश शुरू हो गई। पूरे इलाके की घेराबंदी हुई तो आतंकियों की तरफ से फायरिंग शुरू हो गई और इसी दौरान कुछ आतंकी भाग निकले। शनिवार को भी कर्नल आशुतोष शर्मा के नेतृत्व में जब टीम तलाशी अभियान में जुटी थी तो उन्हें सूचना मिली कि एक घर में आतंकी छिपे हैं।
आतंकी रात में भागने की पूरी कोशिश कर रहे थे लेकिन सुरक्षाबलों ने उन्हें मौका नहीं दिया और दो आतंकियों को मार गिराया जिसमें से एक की पहचान तो लश्कर के शीर्ष कमांडर हैदर के रूप में हुई है। इसके बाद जब सेना की टीम घर के अंदर गई तो वहां कर्नल आशुतोष समेत चार और शहीद जवानों के शव पड़े थे।
बंधकों को सुरक्षित करवाया रिहा
सुरक्षाबलों ने अपनी वीरता और सूझबूझ का परिचय देते हुए बंधक बनाए गए लोगों को सुरक्षित बाहर निकाला तो इसी दौरान आतंकियों ने गोलियों की बौछार कर दी। जिसके बाद सुरक्षाबलों ने पूरी घेराबंदी कर ली। इस बीच कर्नल आशुतोष से उनकी टीम ने संपर्क करना चाहा लेकिन वह हो नहीं पाया क्योंकि उनका रेडियो सैट गोलीबारी में टूट गया था। इस बीच मौसम भी लगातार खराब हो रहा था और बारिश होने लगी। जब कर्नल शर्मा से संपर्क नहीं हो पाया तो टीम ने उनके मोबाइल फोन पर कॉल किया तो दूसरी तरफ से फोन उठाने वाले ने कहा- सलाम वालेकुम। टीम ने दुबारा फोन किया तो फिर वही आवाज आई और फोन उठाने वाले आतंकी ने सलाम वालेकुम बोला।
दो बार सेना पदक से सम्मानित हो चुके थे कर्नल शर्मा
आतंकवाद से मुकाबला करते हुए तीन दशक में यह दूसरा ऐसा समय रहा जब 21 वीं राष्ट्रीय राइफल्स ने अपना दूसरा कमांडिंग ऑफिसर (सीओ) खो दिया। दो बार सेना पदक से सम्मानित किये जा चुके कर्नल आशुतोष शर्मा को कश्मीर में दो बार वीरता पदक से भी सम्मानित किया जा चुका था। बटालियन ने अपना पहला कमांडिंग ऑफिसर कर्नल राजींदर चौहान के रूप में 21 अगस्त 2000 को खोया था।
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