नई दिल्ली : तृणमूल कांग्रेस की प्रमुख ममता बनर्जी बुधवार को पश्चिम बंगाल की तीसरी मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ग्रहण करेंगी। इस बार बंगाल विधानसभा चुनाव में टीएमसी ने प्रचंड जीत दर्ज की है। राज्य में टीएमसी को सत्ता से बेदखल करने के लिए भाजपा ने ममता बनर्जी की मजबूती के साथ घेराबंदी की थी लेकिन भगवा पार्टी की सभी चुनौतियों एवं उसके आक्रामक तेवरों को जवाब देते हुए टीएमसी प्रमुख ने यह जता दिया कि बंगाल की नेता वही हैं। मुख्यमंत्री पद का शपथ लेने के बाद ममता के सामने सबसे बड़ी चुनौती कोरोना संक्रमण एवं उसकी चुनौतियों से निपटना है। राज्य में पिछले कुछ दिनों से संक्रमण के मामले तेजी के साथ बढ़े हैं।
जुझारू और आक्रामक नेता हैं ममता
ममता बनर्जी की छवि जुझारू एवं आक्रामक नेता की रही है। वह हार मानने वाली नेताओं में से नहीं हैं। उन्हें जब जब चुनौती मिली तो वह घबराई नहीं बल्कि मजबूती एवं जुझारूपन के साथ उनका सामना किया। इसी जुझारूपन और उनके आक्रामक तेवर ने साल 2011 में लेफ्ट को सत्ता से बाहर कर दिया। बंगाल चुनाव के लिए भाजपा ने जब उनकी घेरेबंदी की तो वह परेशान नहीं हुईं। बल्कि मजबूती और अपनी आक्रामकता से उसे जवाब दिया। नंदीग्राम सुवेंदु अधिकारी का गढ़ है और यहां उन्हें भाजपा का पूरा समर्थन मिला। ऐसे में यहां से चुनाव लड़कर ममता बने अधिकारी और भाजपा दोनों को चुनौती दी।
भाजपा को शिकस्त देकर बड़ी नेता के रूप में उभरीं
बंगाल चुनाव में भाजपा को शिकस्त देने वाली ममता बनर्जी विपक्ष की एक बड़ी नेता के रूप में उभरी हैं। बंगाल में उनकी इस जीत का राष्ट्रीय राजनीति पर भी असर पड़ना तय है। आने वाले दिनों में कांग्रेस को छोड़कर अन्य क्षेत्रीय पार्टियां ममता के नेतृत्व में भाजपा के खिलाफ अगर लामबंद होती हैं तो इसमें किसी को हैरानी नहीं होनी चाहिए। आइए जानते हैं कि ममता बनर्जी की राजनीतिक यात्रा से जुड़ी कुछ अहम बातें-
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