नई दिल्ली। विश्व स्वास्थ्य संगठन का कहना है कि 2009 से लेकर आज की तारीख में 6 दफा अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मेडिकल इमरजेंसी का ऐलान हो चुका है, तो उसके पीछे सच भी है। चाहे आर्थिक तौर पर समृद्ध मुल्क हों या विकासशील हर एक देश कोरोना का सामना कर रहा है और एक अदद वैक्सीन की जरूरत है। कुछ देश दावा कर रहे हैं वो वैक्सीन बनाने के काफी करीब पहुंच चुके हैं। उनमें से ऑक्सफोर्ड- एस्ट्रोजेनिका प्रमुख है। अगर वो दवा अंतिम परीक्षण में कामयाब होती है तो उसका उत्पादन भारत में भी होगा।
वैक्सीन पर लगाया दांव
मई के शुरुआती दिनों में पूर्ण रूप से सीलबंद सीरम इंस्टीट्यूच ऑफ इंडिया के कोल्ड रूम में आया। स्टील के उस बॉक्स में एर मिलीलीटर का वायल था जिसमें कोरोना वायरस के खिलाफ मार करने वाल सेल्युलर पदार्थ था। सीरम इंस्टीट्यूत के वैज्ञानिक या शोधकर्ताओं ने उस वायल बिल्डिंग 14 में ले गए और एक फ्लास्क में उड़ेला उसमें कुथ विटामिन्स,सूगर को मिक्स किया और इस तरह लाखों कोशिकाएं पैदा होने लगी। इस तरह से एक बड़ी लड़ाई में यह कोशिश हथियार बनती नजर आई हालांकि पुख्ता तौर पर यह बता पाना अभी भी मुश्किल है कि कोरोना वैक्सीन तक आम लोगों की पहुंच कब तक होगी।
कामयाब तो अर्श नहीं तो फर्श
सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया को एक भारतीय समृद्ध परिवार ने शुरु किया था जिसका घोड़े का व्यापार था। इसे आप जुआ ही कहेंगे कि जिस वैक्सीन के लाखों डोज बनाने पर दांव खेला है उसमें कुछ भी हो सकता है। वो वैक्सीन नाकाम हो सकती है अगर ऐसा होता है तो आर्थिक नुकसान की कल्पना आसानी से किया जा सकता है। लेकिन अगर वो वैक्सीन कामयाब हो जाती है कि अदर पूनावाला जो सीरम इंस्टीट्यूट के चीफ एग्जीक्यूटिव हैं वो दुनिया के रईसदारों में से एक होंगे।
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