कोविड-19: मौत का जोखिम आधा कर देता है वैक्‍सीन का पूरा डोज, आंकड़ों में समझें कितना अहम है टीकाकरण

कोविड से बचाव में वैक्‍सीनेशन को हमेशा अहम बताया जाता रहा है। अब एक बार फिर ICMR के नए रिसर्च में कहा गया है कि कोविड रोधी वैक्‍सीन के सभी डोज लगवाने के बाद इससे होने वाली मौतों का जोखिम लगभग आधा हो जाता है, जबकि वैक्‍सीन नहीं लगवाने या डोज पूरे नहीं करने पर मौतों का जोखिम दोगुना से भी अधिक बढ़ जाता है।

कोविड-19: आंकड़ों में समझें कितना अहम है टीकाकरण
कोविड-19: आंकड़ों में समझें कितना अहम है टीकाकरण  |  तस्वीर साभार: BCCL

नई दिल्‍ली : कोरोना वायरस संक्रमण महामारी से बचाव के लिए सरकार लगातार वैक्‍सीनेशन पर जोर दे रही है। विशेषज्ञों ने हमेशा इस बात पर जोर दिया है कि वैक्‍सीन भले ही संक्रमण से बचाने में सफल न हो, पर यह संक्रमण की स्थिति में मरीज के गंभीर स्थिति में पहुंचने और मौतों की दर कम करने में बेहद अहम भूमिका निभाता है। अब ICMR की रिसर्च में एक बार फिर इस बात की पुष्टि की गई है।

भारतीय चिकित्‍सा अनुसंधान परिषद (ICMR) की एक र‍िपोर्ट के मुताबिक, कोविड संक्रमण के बाद उन लोगों में मौत का जोखिम दोगुने से भी अधिक होता है, जिन्‍होंने वैक्‍सीन की डोज नहीं लगवाई है या जिनका वैक्‍सीनेशन अधूरा है। वहीं, जिन लोगों ने वैक्‍सीन की पूरी डोज लगवाई है, उनमें इस बीमारी से होने वाली मौतों का जोखिम लगभग आधा हो जाता है।

37 अस्‍पतालों के आंकड़ों पर आधारित है रिसर्च

यह रिसर्च कोविड संक्रमण के बाद अस्‍पतालों में भर्ती मरीजों की मौत के बाद उन्‍हें लेकर 37 अस्‍पतालों के आंकड़ों को लेकर किए गए विश्‍लेषण पर आधार‍ित है, जिसके मुताबिक, कोविड संक्रमण से अस्‍पतालों में जिन लोगों ने जान गंवाई, उनमें 10 प्रतिशत ऐसे थे, जिन्‍होंने वैक्‍सीन नहीं लगवाई थी, जबकि कोविड से जान गंवाने वालों में 22 प्रतिशत वे लोग हैं, जिन्‍होंने वैक्‍सीन की पूरी डोज नहीं लगवाई।

इतना ही नहीं, जिन्होंने वैक्‍सीन की पूरी डोज लगवाई, उनमें संक्रमण के दौरान वेंटिलेटर सपोर्ट की जरूरत भी अपेक्षाकृत कम पड़ी। ऐसे लोगों की संख्‍या जहां 5.4 फीसदी बताई गई है, वहीं जिन्‍होंने वैक्‍सीन नहीं लगवाई है, उनमें वेंटिलेर सपोर्ट की जिन मरीजों को जरूरत पड़ी, उनकी दर 11.2 प्रतिशत बताई गई है।

भर्ती होने वाले मरीजों की औसत आयु में फर्क

रिसर्च के दौरान यह भी सामने आया है कि कोविड की तीसरी लहर के दौरान अस्‍पतालों में भर्ती होने वाले मरीजों की औसत उम्र 44 साल के आसपास रही, जबकि इससे पहले की लहर में अस्‍पताल में भर्ती होने वाले मरीजों की औसत आयु 55 साल थी। साथ ही कोविड की तीसरी लहर में जिन लोगों को भी अस्‍पतालों में भर्ती होने की जरूरत पड़ी, वे पहले से किसी न किसी अन्‍य बीमारी से ग्रसित रहे।

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