4 साल बाद दलाई लामा जाएंगे लेह, चीन को फिर लगेगी मिर्ची ! जानें 63 साल पहले क्या हुआ था

Dalai lama to Visit Leh: तिब्बती धर्मगुरु दलाई लामा करीब 4 साल बाद 15 जुलाई को लेह की यात्रा करने जा रहे हैं। उनकी यह यात्रा ऐसे समय पर हो रही है, जब चीन के साथ भारत का पूर्वी लद्दाख में सैनिक गतिरोध बना हुआ है।

dalai lama to visit leh
दलाई लामा से क्यों चिढ़ता है चीन  |  तस्वीर साभार: ANI
मुख्य बातें
  • प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दलाई लाम को जन्मदिन पर दी बधाई
  • 17 मार्च 1959 को 14 वें दलाई लामा तिब्बत से भारत आ गए थे, उन्हें शरण देना चीन को कभी पसंद नहीं आया।
  • जब 2018 में दलाई लामा ने लेह की यात्रा की थी, तो उस वक्त भी चीन बौखला गया था।

Dalai lama to Visit Leh: करीब 4 साल बाद तिब्बती धर्मगुरु दलाई लामा 15 जुलाई को लेह की यात्रा कर सकते हैं। उनकी यह यात्रा ऐसे समय पर हो रही है, जब चीन के साथ भारत का पूर्वी लद्दाख में सैनिक गतिरोध बना हुआ है। चीन इस खींचतान में जन्मदिन पर बधाई के संदेश को भी  कूटनीति के चश्मे से देख रहा है। उसने दलाई लामा के 87 वें जन्मदिन पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के शुभकामना संदेश पर भी ऐतराज जताया है। ऐसे में जन्मदिन  के अगले दिन ही दलाई लामा की यात्रा निश्चित तौर पर चीन की परेशानी बढ़ाएगी। क्योंकि इसके पहले जब 2018 में दलाई लामा ने लेह की यात्रा की थी, तो उस वक्त भी चीन बौखला गया था। इन हरकतों से चीन यह भूल जाता है कि लद्दाख भारत का क्षेत्र हैं और दलाई लामा उसके अतिथि हैं।

दलाई लामा से क्यों चिढ़ता है चीन

असल में चीन और दलाई लामा के संबंध उसके तिब्बत के साथ संबंध में छिपे हुए हैं। चौदहवीं शताब्दी में बौद्ध धर्म के प्रचार के लिए तिब्बत में जेलग स्कूल की स्थापाना हुई और वहीं से गेंद्रुन द्रुप पहले दलाई लामा बनकर निकले। दलाई लामा को तिब्बती गुरू और नेता दोनों रूप में देखते है। एक तरह से उन्हें पथ प्रदर्शक के रूप में माना जाता है। लेकिन इस बीच 19 वीं शताब्दी तक तिब्बत और चीन के बीच स्वतंत्रता को लेकर संघर्ष चलता रहा। 1912 में 13 वें दलाई लामा ने तिब्बत को स्वतंत्र घोषित कर दिया। लेकिन 1949 में साम्यवादी चीन ने तिब्बत पर हमला कर दिया और 1951 में उस पर कब्जा कर लिया। 

चीन  की दमनकारी नीतियों को देखते हुए 17 मार्च 1959 में 14 वें दलाई लामा ने तिब्बत से निकलकर भारत में अपने हजारों अनुयायियों के साथ शरण मांगी। और भारत आकर हिमाचल प्रदेश के धर्मशाला में बस गए। लेकिन भारत का दलाई लामा को शरण देना चीन  को अच्छा नहीं लगा। और 1962 में भारत-चीन युद्ध की एक अहम वजह यह भी रही। उसी समय से दलाई लामा भारत में निर्वासित जीवन जी रहे हैं। और भारत द्वारा उन्हें समर्थन देना, चीन को खटकता रहता है।

बधाई संदेश पर चीन ने क्या कहा

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा दलाई लामा को दी गई बधाई पर, चीन के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता झाओ लिजियान ने एक संवाददाता सम्मेलन में कहा कि भारतीय पक्ष को 14वें दलाई लामा के चीन विरोधी अलगाववादी स्वभाव को पूरी तरह से पहचानना चाहिए। उसे चीन के प्रति अपनी प्रतिबद्धता का पालन करना चाहिए, समझदारी से बोलना और कार्य करना चाहिए तथा चीन के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप करने के लिए तिब्बत से संबंधित मुद्दों का इस्तेमाल बंद कर देना चाहिए।

Dalai Lama की इस बात से चिढ़ गया चीन, कहा- तिब्‍बती धर्मगुरु से वार्ता के लिए तैयार, पर

भारत ने जताई कड़ी आपत्ति

चीन की इस प्रतिक्रिया पर भारत ने कड़ा रूख अपनाते हुए कहा कि सरकार की नीति दलाई लामा को हमेशा देश के सम्मानित अतिथि के रूप में देखने की रही है । विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची ने कहा कि बागची ने कहा 'दलाई लामा भारत में सम्मानित अतिथि और धार्मिक नेता हैं जिन्हें धार्मिक एवं आध्यात्मिक कार्यों को करने के लिये उचित शिष्टाचार एवं स्वतंत्रता प्रदान की गई है । इनके बड़ी संख्या में अनुयायी हैं। ' झाओ ने दलाई लामा को बधाई देने के लिए अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन की भी आलोचना की। चीन की यह प्रतिक्रिया ऐसे समय आई है जब इंडोनेशिया के बाली में जी20 समूह के विदेश मंत्रियों की शिखर बैठक से अलग विदेश मंत्री एस जयशंकर और उनके चीनी समकक्ष वांग यी के बीच द्विपक्षीय वार्ता हुई है।

(एजेंसी इनपुट के साथ)

Times Now Navbharat पर पढ़ें India News in Hindi, साथ ही ब्रेकिंग न्यूज और लाइव न्यूज अपडेट के लिए हमें गूगल न्यूज़ पर फॉलो करें ।

अगली खबर