बीजेपी से जुड़ने के लिए किसी की अनुमति की जरूरत नहीं, इस्तीफे के बाद बोले दिनेश त्रिवेदी

राज्यसभा सांसद पद से इस्तीफा देने के बाद टीएमसी नेता दिनेश त्रिवेदी ने कहा कि अगर उन्हें बीजेपी में शामिल होना होगा तो किसी और से परमिशन नहीं लेनी होगी।

बीजेपी से जुड़ने के लिए किसी की अनुमति की जरूरत नहीं, इस्तीफे के बाद बोले दिनेश त्रिवेदी
दिनेश त्रिवेदी ने राज्यसभा सांसद पद से दिया इस्तीफा 
मुख्य बातें
  • टीएमसी नेता दिनेश त्रिवेदी ने राज्यसभा से दिया इस्तीफा
  • इस्तीफे के बाद बोले- पार्टी में घुटन महसूस हो रही थी
  • दिनेश त्रिवेदी ने कहा कि जिसे राजनीति की ए बी सी डी नहीं आती वो नेता कैसे हो सकता है।

नई दिल्ली। शुक्रवार को राज्यसभा में सामान्य दिनों की तरह कामकाज जारी था। लेकिन एक ऐसा वाक्या सामने आया जिसके बाद हर कोई हैरान था। ममता बनर्जी के विशवस्त रहे दिनेश त्रिवेदी ने अपना इस्तीफा राज्यसभा के सभापति को सौंपा दिया। इस्तीफा देने के बाद उन्होंने कहा एक तरह से इतने वर्षों से घुटन थी और अब वो आजाद हो चुके हैं।

बीजेपी में शामिल होने के लिए अनुमति की जरूरत नहीं
दिनेश त्रिवेदी ने अपने पीड़ा और अपने कदम को Times Now के साथ साझा की। जब उनसे खास सवाल पूछा गया कि क्या वो बीजेपी में शामिल हो सकते हैं तो इस सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि बीजेपी के दरवाजे तो उनके लिए हमेशा से खुले रहे हैं। जहां तक बीजेपी में शामिल होने का सवाल है तो उसके लिए किसी से परमिशन लेने की जरूरत नहीं है। 

जिसे राजनीति नहीं आती वो नेता कैसे बन सकता है
उन्होंने कहा कि जिनको राजनीति की ए बी सी डी नहीं आती वो उनका नेता कैसे बन सकता है। पीएम मोदी की तारीफ करते हुए उन्होंने कहा उनके नेतृत्व क्षमता की तो पूरी दुनिया कायल है। उनके लिए राष्ट्र विकास ही सर्वोपरि है। पीएम मोदी से उनका नाता 90 के दशक से रहा है। जहां तक इस्तीफे की बात है तो वो अब खुद से जुड़ने की कोशिश कर रहे हैं।



ममता जी के पास समय की कमी
दिनेश त्रिवेदी के मुताबिक उनके अंतर्मन ने कहा कि बंगाल में जिस तरह से माहौल बना हुआ है वैसे में काम करना संभव नहीं हैं। ममता बनर्जी के भतीजे अभिषेक बनर्जी पर निशाना साधते हुए वैसे शख्स के आप किस तरह की राजनीति की उम्मीद कर सकते हैं। इसके साथ ही उन्होंने कहा कि एक सीएम के तौर पर ममता बनर्जी के पास समय की कमी हो सकती है। लेकिन पार्टी अध्यक्ष भी वो हैं तो निश्चित तौर पर उन्हें कार्यकर्ताओं की बात सुनने के लिए समय तो होना चाहिए। लेकिन दुर्भाग्य से उनके पास समय नहीं था।

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