दल-बदल से बच जाएगा शिंदे गुट ! जानें क्या कहता है कानून, MP जैसा हो सकता है प्रयोग

देश
प्रशांत श्रीवास्तव
Updated Jun 22, 2022 | 13:14 IST

Maharashtra Political Crisis: महाराष्ट्र में जारी सियासी संकट के बीच राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी और विधानसभा अध्यक्ष की भूमिका बेहद अहम होने वाली है। और शिव सेना की टूनने की संभावना को देखते हुए दल-बदल कानून  भी सुर्खियों में रहने वाला है।

EKNATH SHINDE AND OTHER REBEL MLA.
एकनाथ शिंदे और उनके साथ बागी विधायक  |  तस्वीर साभार: Twitter
मुख्य बातें
  • किसी राजनीतिक दल के दो तिहाई सदस्य टूट कर अलग दल बनाते हैं या किसी दल में विलय करते हैं तो उस समूह पर दल-बदल कानून लागू नहीं होगा।
  • मध्य प्रदेश में बागी विधायकों ने इस्तीफा दे दिया था। और उसके बाद हुए उप चुनाव में भाजपा ने बहुमत हासिल कर लिया।
  • एकनाथ शिंदे ने दावा किया है कि उनके साथ 40 विधायक हैं।

Maharashtra Political Crisis: महाराष्ट्र में लगता है शिवसेना (Shiv Sena) प्रमुख और मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे (Uddhav Thackeray) को अहसास हो गया है कि उनके लिए अब सत्ता बचाना बेहद मुश्किल हो गया है। इस बात के संकेत शिवसेना नेता संजय राउत (Sanjay Raut) के उस बयान से मिल रहे हैं, जिसमें उन्होंने कहा है कि ज्यादा से ज्यादा क्या होगा, सत्ता जाएगी लेकिन यह फिर लौटेगी। और उसके बाद उन्होंने ट्वीट कर विधानसभा भंग होने के भी संकेत दे दिए हैं।

राउत के बयान का सीधा मतलब है कि एकनाथ शिंदे (Eknath Shinde) और उनके साथियों को उद्धव ठाकरे मनाने में कामयाब नहीं हो पाए हैं। इस बात को तब और बल मिला जब शिंदे और उनके साथी सूरत से गुवाहाटी पहुंच गए। वहां  पहुंचकर शिंदे ने दावा किया है कि उनके साथ 40 विधायक हैं। और सूरत के होटल से जो तस्वीरें सामने आई हैं, उसमें 35 विधायक साथ दिखाई दे रहे हैं। ऐसे में अगर शिंदे के 40 विधायकों के दावे को सच माना जाय तो शिवसेना में बगावत रूकने के बजाय बढ़ने के संकेत हैं। इन परिस्थितियों में तय है कि महाराष्ट्र के राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी और विधानसभा अध्यक्ष की भूमिका बेहद अहम होने वाली है, खास तौर पर, जब शिवसेना के टूटने की पूरी संभावना को देखते हुए दल-बदल कानून  (Anti Defection Law) भी सुर्खियों में रहने वाला है।

क्या है सीटों का समीकरण

288 विधानसभा सीटों वाली महाराष्ट्र विधानसभा में शिव सेना के एक विधायक की मौत होने के बाद मौजूदा संख्या 287 है। ऐसे में बहुमत के लिए 144 सीटों की जरूरत है। और इस वक्त शिंदे के दावे को अगर सही माना जाय तो 40 विधायक उनके साथ हैं। ऐसी स्थिति में उद्धव ठाकरे सरकार अल्पमत में आती दिखती है। क्योंकि बगावत के पहले उद्धव ठाकरे सरकार के पास 169 विधायकों का समर्थन प्राप्त था। और 40 विधायकों का साथ छूटने का मतलब है कि उसके पास 129 विधायकों का ही समर्थन रह गया है। सरकार अल्पममत में हैं, इसके संकेत संजय राउत के बयान से भी लगता है। क्योंकि कल तक वह यह कह रहे थे कि महाराष्ट्र में कोई भूकंप नहीं आएगा। लेकिन अब वह सत्ता जाने और विधानसभा भंग करने की बात कह रहे हैं।

राजनीतिक दल सीटें बहुमत के लिए जरूरी समर्थन
भाजपा 106    144 
एनसीपी 53
शिवसेना 55
कांग्रेस 44
निर्दलीय 13

 इसी तरह  सरकार बनाने के लिए 106 विधायकों वाली भाजपा के पास  एनडीए दल के 7 विधायकों का समर्थन हासिल है। यानी भाजपा के पास 113 विधायकों का समर्थन है। ऐसे में उसे सरकार बनाने के लिए कम से कम 30 विधायकों की जरूरत पड़ेगी। और तस्वीरें और शिंदे के दावे से साफ है कि अगर बागी भाजपा के साथ जाते हैं, उसके लिए बहुमत जुटाना आसान हो जाएगा। ऐसी खबरे हैं कि भाजपा ने एक नाथ शिंदे को उप मुख्यमंत्री पद का ऑफर दिया है।

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क्या कहता है दल-बदल कानून

पहली बार दल-बदल कानून 1985 में लाया गया था। उसके बाद 2003 में 91 वें संविधान संशोधन के जरिए दल-बदल कानून में बदलाव किया गया। अब दल-बदल कानून के तहत अगर किसी राजनीतिक दल के दो तिहाई सदस्य टूट कर अलग दल बनाते हैं या किसी दल में विलय करते हैं तो उस समूह पर कानून लागू नहीं होगा।

जहां तक एकनाथ शिंदे और उनकी बगावत का सवाल है, तो शिवसेना के इस समय 55 विधायक हैं। इसमें से शिंदे अगर 37 विधायक को समर्थन हासिल कर लेते हैं, तो शिवसेना से अलग हुए गुट पर दल-बदल कानून लागू नहीं होगा। सूरत के होटल से जो तस्वीरें सामने आई हैं, उसमें 35 विधायक शिंदे के साथ दिख रहे हैं। जिसमें से 33 शिवसेना के हैं और 2 निर्दलीय हैं। ऐसे में शिंदे को शिवसेना के 4 और विधायकों की जरूरत पड़ेगी। हालांकि गुवाहाटी पहुंचने पर उन्होंने 40 विधायकों के समर्थन का दावा किया है। ऐसे में आने वाले कुछ घंटों में तस्वीर और साफ हो सकती है।

दो तिहाई संख्या नहीं होने पर MP जैसा हो सकता है प्रयोग

दल-बदल कानून के अनुसार दो तिहाई संख्या नहीं होने पर बगावत करने वाले विधायकों की सदस्यता जा सकती है।  लेकिन कर्नाटक और मध्य प्रदेश के उदाहरण को देखते हुए एक और संभावना दिखती है। इसके तहत बागी विधायक अपने पद से इस्तीफा दे सकते हैं। ऐसी स्थिति में नई सरकार का गठन संख्या बल के आधार पर हो सकता है। यहां पर राज्यपाल की भूमिका बेहद अहम हो जाती है। महाराष्ट्र के मामले में अगर ऐसी स्थिति बनती है तो राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी भाजपा को सबसे बड़ा दल होने के नाते सरकार गठन के लिए आमंत्रण दे सकते हैं। इस परिस्थिति में इस्तीफा देने वाले विधायकों के क्षेत्र में फिर उप चुनाव होगा। और उसके बाद तत्कालीन सरकार को बहुमत साबित करना होगा। 

मध्य प्रदेश में कांग्रेस की कमलनाथ सरकार के खिलाफ जब सिंधिया गुट के 22 विधायक ने बगावत की थी, तो फिर वहां पर इन सभी ने इस्तीफा दे दिया था और उसके बाद उप चुनाव में जीत हासिल कर शिवराज सिंह चौहान ने बहुमत हासिल कर लिया था। ऐसे में देखना है कि महाराष्ट्र की राजनीति में क्या समीकरण बनते हैं।

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