रेवड़ी कल्चर: फ्री में रंगीन टीवी से लेकर सोना तक, क्या फिर होगा मोदी बनाम केजरीवाल !

देश
प्रशांत श्रीवास्तव
Updated Aug 12, 2022 | 15:55 IST

Rewari Culture in India: अगर भाजपा और आम आमदी पार्टी के विस्तार को देखा जाय तो इनके लाभार्थी और मुफ्त बिजली, शिक्षा मॉडल ने राजनीतिक सफलता में अहम योगदान दिया है।

Modi Vs Kejariwal
फाइल फोटो:इस साल गुुजरात और हिमाचल प्रदेश में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं।  |  तस्वीर साभार: PTI
मुख्य बातें
  • भारत में चुनाव के समय लोगों को लुभाने के लिए रेवड़ी कल्चर की शुरूआत देखी जाय तो वह दक्षिण भारत से शुरू होती है।
  • डीएमके नेता सी.एन.अन्नादुरई ने 4.5 रुपये के चावल को एक रुपये में देने का वादा किया।
  • आरबीआई की रिपोर्ट कई राज्यों की आर्थिक सेहत पर सवाल उठाती है।

Rewari Culture in India:वैसे तो रेवड़ी कल्चर पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई जारी है और उसको लेकर सभी पक्षों का तर्क शीर्ष न्यायालय सुन रहा है। लेकिन इस सुनवाई के दौरान में एक नया राजनीतिक नैरिटव तैयार की कोशिश हो रही है। जिसमें भाजपा और आम आदमी पार्टी आमने-सामने है। इस नैरेटिव की लड़ाई में दोनों दलों का शासन मॉडल है। जिसकी कमान आम आदमी पार्टी की तरफ से खुद दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने संभाली है। जबकि भाजपा के तरफ से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बयान के बाद वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण से लेकर दूसरे नेताओं ने संभाल रखी है। जिस तरह हर रोज दोनों दल रेवड़ी कल्चर पर एक-दूसरे पर निशाना साध रहे हैं, उससे लगता है कि एक बार फिर 2014 के लोक सभा चुनाव की तरह मोदी बनाम केजरीवाल की जमीन तैयार हो रही है।

कब शुरू हुई रेवड़ी कल्चर की शुरूआत

भारत में चुनाव के समय लोगों को लुभाने के लिए रेवड़ी कल्चर की शुरूआत देखी जाय तो वह दक्षिण भारत से शुरू होती है। जब 1967 के चुनाव में डीएमके नेता सी.एन.अन्नादुरई ने 4.5 रुपये के चावल को एक रुपये में देने का वादा किया। अन्नादुरई की जीत ने दूसरों के लिए भी रास्ता खोल दिया। और आंध्र प्रदेश में एन.टी.रामाराव ने भी इस मॉडल को अपनाया। और उन्होंने 2 रुपये किलो में चावल देने का ऐलान किया। लेकिन बड़ा बदलाव, तमिलनाडु में 2006 के विधानसभा चुनाव में दिखा। उस वक्त डीएमके ने रंगीन टीवी मुफ्त में देने का वादा किया। इसके बाद एआईएडीएमके ने फ्री में लैपटॉप देने का ऐलान किया। तमिलनाडु में लड़की के विवाह में सोना देने का वादा भी एआईएडीएमके ने किया। और अब यह कल्चर देश के सभी राज्यों में फैल चुका है। जिसमें किसानों की कर्ज माफी सबसे कॉमन फैसला है।

लाभार्थी बनाम मुफ्त बिजली, शिक्षा मॉडल

अगर भाजपा और आम आमदी पार्टी के विस्तार को देखा जाय तो इनके लाभार्थी और मुफ्त बिजली, शिक्षा मॉडल ने राजनीतिक सफलता में अहम योगदान दिया है। भाजपा का दावा रहा है कि उसकी कल्याणकारी योजाएं, जो सीधे लाभार्थी तक पहुंचती है, उसने जातिगत और धर्म की राजनीति में बड़ी सेंध लगाई है। और उसकी वजह से उसे भी वर्ग और धर्म का चुनावों में साथ मिलता है। जिसकी वजह से न केवल वह 2019 में बड़े बहुमत के साथ जीती, बल्कि यूपी सहित कई राज्यों में उसने सत्ता में वापसी की। 

भाजपा की तरह आम आदमी पार्टी की सफलता में भी, अरविंद केजरीवाल का दिल्ली मॉडल काफी अहम योगदान रखता है। जिसकी वजह से वह तीन बार से लगातार दिल्ली के मुख्यमंत्री है। बल्कि अब उनकी पार्टी ने पंजाब में पूर्ण बहुमत के साथ सरकार बनाई है। यही नही दिल्ली मॉडल को लागू करने की शुरूआत  उन्होंने पंजाब में भी कर दी है। वहीं गुजरात में इस होने वाले चुनाव के लिए भी उन्होंने फ्री बिजली जैसे वादे कर दिए हैं।

मुफ्त स्वास्थ्य, शिक्षा पर जनता को डरा रहे हैं केजरीवाल, निर्मला सीतारमण बोलीं- हम इस पर बहस और चर्चा चाहते हैं

दोनों पार्टियों के मॉडल में क्या है अंतर

असल में भाजपा के लाभार्थी मॉडल में उस तबके तक पहुंचना है जो गरीब है या वंचित है। इसके तहत उसे जनधन, उज्जवला, कर्ज माफी, शौचालय बनवाने से लेकर डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर को अपनाया गया है। यानी एक बड़ी राशि इस तबके तक खातों में पहुंचती है। इसके अलावा आयुष्मान भारत जैसी योजनाओं के जरिए गरीब तबके को 5 लाख रुपये तक मुफ्त इलाज का मॉडल है।

जबकि आम आदमी पार्टी के मॉडल में यह एक सीमा तक मुफ्त बिजली, सभी को मुफ्त शिक्षा,स्वास्थ्य सेवाएं देने पर जोर है। इसमें मुफ्त मूलभूत सुविधाएं देने पर जोर है।

किस बात का है डर

 प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 16 जुलाई को बुंदेलखंड एक्सप्रेस-वे का उद्घाटन करते हुए विपक्ष पर निशाना साधा था। उन्होंने कहा था कि रेवड़ी कल्चर से दूर रहना चाहिए। इसके तुरंत बाद अरविंद केजरीवाल और समाजवादी पार्टी प्रमुख अखिलेश यादव ने पलटवार किया था। केजरीवाल ने कहा था कि अपने देश के बच्चों को मुफ्त अच्छी शिक्षा देना और लोगों का अच्छा ईलाज करवाने को मुफ्त में रेवड़ी बांटना नहीं कहते हैं। इसी तरह अखिलेश यादव ने ट्वीट कर कहा था कि रेवड़ी बांटकर थैक्यू का अभियान चलाने वाले अगर रोजगार दें तो दोषारोपण संस्कृति से बच सकते हैं। अब देश में मुफ्त रेवड़ी कल्चर होना चाहिए या नहीं इस पर सुप्रीम कोर्ट में बहस चल रही है। इस बीच सुनावई के दौरान अदालत ने कहा कि यह बहुत गंभीर मामला है। जन कल्याणकारी योजनाएं और 'मुफ्त की रेवड़ी' के बीच अंतर किए जाने की जरूरत है। केंद्र सरकार ने इस मामले में एक कमेटी बनाने का सुझाव दिया। सुनवाई के दौरान अहम टिप्पणी करते हुए कोर्ट ने कहा कि करदाताओं के पैसे का बहुत सोच-विचारकर खर्च किया जाना चाहिए। 

इसके अलावा आरबीआई की एक रिपोर्ट भी रेवड़ी कल्चर पर सवाल उठाती है। स्टेट फाइनेंस ए रिस्क एनॉलिसिस की रिपोर्ट के अनुसार पंजाब, राजस्थान, केरल, पश्चिम बंगाल,बिहार की आर्थिक सेहत अच्छी नहीं है। इसके अलावा गुजरात, पंजाब, छत्तीसगढ़ अपने रेवेन्यू खर्च का 10 फीसदी से ज्यादा सब्सिडी पर खर्च किया है। सरकारें ऐसी जगह पैसा खर्च कर रही है, जहां से उन्हें कोई कमाई नहीं हो रही है। अब सब्सिडी से ज्यादा मुफ्त पर जोर है। जो कि Freebies का हिस्सा हैं।

Times Now Navbharat पर पढ़ें India News in Hindi, साथ ही ब्रेकिंग न्यूज और लाइव न्यूज अपडेट के लिए हमें गूगल न्यूज़ पर फॉलो करें ।

अगली खबर