कोरोना महामारी ने बदल दी भारत सरकार की 16 साल पुरानी नीति, चीन से भी दवा खरीदने में गुरेज नहीं

विदेशी सहायता हासिल करने के बारे में ये निर्णय नई दिल्ली की रणनीति में बदलाव के एक बड़े संकेत हैं क्योंकि भारत अपने उभरते ताकतवर देश और अपनी आत्मनिर्भर छवि पर जोर देता आया है।

First policy shift in 16 yrs: India to buy life saving drugs from China
कोरोना महामारी ने बदल दी भारत सरकार की 16 साल पुरानी नीति।  |  तस्वीर साभार: PTI
मुख्य बातें
  • 2004 में आए सुनामी के बाद भारत ने विदेशी सहायता लेना बंद कर दिया
  • इसके बाद से भारत ने अपनी आत्मनिर्भर छवि पर जोर देना शुरू किया
  • कोरोना संकट के समय करीब 20 देश भारत की मदद करने आगे आए हैं

नई दिल्ली : कोरोना संकट की वजह से देश में मेडिकल व्यवस्था चरमराने के बाद भारत ने  विदेशी सहायता प्राप्त करने की अपनी नीति में 16 साल बाद बड़ा बदलाव किया है। इस बदलाव के बाद उसने विदेश से मिलने वाले उपहार, दान एवं सहायता को स्वीकार करना शुरू किया है। कोरोना संक्रमण में भारी इजाफा होने की वजह से स्वास्थ्य व्यवस्था पूरी तरह लड़खड़ा गई है। अस्पताल ऑक्सीजन, दवाओं और मेडिकल उपकरणों की कमी का सामना कर रहे हैं। भारत ने चीन से भी मेडिकल उपकरण खरीदने का फैसला किया है। 

विदेशी सहायता प्राप्त करने की नीति में बदलाव
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट में एक सूत्र के हवाले से कहा गया है कि विदेशी सहायता प्राप्त करने के संबंध में दो बड़े बदलाव देखने को मिले हैं। भारत को अब चीन से ऑक्सीजन से जुड़े उपकरण एवं जीवन रक्षक दवाएं खरीदने में कोई 'समस्या' नहीं है। जहां तक पाकिस्तान से सहायता हासिल करने का सवाल है तो भारत ने इस बारे में अभी कोई फैसला नहीं किया है। इस बात की संभावना बहुत कम है कि भारत पाकिस्तान से सहायता लेगा।  सूत्र का कहना है कि राज्य सरकारें विदेशी एजेंसियों से जीवन रक्षक दवाएं खरीद सकती हैं, केंद्र सरकार उनके रास्ते में नहीं आएगी।

भारत ने विदेशी सहायता लेना बंद कर दिया था 
विदेशी सहायता हासिल करने के बारे में ये निर्णय नई दिल्ली की रणनीति में बदलाव के एक बड़े संकेत हैं क्योंकि भारत अपने उभरते ताकतवर देश और अपनी आत्मनिर्भर छवि पर जोर देता आया है। 16 साल पहले मनमोहन सिंह के नेतृत्व में यूपीए सरकार ने विदेशी स्रोतों से अनुदान एवं सहायता न लेने का फैसला किया था।  इसके पहले भारत ने उत्तरकासी भूकंप (1991), लातूर भूकंप (1993), गुजरात भूकंप (2001), बंगाल चक्रवात (2002) और बिहार बाढ़ (2004) के समय विदेसी सरकारों से सहायता स्वीकार किया। 

मनमोहन सिंह ने की थी घोषणा
दिसंबर 2004 में आए सुनामी के दौरान तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने कहा, 'हमारा मानना है कि हम खुद से इस स्थिति का सामना कर सकते हैं। यदि जरूरत पड़ी तो हम उनकी मदद लेंगे।' सिंह के इस बयान को भारत की आपदा सहायता नीति में एक बड़े बदलाव के रूप में देखा गया। इसके बाद आपदाओं के समय भारत ने इसी नीति का पालन किया। साल 2013 में आई उत्तराखंड बाढ़ और 2005 के कश्मीर भूकंप और 2014 की कश्मीर बाढ़ के समय भारत ने विदेशी सहायता लेने से इंकार कर दिया। 

केरल बाढ़ के समय यूएई ने की थी आर्थिक सहायता की पेशकश
साल 2018 में केरल में आई बाढ़ के समय भी भारत ने विदेशों से कोई सहायता नहीं ली। केरल सरकार ने केंद्र को बताया कि यूएई ने 700 करोड़ रुपए की आर्थिक सहायता देने की पेशकश की है लेकिन केंद्र सरकार ने किसी भी तरह की विदेशी सहायता लेने से इंकार किया। केंद्र ने कहा कि राहत एवं पुनर्वास की जरूरतों को वह अपने तरीकों से पूरा करेगा। 

कोरोना संकट के समय करीब 20 देश मदद के लिए आगे आए
कोरोना संकट के समय करीब 20 देश भारत की मदद करने के लिए आगे आए हैं। भूटान ने ऑक्सीजन की आपूर्ति करने की पेशकश की है। अमेरिका अगले महीने एस्ट्राजेनेका के टीके को भेज सकता है। इस समय अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, जर्मनी, रूस, आयरलैंड, बेल्जियम, रोमानिया, लक्जमबर्ग, पुर्तगाल, स्वीडन, ऑस्ट्रेलिया, भूटान, सिंगापुर, सऊदी अरब, हांग कांग, थाइलैंड, फिनलैंड, स्विटजरलैंड, नार्वे, इटली और यूएई मेडिकल सहायता भारत भेज रहे हैं।  

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