मध्य प्रदेश में पड़ी थी झंडा सत्याग्रह की नींव, आजादी के दीवानों ने अंग्रेजी हुकूमत को हिला दिया था

वर्ष 1922 में कांग्रेस की एक समिति का गठन किया गया था। इस समिति का उद्देश्य था अब तक चलाए गए असहयोग आंदोलन की सफलता का आंकलन करके अपना प्रतिवेदन प्रस्तुत करना। समिति के अध्यक्ष हकीम अजमल खां थे। मोतीलाल नेहरू, विटठ्लभाई पटेल, डॉ. अंसारी, चक्रवती राजगोपालाचारी और कस्तूरी रंगा आयंगर प्रमुख सदस्य थे।

foundation of flag satyagraha was laid in Madhya Pradesh, freedom fighters shook British rule
मध्य प्रदेश में पड़ी थी झंडा सत्याग्रह की नींव।  |  तस्वीर साभार: PTI

National flag : हम आजादी के 75 साल का जश्न मना रहे हैं। तिरंगे के नीचे 75 साल से भारत ने हर क्षेत्र में अपनी प्रतिभा और मेहनत का लोहा मनवाया है। किसानों ने खेतों में जी-तोड़ परिश्रम किया, तो जवानों ने सरहदों की सुरक्षा में अपनी जान की बाजी लगाई लेकिन कभी अपना झंडा नहीं झुकने दिया। आज खेलों के मैदानों पर, रेस्क्यू के विमानों पर हम जब भी अपनी शान तिरंगा देखते हैं सिर गर्व से ऊंचा हो जाता है और रोंगटे खड़े हो जाते हैं। कवि कुमार विश्वास की कविता की पंक्तियां हैं “जीते-जी इसका मान रखें, मर कर मर्यादा याद रहे, हम रहें कभी न रहें मगर, इसकी सज-धज आबाद रहे, जन-मन में उच्छल देश प्रेम का जलधि तंरगा हो, होंठो पर गंगा हो, हाथों में तिरंगा हो।“ 

राष्ट्रीय ध्वज हमारा मान और सम्मान है। हम तिरंगे की बात इसलिए कर रहे हैं क्योंकि भारतीय राष्‍ट्रीय ध्‍वज को इसके वर्तमान स्‍वरूप में 22 जुलाई 1947 को आयोजित भारतीय संविधान सभा की बैठक के दौरान अपनाया गया था। लेकिन क्या आप जानते हैं झंडा सत्याग्रह की शुरुआत कहां से हुई थी। ऐसा सत्याग्रह, जिसने स्वाधीनता की चिंगारी को आग में बदल दिया था।

जबलपुर से शुरू हुआ था ऐतिहासिक झंडा सत्याग्रह
आज हम आपको झंडे और मध्यप्रदेश से जुड़ी ऐसी कहानी सुनाने जा रहे हैं, जिसमें भारतीयों की हिम्मत और अंग्रेजों का डर शामिल है। देश में जब भी झंडा सत्याग्रह का जिक्र होगा, जबलपुर का नाम सबसे पहले आएगा। साल 1922 में जबलपुर के टाउन हॉल में जब झंडा फहराया गया था, तो उसकी धमक से अंग्रेजी हुकूमत हिल गई थी। इसके बाद अंग्रेजों ने फौरन कार्रवाई की। कार्रवाई की वजह से आंदोलन और तेज हुआ। जबलपुर के बाद नागपुर में भी झंडा सत्याग्रह शुरू हुआ और देखते ही देखते देशभर में फैल गया। लोगों ने अपने-अपने घरों में झंडा फहराना शुरू किया। जबलपुर के झंडा सत्याग्रह ने स्वतंत्रता आंदोलन के लिए संजीवनी का कार्य किया।

ऐसे हुई शुरुआत
वर्ष 1922 में कांग्रेस की एक समिति का गठन किया गया था। इस समिति का उद्देश्य था अब तक चलाए गए असहयोग आंदोलन की सफलता का आंकलन करके अपना प्रतिवेदन प्रस्तुत करना। समिति के अध्यक्ष हकीम अजमल खां थे। मोतीलाल नेहरू, विटठ्लभाई पटेल, डॉ. अंसारी, चक्रवती राजगोपालाचारी और कस्तूरी रंगा आयंगर प्रमुख सदस्य थे। यह समिति 1922 अक्टूबर में जबलपुर आई और गोविंद भवन में ठहरी हुई थी। जनता की तरफ से इन नेताओं को विक्टोरिया टाउन हॉल में आयोजित एक समारोह में अभिनंदन पत्र भेंट किया गया। इस मौके पर टाउन हॉल के ऊपर तिरंगा झंडा भी फहराया गया था। ये खबर मिलते ही लंदन की संसद में तहलका मच गया। भारतीय मामलों के सचिव लार्ड विंटरटन ने आश्वासन दिया कि अब कभी ऐसा नहीं होगा। लेकिन ऐसा फिर हुआ। मार्च 1923 में कांग्रेसी कार्यकर्ताओं की दूसरी समिति आई। इस समिति में बाबू राजेंद्र प्रसाद, राजगोपालाचारी, जमनालाल बजाज और देवदास गांधी प्रमुख थे। म्युनसिपल कमेटी ने मानपत्र देने का विचार बनाया। कंछेदीलाल जैन कमेटी के म्युनसिपालिटी के अध्यक्ष थे। उन्होंने टाउन हॉल पर झंडा फहराने की अनुमति डिप्टी कमिश्नर हेमिल्टन से मांगी। इजाजत न मिलने से आंदोलन शुरू हुआ जिसे झंडा सत्याग्रह का नाम दिया गया।  

इस आंदोलन की शुरुआत के बाद साल 1923 में पंडित सुंदरलाल नगर कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष बने, जिन्होंने जनता को आंदोलित किया गया कि टाउन हॉल पर झंडा अवश्य फहरेगा। 18 मार्च 1923 को पंडित सुंदरलाल ने बालमुकुंद त्रिपाठी, बद्रीनाथ दुबे, सुभद्रा कुमारी चौहान, ताजुद्दीन अब्दलु रहीम और माखन लाल चतुर्वेदी को साथ लेकर टाउन हॉल पर झंडा फहरा दिया। इस मसय सीताराम यादव, परमानंद जैन, उस्ताद प्रेमचंद, खुशहाल चंद्र जैन साथ थे। 18 जून 1923 को झंडा सत्याग्रह ने झंडा दिवस के रूप में देशव्यापी आंदोलन का रूप ले लिया।

बदलता गया ध्वज का स्वरूप
भारत के राष्ट्रीय ध्वज ने यात्रा के कई पड़ाव तय किए हैं। आंध्र प्रदेश के पिंगली वेंकैया ने हमारे तिरंगे को डिजाइन किया था। राष्ट्रीय ध्वज में तीन रंगों केसरिया, सफेद और हरे रंग का उपयोग होता है। पहले अशोक चक्र की जगह चरखे का चिह्न था, जो स्वदेशी आंदोलन का प्रतीक था। बाद में डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद की अध्यक्षता वाली समिति के सुझाव पर चरखे की जगह अशोक चक्र लगाया गया। और 22 जुलाई 1947 को इसे राष्ट्रीय ध्वज की मान्यता मिली। भारतीय ध्वज संहिता में तिरंगा फहराने के नियन निर्धारित हैं, इन नियमों का उल्लंघन करने वालों को जेल तक हो सकती है।
 

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