परवेज मुशर्रफ सहित चार पाकिस्तानी जनरलों ने रची थी कारगिल की साजिश?  

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Updated Jul 25, 2019 | 20:09 IST | आलोक राव

कारगिल का बड़ा हिस्सा हड़पने के लिए जनरल मुशर्रफ ने बहुत ही शातिराना चाल चली थी। मुशर्रफ को लगता था कि कारगिल युद्ध के लंबा खिंचने पर इसका फायदा पाकिस्तान को होगा।

Kargil war 1999
साल 1999 में कारगिल की चोटियों पर पाकिस्तानी फौज ने किया था कब्जा। 
मुख्य बातें
  • साल 1999 में पाकिस्तानी फौज ने किया था कारगिल की चोटियों पर कब्जा
  • भारत और पाकिस्तान के बीच करीब दो महीने तक चली लड़ाई
  • पाकिस्तानी सेना के प्रमुख जनरल परवेज मुशर्रफ ने रची थी साजिश

कारगिल युद्ध का जब भी जिक्र होगा भारतीय रणबांकुरे की शहादत और शौर्य को याद किया जाएगा। भारतीय जवानों के अदम्य साहस एवं वीरता को याद करने और उन्हें श्रद्धांजलि देने के लिए प्रत्येक साल 26 जुलाई को कारगिल विजय दिवस मनाया जाता है। आज से 20 साल पहले भारतीय फौज ने कश्मीर के कारगिल जिले में पाकिस्तान की फौज पर विजय पाई थी। दो महीने तक चल इस लड़ाई में भारतीय फौज ने पाकिस्तान के नापाक मंसूबों को परास्त करते हुए उसे वापस भागने पर मजबूर कर दिया। बड़ी संख्या में उसके द्वारा भेजे गए आतंकवादी भारतीय सेना के हाथों मारे गए। भारत के खिलाफ यह साजिश पाकिस्तानी फौज के जनरल परवेज मुशर्रफ ने रची थी। कहा यह भी जाता है कि इस साजिश की जानकारी पाकिस्तान के तत्कालीन प्रधानमंत्री नवाज शरीफ को भी थी जबकि कुछ रिपोर्टों में कहा गया है कि मुशर्रफ ने कारगिल के बारे मे नवाज शरीफ को अंधेरे में रखा था। 

इन रिपोर्टों से अलग लेफ्टिनेंट जनरल (सेवानिवृत्त) शाहिद अजीज की अपनी राय है। उन्होंने अपनी पुस्तक 'ये खामोशी कब तक' में लिखा है कि कारगिल की साजिश रचने में मुशर्रफ का साथ पाकिस्तानी फौज के तीन और जनरल ने दिया था। अजीज ने अपनी किताब में बताया है कि जनरल परवेज मुशर्रफ, लेफ्टिनेंट जनरल मोहम्मद अजीज, लेफ्टिनेंट जनरल जावेद हसन और लेफ्टिनेंट जनरल महमूद अहमद ने पाकिस्तानी सत्ता प्रतिष्ठान के नाक के नीचे कारगिल की साजिश रची। इस साजिश के बारे में कोर कमांडरों और सेना मुख्यालय के वरिष्ठ अधिकारियों को भनक तक नहीं थी। अजीज ने जून 2013 में डॉन को दिए एक साक्षात्कार में कहा, 'यहां तक कि उस समय के डाइरेक्टर जनरल मिलिट्री ऑपरेशन (डीजीएमओ) लेफ्टिनेंट जनरल ताकिर जिया को भी कारिगल में पाकिस्तानी सेना की घुसपैठ के बारे में जानकारी बाद में मिली। मुशर्रफ ने इस ऑपरेशन को सभी से छिपाकर रखा और यदि यह सफल हो गया होता तो इसे अब तक का सबसे बड़ा गोपनीय सैन्य ऑपरेशन माना जाता लेकिन...'

1984 में सियाचीन में पाकिस्तान को मिला था झटका
सियाचीन में 'ऑपरेशन मेघदूत' के तहत भारत ने पाकिस्तान को झटका देते हुए यहां की असीमांकित जमीन का 1000 स्क्वॉयर मील अपने कब्जे में ले लिया। इस हिस्से को अपने अधीन कर लेने से भारत को चीन और पाकिस्तान दोनों पर सामरिक रूप से बढ़त हासिल हो गई। इस वक्त पाकिस्तान कुछ खास नहीं कर पाया लेकिन उसके जनरलों के मन में यह बात टीस बनकर हमेशा सताती रही। कई रक्षा विशेषज्ञ यह मानते हैं कि पाकिस्तान के ये जनरल 1984 की टीस को मिटाने के लिए कारगिल के कुछ इलाकों पर कब्जा करना चाहते थे। इसलिए उन्होंने सर्दी के मौसम में कारिगल की चोटियों पर कब्जा करने की साजिश रची। भारतीय सेना सर्दी के मौसम में चोटियों पर स्थित अपनी पोस्ट को खाली कर वापस आ जाती थी और फिर गर्मियों में वहां लौटती थी। इस बात की जानकारी पाकिस्तानी फौज को थी इसलिए उसने अक्टूबर-नवंबर में कारगिल की चोटियों पर कब्जा करने का दुस्साहस किया।

Kargil war

मुशर्रफ ने बनाया था शातिर प्लान
कारगिल का बड़ा हिस्सा हड़पने के लिए जनरल मुशर्रफ ने बहुत ही शातिराना चाल चली थी। मुशर्रफ को लगता था कि कारगिल युद्ध के लंबा खिंचने पर इसका फायदा पाकिस्तान को होगा क्योंकि लड़ाई खत्म करने का अंतरराष्ट्रीय दबाव भारत पर होगा। भारतीय प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी अंतरराष्ट्रीय अपील एवं दबाव को नजरंदाज नहीं करेंगे। ऐसे में यदि सीजफायर हुआ तो इसका सीधा लाभ पाकिस्तान को मिलेगा। कारगिल की चोटियों पर बैठी पाकिस्तानी फौज एवं आतंकवादी वापस नहीं आएंगे और कारगिल का एक बड़ा हिस्सा पाकिस्तान के कब्जे में आ जाएगा लेकिन पाकिस्तानी जनरल की यह नापाक सोच पूरी नहीं हो सकी। भारतीय फौज के पलटवार ने मुशर्रफ सहित पाकिस्तानी फौज का भौचक्का कर दिया। उन्हें उम्मीद नहीं थी कि भारत इस तीव्रता और आक्रामकता के साथ पलटवार करेगा। यह बात अलग है कि भारत को अपनी सैन्य कार्रवाई में 500 से ज्यादा जवानों की शहादत देनी पड़ी। 

Kargil war

वाजपेयी की लाहौर बस यात्रा के समय चोटियों पर काबिज हो रही थी पाक फौज
पाकिस्तानी फौज जिस समय कारगिल की चोटियों पर कब्जा कर रही थी। उसी समय तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी पाकिस्तान के साथ नए रिश्ते की इबारत लिखने की कोशिशों में जुटे थे। पाकिस्तान के साथ संबंध सुधारने के लिए उन्होंने फरवरी 1999 में बस से लाहौर की यात्रा की। इस यात्रा को 'सद्भावना यात्रा' नाम दिया गया। वाजपेयी के साथ देश की जानी-मानी हस्तियां भी पाकिस्तान गईं। बताया जाता है कि उस समय की दोनों सरकारों को कारगिल में पाकिस्तानी फौज के कारनामे का पता नहीं था। दो प्रधानमंत्री अपने रिश्ते में नया आयाम जोड़ने की कोशिश कर रहे थे तो उस समय पाकिस्तानी फौज युद्ध की जमीन तैयार कर रही थी। पाकिस्तानी फौज ने जिस छद्म युद्ध की शुरुआत की उसका समापन भारतीय फौज ने किया।   
 

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