Gandhi Jayanti: जब कांग्रेस अध्यक्ष का चुनाव जीते थे सुभाष चंद्र बोस, महात्मा गांधी ने कहा था-'ये मेरी हार है'

Mahatma Gandhi and Subhash Chandra Bose: महात्मा गांधी की आज 151वीं जयंती है। महात्मा गांधी का जिक्र होता है तो सुभाष चंद्र बोस का भी जिक्र होता है। जानिए क्या था सुभाष चंद्र बोस और गांधी जी के बीच विवाद...

Mahatma Gandhi, Subhash Chandra Bose
Mahatma Gandhi, Subhash Chandra Bose 
मुख्य बातें
  • महात्मा गांधी की आज 151वीं जयंती है।
  • महात्मा गांधी और सुभाष चंद्र बोस के बीच कई बातों को लेकर वैचारिक मतभेद थे।
  • 1939 त्रिपुरी कांग्रेस अधिवेशन में सुभाष चंद्र बोस की जीत के बाद गांधीजी ने कहा था कि ये मेरी हार है।

नई दिल्ली. राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की आज 151वीं जयंती हैं। पूरे विश्व में आज अंतरराष्ट्रीय अहिंसा दिवस भी मनाया जा रहा है। बापू का जिक्र होता है तो उनके समकालीन क्रांतिकारी और उनके तरीकों से मतभेद रखने वालों का भी जिक्र होता है। इनमें से एक थे सुभाष चंद्र बोस। सुभाष चंद्र बोस और गांधीजी का रिश्ता काफी आत्मीय था, इसके बावजूद गांधीजी ने सुभाष चंद्र बोस की जीत को अपनी हार कहा था। 

साल 1939 में त्रिपुरी कांग्रेस अधिवेशन में अगला अध्यक्ष चुना जाना था। सुभाष चंद्र बोस से महात्मा गांधी संतुष्ट नहीं थे।। दरअसल दुनिया दूसरे विश्व युद्ध के मुहाने पर खड़ी थी। सुभाष चंद्र बोस जहां अंग्रेजों के खिलाफ लड़ना चाहते थे। वहीं, एक खेमा अंग्रेजों से समझौता करना चाहता था। 

त्रिपुरी चुनाव से पहले जवाहरलाल नेहरू ने सुभाष चंद्र बोस के खिलाफ लड़ने से इंकार कर दिया। वहीं, मौलाना अब्दुल कलाम आजाद ने भी अपनी दावेदारी वापस ले ली थी। ऐसे में सुभाष चंद्र बोस के विरुद्ध गांधीजी ने पट्टाभी सितारमैय्या को अपना उम्मीदवार बनाकर खड़ा कर दिया था। 

Netaji Subhas Chandra Bose wanted ruthless dictatorship in India for 20 years | India News - Times of India

सुभाष चंद्र बोस को मिले 1580 वोट
चुनाव में जहां सुभाष चंद्र बोस को 1580 वोट मिले। वहीं, सीतारमैय्या को 1377 वोट मिले। महात्मा गांधी ने इस हार को अपनी हार बताया था। गांधीजी ने कांग्रेस के कार्यकर्ताओं से कहा कि वह यदि बोस के काम से खुश नहीं हैं तो कांग्रेस छोड़ सकते हैं। 

गांधी जी की इस अपील के बाद कांग्रेस कार्यकारिणी के 14 सदस्यों में से 12 ने इस्तीफा दे दिया। आखिर में सुभाष चंद्र बोस कांग्रेस से अलग हो गए। बाद में सुभाष चंद्र बोस ने अपनी अलग फॉरवर्ड ब्लॉक पार्टी बनाई। आगे चलकर इंडियन नेशनल आर्मी के जरिए नेताजी ने आजादी के युद्ध में हिस्सा लिया। 

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गांधी जी ने लिखा- 'मैं उनकी जीत से खुश हूं'
चार फरवरी 1939 को यंग इंडिया में छपे अपने लेख में गांधीजी लिखते हैं- 'मैं उनकी (सुभाष बाबू की) विजय से खुश हूं। अब मौलाना अबुल कलाम आजाद ने अपना नाम वापस ले लिया था। मैंने ही डॉ पट्टाभि को चुनाव से पीछे न हटने की सलाह मैंने दी थी। ऐसे में यह हार उनसे ज्यादा मेरी है। इस हार से मैं खुश हूं।’

गांधीजी ने इसी लेख में आगे लिखा-‘सुभाष बाबू लोगों की कृपा के सहारे अध्यक्ष नहीं बने हैं बल्कि चुनाव में जीतकर अध्यक्ष बने हैं। सुभाष बाबू देश के दुश्मन तो हैं नहीं। उन्होंने उसके लिए कष्ट सहन किए हैं।' साल 1945 में एक विमान दुर्घटना में सुभाष चंद्र बोस का निधन हो गया।

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