Happy Friendship Day 2022: सियासत में दोस्ती और साथ...अटल-आडवाणी से लेकर सिंधिया-पायलट तक, ये है पॉलिटिक्स के 'जिगरी यार'

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अभिषेक गुप्ता
अभिषेक गुप्ता | Principal Correspondent
Updated Aug 07, 2022 | 11:27 IST

Happy Friendship Day 2022 Wishes: दरअसल, फ्रेंडशिप डे ऐसे दोस्तों को समर्पित होता, जिनके साथ आप जिंदगी के खास और अहम पल गुजारते-बिताते हैं। भारत में यह अगस्त महीने के पहले इतवार को मनाया जाता है। इस साल यह सात अगस्त को पड़ा।

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Happy Friendship Day 2022: आपने सुना होगा कि राजनीति में किसी का कोई परमानेंट (स्थाई) दोस्त और दुश्मन नहीं होता, पर हिंदुस्तान की सियासत में कई ऐसे नामी चेहरे हैं, जिनकी दोस्ती की नजीर दूसरों को दी जाती है। फ्रेंडशिप डे (Happy Friendship Day 2022) पर हम आपको पॉलिटिक्स के उन लोगों के बारे में बता रहे हैं, जिनके संबंध और साथ की मिसाल अक्सर दी जाती है। आइए जानते हैं:

अटल बिहारी वाजपेयी-एलके आडवाणी
बीजेपी के इन दोनों दिग्गजों का रिश्ता किसी से छिपा न था। दोनों लगभग साथ में सियासत में आए और संघर्ष भी साथ-साथ किया। 1998 में जब भाजपा इकलौती बड़ी पार्टी के रूप में उभरी, तब रथयात्रा को लेकर चर्चित हुए आडवाणी ने अपनी राजनीतिक महात्वाकांक्षा को किनारे रखते हुए वाजपेयी के पीएम बनने का रास्ता प्रशस्त किया। 

अमित शाह-नरेंद्र मोदी
पीएम मोदी भाजपा में अमित शाह पर सर्वाधिक विश्वास करते हैं। दोनों के बीच यह याराना करीब 20 साल पुराना है और वे आरएसएस के जरिए एक-दूसरे से मिले थे। शाह ही पीएम के सबसे करीबी माने जाते हैं और वह तब की गुजरात सरकार (नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली) में कई पोर्टफोलियो संभाल चुके हैं। मोदी के पीएम बनने के दो माह बाद शाह बीजेपी के अध्यक्ष बना दिए गए थे। दोनों ने मिलकर कई सूबों के चुनावों बीजेपी का "ऑपरेशन विजय" चलाया।
 
अरविंद केजरीवाल-मनीष सिसोदिया
आप संयोजक अरविंद केजरीवाल जब भी संकट के बादलों से घिरे होते हैं तो उनके साथ मनीष सिसोदिया हमेशा साथ और समर्थन में नजर आते हैं। दोनों की दोस्ती लंबे समय से है। 1999 में केजरीवाल ने सिसोदिया और अन्य के साथ जन समस्याएं दूर करने के लिए परिवर्तन आंदोलन शुरू किया था। वे दोनों तब से साथ बताए जाते हैं। सिसोदिया को आप में केजरीवाल का सबसे भरोसेमंद नेता माना जाता है।

राहुल गांधी-अखिलेश यादव
उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में कांग्रेस और समाजवादी पार्टी (सपा) का गठबंधन बुरी तरह फ्लॉप रहा था। पर हार के बाद भी राहुल गांधी और अखिलेश यादव के बीच दोस्ती मजबूत बनी रही। राहुल और अखिलेश (भारतीय राजनीति के युवा नुमाइंदे) एक अच्छा तालमेल साझा करते हैं और अक्सर अलग-अलग मौकों पर एक-दूसरे की तारीफ करते हैं।

नीतीश कुमार-सुशील मोदी
ऐसी ही एक और जोड़ी दोस्ती के लिए मशहूर है, जिसमें बिहार में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और पूर्व डिप्टी सीएम सुशील कुमार मोदी का नाम है। रोचक बात है कि दोनों अलग दलों से हैं, पर दोनों के ताल्लुकात अच्छे माने जाते हैं। 2005 में पहली बार दोनों के हाथ मिले थे, तब राज्य में भाजपा-जद(यू) गठबंधन सत्ता में आया था। उन्होंने लगातार आठ साल तक सरकार का नेतृत्व किया, जब तक कि 2014 के लोकसभा चुनावों के लिए नरेंद्र मोदी को प्रधान मंत्री पद के उम्मीदवार के रूप में पेश किए जाने के बाद नीतीश एनडीए से बाहर हो गए। सुशील विपक्षी नेता बनने के बावजूद नीतीश का सम्मान करने के लिए जाने जाते थे। 

के चंद्रशेखर राव-असदुद्दीन ओवैसी
तेलंगाना सीएम के.चंद्रशेखर राव ने हैदराबाद के सांसद असदुद्दीन ओवैसी के एआईएमआईएम के साथ अपनी पार्टी टीआरएस के संबंधों का जिक्र करने के लिए "मैत्रीपूर्ण दल" शब्द का इस्तेमाल किया था। राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो न केवल दोनों पार्टियां बल्कि दोनों नेता भी "करीबी दोस्त" हैं। ओवैसी ने कई मौकों पर केसीआर की "धर्मनिरपेक्ष साख" की सराहना की है और अल्पसंख्यकों के उत्थान के लिए टीआरएस सरकार की पहल की तारीफ सराहना की। . एआईएमआईएम प्रमुख ने 2018 के विधानसभा चुनावों में केसीआर की पार्टी को उन सीटों पर मौन समर्थन दिया, जहां पूर्व में चुनाव नहीं हुआ था। 

हार्दिक पटेल-जिग्नेश मेवाणी
गुजरात की राजनीति के दो युवाओं (बीजेपी के हार्दिक पटेल और कांग्रेस के जिग्नेश मेवाणी) को उनके मिलनसार स्वभाव के लिए जाना जाता है। 2016 में उन्होंने जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (JNU) के तत्कालीन छात्रों के कथित राजनीतिक लक्ष्यीकरण के विरोध में मंच साझा किया था। दो अलग-अलग सामाजिक पृष्ठभूमियों से आते हैं। पटेल पाटीदार समुदाय का प्रतिनिधित्व करते हैं और 2015 में पाटीदार आरक्षण आंदोलन के बाद एक नेता के रूप में उभरे। वहीं, मेवाणी एक दलित नेता हैं, जो 2016 में कथित बहिष्कार के विरोध में सबसे आगे थे। 

ज्योतिरादित्य सिंधिया-सचिन पायलट
केंद्रीय मंत्री और बीजेपी नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया जब कांग्रेस में थे, तब से वह राजस्थान के आईएनसी नेता सचिन पायलट के अच्छे दोस्त बताए जाते हैं। रोचक बात है कि मध्य प्रदेश के उप चुनाव अभियान के दौरान दोनों एक दूसरे के खिलाफ चुप नजर आए थे। सूत्रों की मानें तो सिंधिया ने जब से कांग्रेस छोड़ी तब से वे एक दूसरे से दूर हैं, पर कहा जाता है कि वह संपर्क में रहते हैं। 

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