नई दिल्ली: इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ पीठ ने सोमवार को हाथरस मामले की सुनवाई करते हुए उत्तर पुलिस से कठिन सवाल किए। पीड़ित परिवार की वकील सीमा कुशवाह के अनुसार, जस्टिस पंकज मित्तल और राजन रॉय की बेंच ने एडीजी (लॉ एंड ऑर्डर) प्रशांत कुमार से पूछा कि अगर उसकी जगह आपकी बेटी होती तो क्या आप उसी तरह अंतिम संस्कार करने की अनुमति देते? अदालत ने यह भी सवाल किया कि अगर पीड़ित परिवार अमीर परिवार होता तो क्या पुलिस की कार्रवाई समान होती। सीमा कुशवाह ने कहा कि एडीजी लॉ एंड ऑर्डर अवाक थे। वह किसी भी प्रश्न का उत्तर देने में असमर्थ थे।
वहीं हाथरस के जिला मजिस्ट्रेट प्रवीण कुमार लक्षकार ने पीड़िता का दाह संस्कार रात में करने का निर्णय लेने की पूरी जिम्मेदारी ली है। लक्षकार ने बताया कि उन्होंने निवेदन किया था कि मृतका का दाह संस्कार रात में ही कर दिया जाए, क्योंकि उन्हें खुफिया जानकारी मिली थी कि कुछ लोग अपने स्वार्थ के चलते जातिगत हिंसा भड़काने की कोशिश कर सकते हैं। उन्होंने यह भी कहा कि अगर दाह संस्कार में और देरी होती तो शव के सड़ने की संभावना थी। साथ ही उन्होंने इस बात से इनकार किया कि उन पर सरकार या उच्च अधिकारियों का कोई दबाव था।
परिवार ने कहा कि उनकी इच्छा के विरुद्ध जाकर लड़की का दाह संस्कार किया गया। पीड़िता की मां ने कहा कि वे तो निश्चित तौर पर यह भी नहीं कह सकतीं कि जिसका अंतिम संस्कार हुआ, वो उनकी ही बेटी थी, क्योंकि उन्हें बेटी का आखिरी बार चेहरा देखने की भी अनुमति नहीं दी गई।
इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ पीठ ने हाथरस कांड का स्वत: संज्ञान लेते हुए इस मामले में आला अधिकारियों को 12 अक्टूबर को तलब किया था। न्यायालय ने घटना के बारे में बयान देने के लिए मृत पीड़िता के परिजनों को भी बुलाया। अपर मुख्य सचिव, पुलिस महानिदेशक और अपर पुलिस महानिदेशक, जिलाधिकारी और पुलिस अधीक्षक हाथरस को घटना के बारे में स्पष्टीकरण देने के लिए अदालत में तलब किया था। अदालत ने मामले की अगली सुनवाई के लिए 2 नवंबर की तारीख नियत की है।
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