Samrat Prithviraj Chauhan: केवल 15 साल के शासन में चौहान वंश के राजा पृथ्वीराज चौहान (पृथ्वीराज तृतीय),ने वह सब कर दिया, जो उन्हें 11वीं-12 वीं शताब्दी का सबसे अहम किरदार के रूप में पहचान दिलाता है। वह न केवल उत्तर भारत के आखिरी शक्तिशाली हिंदू राजा थे, बल्कि उनके जीवन के 2 युद्ध ऐसे थे, जिसने भारत का इतिहास ही बदल दिया। क्योंकि उसी के बाद बाद मुस्लिम शासन का दौर शुरू हुआ और करीब 750 साल तक भारत गुलाम रहा। इस दौर में भारत ने गुलाम वंश से लेकर खिलजी, तुगलक, मुगल शासन को देखा और फिर अंग्रेजों की गुलामी का भी सामना किया। पृथ्वीराज चौहान की तराइन द्वितीय के युद्ध में हुई हार, भारत के भाग्य के लिए निर्णायक साबित हुई।
11 साल की उम्र में संभाली थी राजगद्दी
पृथ्वीराज का जन्म 1166 में अजमेर राजवंश में हुआ था। उनके पिता राजा सोमेश्वर चौहान अजमेर के राजा थे। लेकिन पिता राजा सोमेश्वर चौहान की मृत्यु होने के बाद, उन्हें केवल 11 साल की उम्र में राजा बना दिया गया। कम उम्र का होने के कारण पृथ्वीराज की मदद के लिए उनकी मां कर्पूरीदेवी ने शासन चलाने में साथ दिया। राजा के रूप में पृथ्वीराज का पहला युद्ध अपने चचेरे भाई नागार्जुन के विद्रोह को दबाने के रूप में हुआ। इस जीत ने पृथ्वीराज को मजबूत किया। लेकिन भारत में पृथ्वीराज चौहान की ख्याति 1182 ईसवीं में लड़े गए युद्ध से हुई। जिसमें उन्होंने शक्तिशाली चंदेल राजा परमार देव चंदेल को हरा दिया। और उस वक्त पृथ्वीराज की उम्र केवल 16 साल थी। इस युद्ध में पृथ्वीराज चौहान को अपार धन-दौलत भी मिला। पृथ्वीराज जब अपने शासन के शिखर पर थे तो उनका राज्य मौजूदा समय में राजस्थान (अधिकांश क्षेत्र), पश्चिमी उत्तर प्रदेश, उत्तरी मध्य प्रदेश और दक्षिणी पंजाब तक फैला हुआ था।
संयोगिता की प्रेम कहानी
पृथ्वीराज चौहान के जीवन का एक और पहलू बेहद अहम है। जो उनके किरदार को बेहद रोचक बनाता है। और यह पहलू उनके और कन्नौज के राजा जयचंद की बेटी संयोगिता से प्रेम विवाह से जुड़ा हुआ है। उनकी यह कहानी भारतीय इतिहासकारों से लेकर कवियों, उपान्यासकारों में भी कौतूहल पैदा करता है।
पृथ्वीराज के जीवन में एक अहम मोड़ गहड़वाल वंश के राजा जयचंद से हुई लड़ाई के दौरान आया । जिनकी राजधानी कन्नौज थी। पृथ्वीराज रासो के रचियता कवि चंद्रबरदाई के अनुसार जयचंद की पुत्री संयोगिता से प्रेम और फिर उनका हरण कर विवाह करना, पृथ्वीराज और जयचंद की लड़ाई का प्रमुख कारण बना।
मुहम्मद गोरी का आक्रमण
भारत के इतिहास में मोहम्मद गोरी का आक्रमण बेहद असर डालने वाला रहा। क्योंकि इसके बाद से भारत का इतिहास ही बदल गया। आज के पाकिस्तान के इलाके में जीत हासिल करते हुए गोरी पंजाब तक पहुंच गया। तो साल 1191 में पृथ्वीराज और मोहम्मद गोरी की सेनाओं का तराइन के मैदान में सामना हुआ। इस युद्ध को तराइन के प्रथम युद्ध के नाम से जाना जाता है। इस युद्ध में पृथ्वीराज ने मोहम्मद गोरी को हरा दिया । गोरी इस युद्ध में बुरी तरह घायल हुआ और वापस भागने लगा लेकिन पृथ्वीराज ने उसका पीछा नहीं किया और उसे वापस लौटने दिया। और यही चूक बाद में भारत के भाग्य पर बहुत भारी पड़ी।
पृथ्वीराज की हार और भारत में मुस्लिम शासन का दौर
हार से जलील गोरी ने एक साल बाद 1192 में बड़ी सेना के साथ फिर हमला किया। इस बार पृथ्वीराज चौहान पर गोरी भारी पड़ा और तराइन के दूसरे युद्ध में पृथ्वीराज की हार हुई। हार के बाद पृथ्वीराज को लेकर दो मत हैं। इतिहासकारों के एक मत का मानना है कि गोरी ने पृथ्वीराज को अपना गवर्नर बनाकर शासन करने की अनुमति दे दी। इसके पीछे वह उन मुद्राओं का तर्क देते हैं, जिसमें एक तरफ पृथ्वीराज चौहान का नाम है तो दूसरी तरफ मोहम्मद गोरी का नाम लिखा हुआ है।
वहीं दूसरे मत का मानना है कि पृथ्वीराज चौहान को गोरी अपने वतन ले गया, जहां उसे अंधा कर दिया गया था। और बाद में शब्दभेदी बाण के जरिए पृथ्वीराज चौहान ने गोरी को मार डाला था। और उसे मारने के बाद चंद्रबरदाई और पृथ्वीराज चौहान ने अपने आप को भी मार दिया था।
पृथ्वीराज चौहान की मौत चाहे जैसे हुई हो, लेकिन तराईन के दूसरे युद्ध में पृथ्वीराज चौहान की हार ने भारत का इतिहास ही बदल दिया। क्योंकि उसी के बाद भारत में मुस्लिम शासन का दौर शुरू हुआ। सबसे पहले 1206 में कुतुबुद्दीन ऐबक द्वारा गुलाम वंश की स्थापना हुई। उसके बाद खिलजी वंश, तुगलक वंश और मुगल वंश के शासकों शासन रहा है। और उसके बाद भारत अंग्रेजों का गुलाम हो गया। जिनसे फिर 15 अगस्त 1947 में भारत को आजादी मिली।
Times Now Navbharat पर पढ़ें India News in Hindi, साथ ही ब्रेकिंग न्यूज और लाइव न्यूज अपडेट के लिए हमें गूगल न्यूज़ पर फॉलो करें ।