दिल्ली में दोस्ती और गढ़ में दुश्मनी, जानें ममता कैसे राहुल का बिगाड़ रही हैं खेल

देश
प्रशांत श्रीवास्तव
Updated Aug 18, 2021 | 17:11 IST

ममता बनर्जी एक तरफ भारतीय जनता पार्टी के खिलाफ विपक्ष का मजबूत गठबंधन खड़ा करना चाहती हैं। दूसरी तरफ वह अपनी पार्टी का विस्तार कर विपक्ष के नेता के रूप में अपनी दावेदारी भी मजबूत करना चाहती हैं।

Sonia gandhi and Mamata banerjee
सोनिया गांधी और ममता बनर्जी  
मुख्य बातें
  • ममता बनर्जी बंगाल चुनावों में तीसरी बार जीत के बाद अब पूर्वोत्तर भारत में विस्तार की तैयारी में हैं।
  • सुष्मिता देव और दूसरे कांग्रेसी नेताओं के जरिए तृणमूल कांग्रेस असम और त्रिपुरा में अपना आधार मजबूत करना चाहती हैं।
  • राहुल गांधी के लिए सुष्मिता देव का पार्टी छोड़ना पूर्वोत्तर राज्यों में एक और झटका है। असम, मणिपुर, त्रिपुरा में कई नेताओं ने पार्टी का साथ छोड़ दिया है।

नई दिल्ली। वैसे तो ममता बनर्जी विपक्ष को भाजपा के खिलाफ एक जुट होने का आह्वाहन कर रही है। इसमें वह चाहती हैं कि कांग्रेस भी उनका साथ दे। लेकिन लगता है कि ममता डबल रणनीति पर काम कर रही है। क्योंकि एक तरफ वह केंद्रीय स्तर पर भाजपा के खिलाफ मजबूत मोर्चा बनाने के लिए दिल्ली में सोनिया गांधी से मिल रही हैं। दूसरी तरह त्रिपुरा में कांग्रस के नेताओं को अपनी पार्टी में शामिल कर रही है। जाहिर है ममता दिल्ली में तो दोस्ती करना चाहती है लेकिन जहां उन्हें सत्ता मिल सकती है, वहां पर वह कांग्रेस से दुश्मनी करना भी नहीं छोड़ रही हैं। ऐसे में राहुल गांधी के लिए पूर्वोत्तर भारत में मुश्किलें खड़ी होती जा रही है।

20 दिन में 8 कांग्रेस नेताओं ने छोड़ी पार्टी

16 अगस्त को असम से कांग्रेस पार्टी की वरिष्ठ नेता सुष्मिता देव ने पार्टी से 30 साल पुराना नाता तोड़ लिया है। और उन्होंने ममता बनर्जी की पार्टी तृणमूल कांग्रेस का दामन थाम लिया। सुष्मिता देव का जाना खास तौर से राहुल गांधी के लिए झटका है जो पार्टी में युवा नेताओं को आगे बढ़ाने की कवायद में लगे हुए है। इसी वजह से कांग्रेस के ही वरिष्ठ नेता और ग्रुप-23 के सदस्य कपिल सिब्बल ने ट्वीट कर कहा है "युवा नेता जा रहे हैं और दोष हम बूढ़ों पर लग रहा है।" सूत्रों के अनुसार सुष्मिता देव असम में हुए विधान सभा चुनावों के समय से ही नाराज चल रही थी। वह पार्टी द्वारा एआईडीयूएफ के साथ किए गए गठबंधन से नाराज थीं। इसके अलावा चुनावों में टिकट वितरण में अपनी अनदेखी से वह नाराज थीं। हालांकि पार्टी छोड़ते हुए उन्होंने कोई कारण नहीं बताया है। और कहा है कि वह तृणमूल में शामिल होने के लिए अपनी विचारधारा से कोई समझौता नहीं कर रही हैं। सुष्मिता देव असम में कांग्रेस के वरिष्ठ नेता संतोष मोहन देव की बेटी हैं।

सुष्मिता के अलावा त्रिपुरा में भी कांग्रेस के कई प्रमुख नेता पार्टी का दामन छोड़कर तृणमूल कांग्रेस में शामिल हो गए हैं। इसके तहत पूर्व मंत्री प्रकाश चंद्र दास,  सुबल भौमिक, प्रणब देब, मोहम्मद इदरिस मियां, प्रेमतोष देबनाथ, बिकास दास, तपन दत्ता तृणमूल शामिल हुए हैं। ऐसे में साफ है कि अब राज्य में भाजपा के खिलाफ मु्ख्य विपक्षी दल तृणमूल कांग्रेस बनना चाहती है। और इन कद्दावर नेताओं के जरिए तृणमूल की राह आसान हो गई है।

क्या कहते हैं तृणमूल कांग्रेस के नेता

तृणमूल कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और सांसद सौगत रॉय टाइम्स नाउ नवभारत डिजिटल से कहते हैं "देखिए पार्टी ने यह तय किया है कि हम दूसरे राज्यों में विस्तार करेंगे, वहीं हम कर रहे हैं। त्रिपुरा हो या सुष्मिता देव का आना उसी कवायद का हिस्सा है। जहां तक राष्ट्रीय स्तर पर एक जुट होने की बात है तो हमारा प्रयास है कि सब लोग एक जुट हो। यह लंबी स्टोरी है, अभी समय है। हमारी कोशिश है कि विपक्षी दल एक जुट होकर भाजपा को टक्कर दे सकें।" जाहिर है कि तृणमूल अपने विस्तार पर कोई समझौता करना नहीं चाहती है। इसकी वजह यह भी है कि अगर विपक्ष एकजुट होता है तो जिस पार्टी के पास जितनी सीटें होंगी, वह विपक्ष के नेता के रुप में अपनी दावेदारी ठोक सकेगा। खास तौर से ममता बनर्जी की मंशाएं किसी से छिपी नहीं हैं। वह पहले ही कह चुकी है कि वह  बार-बार दिल्ली आएंगी। यही नहीं उनकी पार्टी के कई नेता इस बात को लेकर सार्वजनिक बयान दे चुके हैं कि ममता बनर्जी प्रधान मंत्री पद की उम्मीदवार हो सकती हैं।

पूर्वोत्तर भारत में राहुल से दूर हुए कांग्रेस नेता

कभी कांग्रेस का मजबूत गढ़ पूर्वोत्तर भारत अब उसके हाथ से पूरी तरह से फिसल गया है। जिस तरह से असम में हेमंत बिस्वा शर्मा ने कांग्रेस का दामन छोड़कर भाजपा का हाथ थामा और फिर लगातार दो बार से उसकी सरकार बनवा रहे हैं। वह कांग्रेस के लिए बड़ा झटका है। हेमंत कांग्रेस में अपनी अनदेखी से परेशान थे इसलिए उन्होंने भाजपा का दामन थामा और आज वह प्रदेश के मुख्य मंत्री हैं। इसी तरह मणिपुर में वरिष्ठ कांग्रेस नेता एन.बीरेन सिंह ने पार्टी का साथ छोड़कर भाजपा का दामन थाम लिया था। और हाल ही में कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष गोविंददास कोंथौजम ने भी भाजपा का दामन थाम लिया है। जाहिर है यहां भी कांग्रेस कमजोर होती जा रही है। जबकि पूर्वोत्तर राज्यों से लोक सभा की 25 सीटें आती हैं।

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