पुलवामा में 30 किलोग्राम IED बरामद, पुलिस का दावा बड़ा खतरा टला

IED Find in Pulwama: पिछले कुछ समय से आतंकियों ने सुरक्षा बलों की कार्रवाई को देखते हुए टारगेट किलिंग और हाइब्रिड आतंकियों का जम्मू और कश्मीर में सहारा लिया है। जिसमें वह छोटे हथियारों से टारगेट किलिंग कर दहशत फैलाने का काम कर रहे हैं।

Jammu and Kashmir ied in pulwama
जम्मू-कश्मीर में बड़ा खतरा टला  |  तस्वीर साभार: BCCL
मुख्य बातें
  • पिछले तीन साल में आतंकी घटनाओं के देखा जाय तो इस दौरान 2018 के मुकाबले आतंकी घटनाओं में 20-25 फीसदी तक कमी आई है। और करीब 586 आतंकी मारे गए हैं।
  • पुलिस का दावा है समय से आईईडी की बरामदगी ने एक बड़े खतरे को टाल दिया है।
  • साल 2018 में 86 आम नागरिकों ने आतंकियों के हमले में अपनी जान गंवाई थी।

IED Find in Pulwama:सुरक्षा बलों ने जम्मू-कश्मीर के पुलवामा जिले में 30 किलोग्राम आईईडी बरामद किया है। स्वतंत्रता दिवस से कुछ दिन पहले इतनी भारी मात्रा में आईईडी बरामद होना एक बड़ी साजिश का हिस्सा लगता है। पुलिस का दावा है समय से आईईडी की बरामदगी ने एक बड़े खतरे को टाल दिया है। कश्मीर के अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक विजय कुमार के अनुसार  पुलिस ने खुफिया जानकारी मिलने के बाद कार्रवाई करते हुए आईईडी बरामद किया है ।

पुलवामा के इस इलाके में मिला IED

एडीजीपी (कश्मीर) ने  विजय कुमार ने ट्विटर पर इसकी जानकारी देते हुए लिखा है कि पुलवामा में सर्कुलर रोड पर तहब क्रॉसिंग के पास पुलिस और सुरक्षा बलों ने लगभग 25 से 30 किलोग्राम आईईडी बरामद किया गया है। पुलवामा पुलिस को मिली गुप्त सूचना के बाद फौरन कार्रवाई हुई और एक बड़ी त्रासदी टल गई।

पिछले कुछ समय से आतंकियों ने सुरक्षा बलों की कार्रवाई को देखते हुए टारगेट किलिंग और हाइब्रिड आतंकियों का जम्मू और कश्मीर में सहारा लिया है। जिसमें वह छोटे हथियारों से टारगेट किलिंग कर दहशत फैलाने का काम कर रहे हैं। हाइब्रिड आतंकवादी वे होते हैं जो आम तौर पर सामान्य जीवन जीते  हैं। इनका कोई पुराना आपराधिक रिकॉर्ड नहीं रहता है। ऐसे में उनकी पहचान मुश्किल है। ऐसे में आतंकवादी इनके जरिए छोटे हथियारों यानी पिस्टल आदि से हमला कराते है। और फिर भीड़ में छुप जाते हैं। 

अगर अनुच्छेद 370 हटने के बाद पिछले तीन साल में आतंकी घटनाओं के देखा जाय तो इस दौरान 2018 के मुकाबले आतंकी घटनाओं में 20-25 फीसदी तक कमी आई है। और करीब 586 आतंकी मारे गए हैं।

आम नागरिक ने कम गंवाई जान

साउथ एशिया टेररिज्म  पोर्टल के आंकड़ों के अनुसार, 2018 में 206 ऐसी घटनाएं हुई थीं, जिसमें लोगों की मौत हुई थी। वह 2019 में 135,  साल 2020 में 140, साल 2021 में 153 और 2022 में 24 जुलाई तक 101 रह गई हैं। इसका सीधा असर आम लोगों की हत्याओं में कमी के रूप में दिखा है। साल 2018 में जहां 86 आम नागरिकों ने आतंकियों के हमले में अपनी जान गंवाई थी। वहीं  2022 में जुलाई तक 20 आम नागरिकों की जान गई है। 

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