प्रणय विक्रम सिंह। रणबांकुरे बुंदेलखंड की फिजाओं में आल्हा की स्वर लहरियों के साथ विकास की सरगम की जुगलबंदी मन को मुदित कर देती है। बुंदेलखंड एक्सप्रेस-वे के निर्माण कार्य की तीव्रता देख कर लगता है मानों वीरों की यह तपस्थली सदियों के पिछड़ेपन से मुक्त होने के लिए अधीर है। अहसास होता है कि यह मशीनों का शोर नहीं वरन सदियों के बहुप्रतीक्षित विकास की हुंकार रूपी साध है, जो एक "राजयोगी" की सरपरस्ती में आकार ले रही है।
हैरत होती है कि प्रचुर खनिज संपदा, विपुल वन्य क्षेत्र एवं समृद्ध आध्यात्मिक एवं सांस्कृतिक विरासत से पूरित यह शस्य श्यामला धरा कैसे अव्यवस्था, अराजकता और पिछड़ेपन का पर्याय बन गई? हुकूमतें आईं और चली गईं, मुख्यमंत्री बने और बदल गए लेकिन नहीं बदले तो बुंदेलखंड के हालात। रोजगार से राहगीर तक, कृषि से कमाई तक, आबरू से अवसर तक, सब कुछ असुरक्षित। वजह सिर्फ राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी व विकासपरक दृष्टि का अभाव। तभी तो वर्ष 2017 में नई हुकूमत के तख्तनशीं होते ही उसी "बंजर" बुंदेलखंड में विकास की कोपलें फूट पड़ती हैं। पलायन से पेयजल तक, स्वास्थ्य से स्वरोजगार तक, इंफ्रास्ट्रक्चर से इंडस्ट्री तक, आध्यात्म से आजीविका तक सभी पहलुओं पर एक साथ कार्य प्रारम्भ हो जाता है।
दीगर है कि बुंदेलखण्ड में "विकास" के प्रवेश के लिए ‘कनेक्टिविटी’ सबसे बड़ी जरूरत थी। रोजगार सृजन और निवेश की संभावना की तलाश हेतु 'आवागमन की सुगमता' प्राथमिक आवश्यकता थी, जिसके कारण 'बुंदेलखंड एक्सप्रेस-वे' की बुनियाद पड़ी। यह मात्र राजमार्ग भर नहीं वरन बुंदेलखण्ड के बहुआयामी विकास का वह परिपथ है जिस पर अनेकानेक संभावनाएं कुलांचे भरेंगी।
चित्रकूट, बांदा, महोबा, हमीरपुर, जालौन, ओरैया और इटावा जनपदों को लाभांवित करते इस 296 किलोमीटर लंबे एक्सप्रेस-वे के द्वारा अब बुंदेलखंड की सीधी रोड कनेक्टिविटी लखनऊ और दिल्ली से हो जाएगी। जो यहां पर कृषि, पर्यटन, हैंडलूम उद्योग, मंडी, खाद्य प्रसंस्करण, भंडारण गृह व दुग्ध उद्योग समेत उद्यमिता के अनेक आयामों की विकास की राह को आसान और रफ्तार को तेज करेगा।
दीगर है कि बुंदेलखंड एक्सप्रेस-वे के दोनों सिरों पर एक-एक औद्योगिक पार्क की स्थापना की जाएगी और इन पार्कों में क्षेत्रीय जरूरतों के मुताबिक उद्योग लगाए जाएंगे जोकि किसानों को सीधे लाभांवित करेंगे। बुंदेलखंड एक्सप्रेस-वे के निर्माण से लगभग 60 हजार से अधिक लोगों को रोजगार मिलने की उम्मीद है।
यही नहीं पराक्रम की भूमि अब रक्षा उत्पादकों के विश्व मानचित्र पर देश का नाम रोशन करने के लिए पूरी तरह से तैयार हो रही है। गौरतलब है कि बुंदेलखंड डिफेंस कॉरिडोर में सेना के लिए हथियार व अन्य साजो-सामान बनाने वाली कम्पनियों की उत्पादन इकाइयों की स्थापना से स्थानीय लोगों को रोजगार के अवसर प्राप्त होंगे साथ ही हथियार निर्माण कार्यों में प्रयोग होने वाले छोटे-छोटे उत्पाद जैसे नट-बोल्ट, डाइ, रिवेट्स फ्यूज, वायर आदि की आवश्यकता यहां नए स्टार्ट-अप्स के लिए नूतन संभावनाओं का सृजन कर रही है।
ध्यातव्य है कि डिफेंस कॉरिडोर के प्रति निवेशकों की अधिक रुचि के दृष्टिगत अब बुंदेलखंड के झांसी और चित्रकूट जनपद के अलावा जालौन, हमीरपुर, बांदा और महोबा को भी शामिल करने पर विचार किया जा रहा है। यहां एक बात और भी काबिल-ए-गौर है कि एचएएल, बीईएल आदि जैसे प्रतिष्ठानों द्वारा इकाई और टेस्टिंग रेंज को स्थापित करने के लिए आपेक्षित विशाल भूमि की उपलब्धता चित्रकूट, महोबा या झांसी जैसे क्षेत्रों में ही सहजता से सुनिश्चित हो पाएगी। तो लाजमी है कि इन क्षेत्रों में बड़े प्रतिष्ठानों के साथ अनेक सहयोगी इकाइयां भी स्थापित होंगी। ऐसे में पूरे बुंदेलखंड क्षेत्र में रोजगार के संकट का खत्म होना लगभग तय है। शिक्षित युवाओं से लेकर कामगार वर्ग तक के लिए संभावनाओं के द्वार खुल जाएंगे और पलायन की विवशता से यह क्षेत्र काफी हद तक मुक्त हो जाएगा।
पलायन के अलावा पानी बुंदेलखण्ड की बड़ी समस्या है। आक्रांताओं को अपने जौहर से पानी पिलाने वाली भूमि की सदियों की प्यास के शमन के लिए केंद्र सरकार के सहयोग से उत्तर प्रदेश सरकार ने ‘हर घर जल’ योजना के माध्यम से दो वर्ष में बुंदेलखंड के प्रत्येक गांव को पाइप के जरिए शुद्ध पेयजल मुहैया कराने का इंतजाम कर दिया है। इसके लिए यहां पाइप लाइन बिछाने हेतु 10 हजार करोड़ रुपये की 500 से अधिक परियोजनाएं स्वीकृत हुई हैं। 03 हजार करोड़ रुपये से अधिक की परियोजनाएं प्रारम्भ हो चुकी हैं। बुंदेलखंड के सात जिलों के 3622 गांवों के 67 लाख आबादी के लिए यह योजना, उनके स्वास्थ्य में भी गुणात्मक परिवर्तन का कारक बनेगी।
ऐसे ही जल संरक्षण व संवर्धन के लिए योगी सरकार द्वारा प्रारम्भ की गई 'खेत-तालाब योजना' के तहत बुन्देलखण्ड क्षेत्र में 8384 से अधिक खेत तालाबों का निर्माण किया जा चुका है। ‘अटल भूजल’ योजना के माध्यम से भूजल स्तर को ऊपर उठाने की कोशिश की जा रही है। यही नहीं क्षेत्र की समृद्ध ‘सौर्य शक्ति’ का उपयोग कर 131 करोड़ रुपए से अधिक के व्यय से सोलर सिंचाई पम्पों की स्थापना द्वारा सिंचाई व्यवस्था को नया आयाम प्रदान किया गया है। आज यहां पानी की एक-एक बूंद का उपयोग करते हुए लाखों किसान ड्रिप स्प्रिंकलर सिंचाई योजना से लाभान्वित हो रहे हैं। बुंदेलखंड क्षेत्र की जल शक्ति बेतवा, केन, यमुना नदियों का पूरा लाभ क्षेत्र की जनता को दिलाने के लिए केंद्र सरकार के द्वारा केन-बेतवा लिंक योजना संचालित की जा रही है।
बुंदेलखंड के लोगों और खेतों की प्यास बुझाने के लिए सदियों बाद कोई हुकूमत इस तरह प्रतिबद्ध दिखाई पड़ रही है। पानी की सहज उपलब्धता हेतु किए जा रहे यह सभी प्रयासों के पूर्णतः फलीभूत होने पर निश्चित रूप से यहां का जीवन बदल जाएगा।
अन्ना जानवरों की समस्या से किसानों को निजात दिलाने के लिए योगी सरकार ने बुंदेलखंड में 1,535 गो-आश्रय स्थल बनवाए हैं, जिसमें 1,54,000 निराश्रित गोवंश को आश्रय प्राप्त हो रहा है। यह आश्रय स्थल अन्ना प्रथा के समाधान के साथ-साथ जैविक कृषि में भी बड़ी उपयोगी सिद्ध हो रहे हैं। सरकार के प्रयासों को देख कर लगता है कि निकट भविष्य में बुंदेलखण्ड जैविक कृषि के बड़े केंद्र के रूप में विकसित होकर पूरे देश के लिए एक माडल बनेगा।
पूरा बुंदेलखण्ड सनातन आस्था के प्रतीकों एवं प्राकृतिक सुरम्यता से परिपूरित है। उ.प्र. सरकार ने यहां आध्यात्मिकता और ऐतिहासिकता की दहलीज तक ‘पर्यटन-पथ’ निर्मित कर इस क्षेत्र को विश्व पर्यटन के नक्शे पर पर शिनाख्त देने का कार्य किया है। ध्यातव्य है कि, अयोध्या, काशी, मथुरा की तर्ज पर चित्रकूट को भी विकसित किया जा रहा है। यह ‘आस्था से आर्थिकी’ दर्शन को चरितार्थ करेगा।
रियायती दरों पर उपलब्ध ऋण से हज़ारों एमएसएमई इकाइयों को प्राप्त प्राण वायु तथा ओडीओपी योजना के माध्यम से मृत पड़े स्थानीय शिल्प एवं हुनर को मिले पुनर्जीवन ने बुन्देलखण्ड में विकास के नए अध्याय के सृजन के साथ स्थानीय गौरव को पुनर्स्थापित किया है। ओडीओपी और एमएसएमई की नव निर्मित इकाइयां इस पथरीली सरजमीन पर रोजगार के सशक्त चित्र उकेर रही हैं।
वही सूखी बंजर जमीन, वही तपता सूरज, वही मानव सम्पदा, वही समस्याएं, वही संसाधन किंतु एक तापस वेषधारी के दृढ़ संकल्प से आज बुंदेलों की ऐतिहासिक सरजमीन, विकास के स्वर्णिम पथ पर गतिशील हो "आत्मनिर्भर उत्तर प्रदेश" का प्रवेश द्वार बन "स्वदेशी-स्वालम्बन-सुशासन" की त्रिवेणी को साकार कर रही है। शायद तभी यूपी बोल रहा है कि ‘योगी हैं तो यकीन है’।
(लेखक प्रणय विक्रम सिंह वरिष्ठ पत्रकार हैं और वह टाइम्स नाउ डिजिटल के अतिथि लेखक हैं।)
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