राजद्रोह कानून केस में सुप्रीम कोर्ट में अहम सुनवाई, जानें क्या है ऐतिहासिक आधार

सेडीशन के मुद्दे पर मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट में अहम सुनवाई होने जा रही है। आठ याचिकाओं के जरिए इस कानून को खत्म करने की अपील की गई है।

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सेडीशन लॉ के संदर्भ में सुप्रीम कोर्ट में अहम सुनवाई 

सुप्रीम कोर्ट के सामने आठ याचिकाएं दायर की गई हैं जिसमें राजद्रोह कानून को खत्म करने की मांग करती हैं। तीन जजों की बेंच सुबह 10:30 बजे सुनवाई शुरू करेगी। केंद्र सरकार ने सोमवार को हलफनामा दायर कर कहा कि वह कानून की समीक्षा करने के लिए तैयार है और सुप्रीम कोर्ट से न्यायिक जांच को तब तक टालने का आग्रह किया जब तक कि सरकार द्वारा उचित मंच के समक्ष पुनर्विचार की कवायद नहीं की जाती।केंद्र सरकार ने कहा कि 1962 की संविधान पीठ केदारनाथ सिंह बनाम बिहार राज्य मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले ने देशद्रोह कानून के सभी पहलुओं की जांच की और इसकी संवैधानिक वैधता को बरकरार रखा। नोट में इस बात का जिक्र है कि फैसले को एक बाध्यकारी मिसाल के रूप में माना जाना चाहिए जो समय की कसौटी पर खरी उतरी है।

 सेडीशन के खिलाफ 8 याचिका

  1. एस.जी. वोम्बाटकेरे बनाम भारत संघ
  2. एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया और एएनआर बनाम यूनियन ऑफ इंडिया और ओआरएस।
  3. अरुण शौरी बनाम भारत संघ
  4. नागरिक स्वतंत्रता और अन्य के लिए जन संघ
  5. महुआ मोइत्रा पूजा धार बनाम भारत संघ
  6. पेट्रीसिया मुखिया बनाम भारत संघ
  7. असम के पत्रकार संघ बनाम भारत संघ
  8.  किशोरचंद्र वांगखेमचा बनाम भारत संघ

क्या है सेडीशन

सेक्शन 124 ए में सेडिशन का जिक्र है। यह संसद का अलग कानून नहीं है। धारा 124A के रूप में यह भारतीय दंड संहिता (IPC) का हिस्सा है जो भारत में आपराधिक कानून के सभी मूल पहलुओं को शामिल करता है। धारा 124ए मूल रूप से 1870 में थॉमस मैकाले द्वारा तैयार की गई थी, जिसे भारत में अंग्रेजी शिक्षा लाने का श्रेय दिया जाता है। लेकिन देशद्रोह शब्द का जिक्र आईपीसी की धारा में नहीं किया गया है।

राजद्रोह, देशद्रोह नहीं
सामान्य तौर पर राजद्रोह को देशद्रोह या राष्ट्र-विरोधी कृत्य के रूप में लिया जाता है। लेकिन कानून में राजद्रोह सरकार विरोधी अधिनियम है। यह देश या देश के खिलाफ अपराध नहीं है। रिपोर्टों के मुताबिक केंद्र सरकार ने यह भी कहा है कि पीएम मोदी ने नागरिक स्वतंत्रता की रक्षा के लिए स्पष्ट और स्पष्ट विचार व्यक्त किए हैं और मानवाधिकारों का सम्मान करते हैं । उनका मानना है कि पुराने औपनिवेशिक कानूनों का भारत में कोई स्थान नहीं है। लेकिन इस विषय में यू-टर्न तब आया जब केंद्र ने शनिवार को सुप्रीम कोर्ट के समक्ष विवादास्पद कानून का बचाव कियाऔर मुख्य न्यायाधीश की तीन-न्यायाधीशों की पीठ को उन याचिकाओं को खारिज करने के लिए कहा, जिन्होंने इसकी संवैधानिक वैधता को चुनौती दी है।

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