नई दिल्ली। भारत और नेपाल के रिश्तों का ऐतिहासिक और सांस्कृतिक आधार रहा है। दोनों देशों के बीच रोटी और बोटी का रिश्ता रहा है और वो रिश्ता आज भी कायम है। लेकिन इधर कुछ समय से दोनों देशों के बीच रिश्ते अपने निचले स्तर पर रहे हैं, हालांकि अब उसमें सुधार दिखाई दे रहा है। अब सवाल यह है कि आखिर ऐसा क्या हुआ कि नेपाल का रुख भारत को लेकर कड़ा हुआ और एक तरह से यह नजर आया कि नेपाल की मौजूदा ओली सरकार का झुकाव चीन की तरफ है। भारत और नेपाल के बीच उतार चढ़ाव के रिश्ते के बारे में यहां तफ्सील से बताएंगे।
भारत- नेपाल संबंधों का रहा है ऐतिहासिक आधार
भारत के साथ नेपाल के संबंधों में खटास से पहले दोनों देश एक धागे से बंधे हुए थे। जब नेपाल में राजतंत्र था तो उस समय भी रिश्ते बहुत अच्छे थे। नेपाल में जब लोकतंत्र को लाने की लड़ाई चल रही थी तो वाम दलों की तरफ से यह नारा बुलंद किया गया कि भारत को राजतंत्र का समर्थक है, यह बात अलग है भारत ने साफ कर दिया था कि नेपाल के आंतरिक मामले में दखल देने का सवाल ही नहीं इस तरह से भारतीय शासन सत्ता ने अपनी नीयत साफ कर दी। लेकिन भौगोलिक तौर बफर स्टेट होने की वजह से चीन की तरफ से यह चाल चली गई।
नेपाल के नए नक्शे से बढ़ा विवाद
भारत और नेपाल के बीच तात्कालिक विवाद के पीछे कालापानी, लिपुलेख और लिंपियाधुरा को नेपाली नक्शे में दिखाने पर बढ़ गया। भारतीय पक्ष ने साफ कर दिया कि ओली सरकार जिस तरह से तनाव को बढ़ा रही है वो सही नहीं है, हालांकि इसके साथ ही भारत की तरफ से संतुलित बयान दिया गया। दूसरी तरफ राष्ट्रवाद के नाम पर ओली सरकार ने अपने कदम को जायज करार दिया और नेपाल के ज्यादातर दलों के बीच और कोई विकल्प था। यह बात अलग है कि नेपाल की कम्यूनिस्ट पार्टी में विवाद बढ़ गया।
प्रचंड- ओली विवाद का असर
नेपाल में भारतीय इलाकों के शामिल किये जाने के बाद जब के पी शर्मा ओली ने कहा कि अयोध्या भी नेपाल में तो विवाद को और हवा मिली। यह बात अलग है कि ओली ने कहा कि उनके बयान को अलग संदर्भ में पेश किया गया था। लेकिन ओली और प्रचंड गुट में तनाव बढ़ने लगा। प्रचंड ने तो यहां तक कह दिया कि उनकी गिरफ्तारी की साजिश रची जा रही है और इस पृष्ठभूमि में जब उन्होंने चीन के खिलाफ बयानबाजी की तो हालात बदल गए।
संबंधों को पटरी पर लाने की कोशिश
भारत ने गंभीरता को समझा और कूटनीतिक तरीके से के पी शर्मा ओली को समझाने की कोशिश की गई कि क्यों चीन के प्रति नेपाल का झुकाव उसके हित के लिए खतरनाक है। ओली सरकार पर इसका कितना असर पड़ा उसकी परख के लिए इंतजार करना होगा। लेकिन जिस तरह के पी शर्मा ओली ने नेपाली संसद को भंग कर दिया उसके बाद उन्हीं के पार्टी के लोगों ने आरोप लगाना शुरू कर दिया कि भारत की गोद में जाकर वो बैठ गए। वजह जो भी हो लेकिन जिस तरह से के पी शर्मा ओली ने भारत के साथ संबंधों को नई ऊंचाई पर ले जाने का ऐलान किया है उसके बाद तस्वीर बदलती नजर आ रही है।
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