तालिबान को लेकर 'खुले दिमाग' से सोचे भारत, 'विधवा विलाप' न करे : यशवंत सिन्हा

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भाषा
Updated Aug 19, 2021 | 18:38 IST

अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में विदेश मंत्री रहे यशवंत सिन्हा ने कहा कि तालिबान के साथ अपने संबंधों पर भारत को 'खुले दिमाग' से सोचना चाहिए, यह 2001 का तालिबान नहीं है।

India should think with 'open mind' about Taliban, should not 'widow's lament': Yashwant Sinha
पूर्व विदेश मंत्री यशवंत सिन्हा 
मुख्य बातें
  • यशवंत सिन्हा ने कहा कि काबुल में अपना दूतावास खोलना चाहिए और राजदूत को वापस भेजना चाहिए।
  • उन्होंने कहा कि 2021 का तालिबान 2001 के तालिबान की तरह नहीं है।
  • अफगानिस्तान के लोग भारत से बहुत प्यार करते हैं।

नई दिल्ली : पूर्व विदेश मंत्री यशवंत सिन्हा ने गुरुवार को कहा कि तालिबान के साथ अपने संबंधों पर भारत को 'खुले दिमाग' से सोचना चाहिए और सुझाव दिया कि इसे काबुल में अपना दूतावास खोलना चाहिए और राजदूत को वापस भेजना चाहिए। सिन्हा ने पीटीआई-भाषा को दिए एक साक्षात्कार में कहा कि अफगानिस्तान के लोग भारत से बहुत प्यार करते हैं जबकि पाकिस्तान उनके बीच लोकप्रिय नहीं है। उन्होंने कहा कि भारत सरकार को यह नहीं सोचना चाहिए कि तालिबान ‘पाकिस्तान की गोद में बैठ जाएगा’ क्योंकि हर देश अपने हित की सोचता है।

उन्होंने कहा कि भारत को बड़ा देश होने के नाते तालिबान के साथ मुद्दों को विश्वास के साथ उठाना चाहिए और ‘विधवा विलाप’ नहीं करना चाहिए कि पाकिस्तान का अफगानिस्तान पर कब्जा हो जाएगा या उसको वहां बढ़त मिलेगी। सिन्हा ने कहा कि सच्चाई यह है कि तालिबान का अफगानिस्तान के अधिकतर हिस्सों पर नियंत्रण है और भारत को ‘इंतजार करो एवं देखो’ की नीति अपनानी चाहिए और उसकी सरकार को मान्यता देने या खारिज करने में जल्दबाजी नहीं करनी चाहिए।

सिन्हा ने कहा कि 2021 का तालिबान 2001 के तालिबान की तरह नहीं है। कुछ अलग प्रतीत होता है। वे परिपक्व बयान दे रहे हैं। हमें उस पर ध्यान देना होगा। उन्होंने कहा कि उन्हें उनके पिछले व्यवहार को देखते हुए खारिज नहीं करना चाहिए। हमें वर्तमान और भविष्य को देखना है।

अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में सिन्हा विदेश मंत्री थे लेकिन वह मोदी सरकार के आलोचक हो गए और उन्होंने भाजपा छोड़ दी थी। वर्तमान में वह तृणमूल कांग्रेस के उपाध्यक्ष हैं। उन्होंने कहा कि तालिबान के काबुल पर कब्जा करने के बाद भारत को दूतावास बंद करने और अपने लोगों को वहां से निकालने के बजाए इंतजार करना चाहिए था।

गौरतलब है कि भारत ने बढ़ते तनाव को देखते हुए मंगलवार को अपने राजदूत रूद्रेंद्र टंडन और काबुल दूतावास के कर्मचारियों को वापस बुला लिया।

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