नई दिल्ली: भारत में लिंग समानता को लेकर समय-समय पर बहस छिड़ते रहती है और भारतीय समाज में हमेशा से ही यह एक प्रमुख मुद्दा रहा है। लेकिन समय के साथ-साथ आज महिलाएं उन बाधाओं को पार करने में कामयाब रही हैं हैं जिनके बारे में कहा जाता था कि ये तो केवल पुरूष ही कर सकते हैं। राजनीति हो या सामाजिक, फिल्म हो या फिर खेल, महिलाओं ने हर जगह अपने कार्य और प्रतिभा का लोहा मनवाया है। विभिन्न क्षेत्रों में महिलाओं के प्रति सम्मान प्रकट करते हुए 8 मार्च को विश्व महिला दिवस मनाया जाता है। यहां हम कुछ ऐसी महिलाओं का जिक्र कर रहे हैं जिन्होंने अपनी काबिलियत के बूते पर देश ही नहीं बल्कि विश्व में अपनी सशक्त छाप छोड़ी।
इंदिरा गांधी
इस नाम से ऐसा कौन सा शख्स होगा जो परिचित नहीं होगा। भारत की प्रथम महिला प्रधानमंत्री रहीं इंदिरा गांधी ने न केवल भारत की राजनीति पर बल्कि वैश्विक पटल पर भी अपनी एक अलग छाप छोड़ी। वर्ष 1966 से 1977 तक लगातार 3 पारी के लिए भारत की प्रधानमंत्री रहीं और इसके बाद चौथी बार 1980 से लेकर 1984 तक वह फिर पीएम पद पर सुशोभित रहीं। इसके अलावा 1959 और 1960 के दौरान इंदिरा चुनाव लड़ीं और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की अध्यक्ष चुनी गयीं। इंदिरा गांधी के शासनकाल में ही 1971 का युद्ध हुआ था और 16 दिसंबर 1971 को पाकिस्तान के टो टुकड़े हो गए और बांग्लादेश नया देश बना। भारत ने इस युद्ध में 93 हजार पाकिस्तानी सैनिकों को घुटने टेकने पर मजबूर कर दिया था।
सावित्री बाई फुले
भारत की वह पहली महिला शिक्षक जिन्होंने न केवल शिक्षा में बदलाव किया बल्कि समाज में भी परिवर्तन ला दिया। महाराष्ट्र में जन्मीं सावित्री बाई फुले ने अपनी पढ़ाई के जरिए सामाजिक चेतना फैलाई। 1831 को महाराष्ट्र के सतारा जिले में पैदा हुई सावित्री बाई की शादी महज 9 साल में हो गई थी। ये उस दौर की बात है जब दलितों के साथ भेदभाव सबसे ज्यादा होता था। कहा जाता है कि एक दिन सावित्री किताब के पन्ने पलट रही थीं तो उनके पिता ने देख लिया और किताब छीनकर बाहर फेंक दी। तब यह माना जाता था कि शिक्षा केवल उच्च जाति के पुरुषों के लिए है। इसके बाद सावित्री बाई ने तय कर लिया कि वो एक दिन जरूर पढ़ेंगी। बाद में उन्होंने न केवल पढ़ाई लिखाई की बल्कि लड़कियों के लिए 18 स्कूल भी खोल दिए। बाल विवाह, सती प्रथा जैसे अंधविश्वास और रूढ़ियों की बेड़ियां तोड़ने के लिए उन्होंने लंबा संघर्ष किया।
मदर टेरेसा
मदर टेरसा रोमन कैथोलिक नन थीं, जिन्होंने 1948 में स्वेच्छा से भारतीय नागरिकता ले ली थी। मदर टेरेसा ने अपना पूरा जीवन लोगों की मदद के लिए खपा दिया था। कोलकाता में मिशनरीज़ ऑफ चैरिटी की स्थापना करने के बाद उन्होंने दशकों तक गरीब, बीमार, अनाथ और बेसहारा लोगों की मदद की। 1917 में मदर टेरेसा को नोबेल शांति पुरस्कार और 1980 में भारत का सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न प्रदान किया गया। 09 सितम्बर 2016 को वेटिकन सिटी में पोप फ्रांसिस ने मदर टेरेसा को संत की उपाधि से विभूषित किया।
फातिमा बीवी
जिस समय देश में महिलाओं की तुलना में पुरुषों का वर्चस्व कायम था उस समय फातिमा बीबी देश की कई महिलाओं के लिए प्रेरणा का स्त्रोत बनीं। जब भी कानूनी जगत में किसी महिला का जिक्र होता है तो न्यायमूर्ति एम. फातिमा बीवी का नाम बड़े गर्व से लिया जाता है। फातिमा बीबी ही वह पहली महिला थी जिन्हें देश के सुप्रीम कोर्ट में जज बनने का गौरव हासिल हुआ था। 30 अप्रैल, 1927 को एक मुस्लिम परिवार में एम. फातिमा बीवी का जन्म हुआ था। केरल में अपनी पढ़ाई करने वाली फातिमा ने 950 में ‘बार काउंसिल ऑफ इंडिया’ की परीक्षा में पहला स्थान हासिल किया था। 1989 को उन्हें सर्वोच्च न्यायालय में न्यायाधीश के रूप में चुना गया।
किरण बेदी
भारत की पहली महिला आईपीएस किरण बेदी का जन्म 1949 को अमृतसर के पंजाब में हुआ था। 1972 में देश की पहली महिला आईपीएस बनने का गौरव प्राप्त करने वाली किरण बेदी को उनके कार्यों की वजह से जाना जाता है। दिल्ली में जब उनकी तैनाती थी तो उन्हें क्रेन बेदी के नाम से भी जाना जाता था। कहा जाता है कि उन्होंने एक बार तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की कार को भी पार्किंग के नियमों का उल्लंघन करने पर क्रेन से उठवा लिया था और बाद में जुर्माना भी लगाया। तिहाड़ जेल में कैदियों के लिए उन्होंने बहुत सुधार किए। इसके अलावा उन्होंने महिला सशक्तिकरण के लिए अपने फाउंडेशन के जरिए आज भी कार्य करती हैं। फिलहाल वह पुदुचेरी की राज्यपाल हैं।
हरिता कौर देओल
सिख परिवार में जन्मी हरिता कौर भारत की पहली महिला पायलट थी जो कि भारतीय वायु सेना में कार्यरत थीं। पंजाब के चंडीगढ़ में जन्मी हरिता कौर ने 1994 में जब पहली बार अकेले वायुसेना का लड़ाकू विमान उड़ाया तो वह ऐसा करने वाली पहली महिला बन गईं। जिस समय उन्होंने उड़ान भरी थी तो उनकी उम्र महज 22 साल की थी।
मैरी कॉम
भारत में जब भी बॉक्सिंग की बात होती है तो मैरीकॉम का नाम खुद-बे-खुद जुबां पर आ जाता है। 6 बार विश्व चैंपियन रह चुकी मैरीकॉम ओलंपिक में कांस्य भी जीत चुकी हैं। जुड़वा बच्चों को जन्म देने के बाद भी उन्होंने अधिकतर मेडल जीते। मैरीकॉम को प्रेरणा स्त्रोत मानने वाली कई महिलाएं आज खेल जगत में देश का परचम लहरा रही हैं। महज 18 साल की उम्र में बॉक्सिंग रिंग में उतरने वाली मैरीकॉम देश को कई राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय मेडल दिला चुकी हैं। उनकी जिदंगी से प्रभावित होकर 2014 में उनके जीवन पर आधारित एक फिल्म बनी थी जिसमें प्रियंका चोपड़ा ने उनका किरदार अदा किया था।
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