1950 में पटेल की बात नेहरू मान लिए होते तो शायद नहीं हुआ होता 1962 में चीन से युद्ध

देश
ललित राय
Updated Oct 31, 2020 | 06:27 IST

1950 में पंडित जवाहर लाल नेहरू को लिखे खत में सरदार बल्लभ भाई पटेल ने उन्हें आगाह किया था कि चीन की विचारधारा से हम इत्तेफाक नहीं रखते हैं, लिहाजा वो कभी भी भारत का दोस्त नहीं हो सकता है।

Jawahar Lal Nehru would have accepted Patel's point in 1950, it would not have happened in 1964 war with China
सरदार बल्लभ भाई पटेल को चीन की नीयत पर रहता था शक 
मुख्य बातें
  • 7 नवंबर 1950 को सरदार बल्लभ भाई पटेल ने जवाहर लाल नेहरू को लिखा था खत
  • खत में पटेल ने चीन की नीयत पर उठाया था सवाल और सतर्क रहने की दी थी सलाह
  • इस खत के कुछ महीने बाद ही सरदार का हो गया था निधन

नई दिल्ली। लौहपुरुष सरदार बल्लभभाई पटेल का जन्म दिन देश धूमधाम से मना रहा है। पटेल का जिक्र आते है कि भारत का एकीकरण याद है कि किस तरह से उन्होंने प्रेम और शक्ति का इस्तेमाल किया। हैदराबाद, जूनागढ़ और ट्रावणकोर की रियासते भारत में स्वतंत्र रहने की मंसूबे पाल रखी थीं लेकिन बल्लभभाई पटेल ने साफ कर दिया था कि अब भारत एक है और हर किसी का हित भारत के हित में जुड़ा हुआ है। इन सबके बीच हमेशा से सवाल उठता रहा है कि क्या देश के पहले पीएम जवाहर लाल नेहरू और पटेल की कार्यशैली में फर्क था। दरअसल कश्मीर और चीन के संबंध में पटेल की राय नेहरू जी से थोड़ी अलग थी। 

1950 में जवाहर लाल नेहरू को पटेल ने लिखा था खत
सरदार बल्लभ भाई पटेल के गुजर जाने के बाद भारत और चीन के बीच 1954 में पंचशील सिद्धांत पर आगे बढ़ने पर सहमति बनी। लेकिन जिस तरह से 1962 में चीन ने दगाबाजी की शायद उसे पटेल बेहतर तरीके से समझते थे। सात नवंबर 1950 को चीन में नया कम्यूनिस्ट शासन कुर्सी पर विराजमान था और उसकी नजह तिब्बत पर थी। उस वक्त सरदार बल्लभ भाई पटेल ने पंडित जवाहर लाल नेहरू को खत लिख कर चेताया। उन्होंने कहा कि जिस तरह से चीन, भारत के साथ शांतिपूर्ण तरह से सीमा विवाद सुलझाने की बात करता है वो तरीका धोखे से भरा है, उन्हें ऐसा लगता है कि चीन के विषय पर हमें सोच समझ कर फैसला करना चाहिए।


खत के मुताबिक चीन से सतर्क रहने की जरूरत

पटेल ने अपने खत में सुझाव दिया था कि जिस तरह से भारत की उत्तरी सीमा पर चीन आक्रामक हो रहा है उसमें हमें और सतर्क रहने के साथ साथ कार्रवाई करनी चाहिए। वो कहते हैं कि यह बात सच है कि हम चीन को अपना दोस्त मानते हैं, लेकिन चीन हमें अपना दोस्त नहीं मानता है। कम्यूनिस्ट विचार ही यह है जो उनके साथ नहीं वो उनके खिलाफ है,ऐसी सूरत में चीन को अपना दोस्त मानना सही नहीं होगा।

चीन की वैचारिक जमीन भारत से अलग
पिछले कुछ महीनों से रसियन कैंप से बाहर जाकर हम चीन को यूएन में एंट्री दिलाने के मुद्दे पर अलग पड़ चुके हैं। इसके साथ ही फारमोसा के मुद्दे पर अमेरिका से किसी तरह का आश्वासन नहीं मिल रहा है। हम लोगों ने चीन के साथ दोस्ती बढ़ाने की हरसंभव कोशिश की है। लेकिन इन सबके बावजूद चीन हम पर भरोसा नहीं कर पा रहा है। चीन हम लोगों को अविश्वास के भाव से देखता है, कभी कभी ऐसा लगता है कि वो जानबूझकर विवाद भी खड़ा करना चाहता है। मुझे ऐसा लगता है कि हमें इससे कहीं और अधिक कुछ करना चाहिए। इस खत के लिखे जाने के कुछ महीने बाद सरदार पटेल का निधन हो गया था।  

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