नई दिल्ली: कांग्रेस के अकबर रोड स्थित पार्टी मुख्यालय पर कन्हैया कुमार का राहुल गांधी के साथ लगा पोस्टर, कई संकेत दे रहा है। साफ है पार्टी को नए चेहरों की तलाश है। पहले कैप्टन अमरिंदर सिंह जैसे मजबूत क्षत्रप को पंजाब के मुख्यमंत्री की कुर्सी से हटाना और अब जेएनयू में देश विरोधी नारे विवाद से चर्चा में आए कन्हैया कुमार और गुजरात के दलित नेता जिग्नेश मेवाणी को पार्टी में शामिल करने का फैसला लेना। साफ है कि पार्टी, नए प्रयोग कर रही है। वह युवा चेहरे के सहारे आगे बढ़ना चाहती है। हालांकि यह प्रयोग पहले भी राहुल गांधी कर चुके हैं। जब ज्योतिरादित्य सिंधिया, जितिन प्रसाद, सुष्मिता देव, सचिन पायलट, मिलिंद देवड़ा को राहुल की युवा ब्रिगेड कहा जाता था। लेकिन यह प्रयोग बहुत कारगर नहीं हो पाया। सिंधिया, सुष्मिता देव, जितिन प्रसाद ने जहां पार्टी छोड़ दी, वहीं पायलट और मिलिंद देवड़ा भी बगावती तेवर दिखा चुके हैं।
कन्हैया, जिग्नेश, सिद्धू पुरानी युवा ब्रिगेड से अलग
नए बदलावों से साफ है कि राहुल गांधी अब, अपनी नई युवा ब्रिगेड तैयार कर रहे हैं। जो कि पुरानी ब्रिगेड से कुछ मामलों में अलग है। ज्योतिरादित्य सिंधिया, सुष्मिता देव, जितिन प्रसाद, सचिन पायलट और मिलिंद देवड़ा, भले ही राहुल गांधी के करीबी रहे लेकिन इनके ऊपर वंशवादी राजनीति का ठप्पा लगा रहा। लेकिन नए नेताओं के साथ ऐसा नहीं है।नवजोत सिंह सिद्धू , जिन्हें कांग्रेस ने अभी हाल ही में 64 साल से गांधी परिवार के करीबी रहे कैप्टन अमरिंदर सिंह के विरोध के बावजूद पंजाब कांग्रेस का अध्यक्ष बनाया और चरणजीत सिंह चन्नी को पंजाब का पहला दलित मु्ख्यमंत्री बनाया। और अब कन्हैया कुमार और जिग्नेश मेवाणी को पार्टी में शामिल किया जा रहा है। इसके पहले पाटीदार आंदोलन से निकले हार्दिक पटेल को भी पार्टी अपने साथ जोड़ चुकी है। इन सभी पर वंशवाद की राजनीति से निकले नेताओं का टैग नहीं है। साथ ही इन्होंने राजनीति में अपने दम पर पहचान बनाई है।
कन्हैया कुमार कांग्रेस के लिए कितने कारगर
कन्हैयार कुमार जवाहर नेहरु विश्वविद्यालय के छात्र संघ अध्यक्ष रह चुके हैं। वह 2016 में जेएनयू में हुई कथित देश विरोधी नारेबाजी के बाद चर्चा में आए। उनकी मोदी विरोधी छवि रही है। वह 2019 का लोकसभा चुनाव सीपीआई के उम्मीदवार के रुप में भी लड़ चुके हैं। उस चुनाव में कन्हैया भाजपा नेता और केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह के खिलाफ मैदान में उतरे थे। लेकिन उन्हें करारी हार (चार लाख से ज्यादा मत से हार) का सामना करना पड़ा था। उसके बाद से ही कन्हैया कुमार के सीपीआई में बेहतर रिश्ते नहीं चल रहे थे। वह इस बात से भी नाराज थे कि महागठबंधन के बावजूद उन्हें राजद का चुनाव में उम्मीद के अनुसार समर्थन नहीं मिला था।
बिहार में जदयू, राजद, भाजपा सभी पार्टियां दूसरी पंक्ति के नेता के आगे कर रही हैं। राजद में कमान तेजस्वी यादव के पास है, तो लोक जनशक्ति पार्टी का नेतृत्व चिराग पासवान के पास है। इसी तरह जद(यू) में भी नए पीढ़ी को तैयार करने की कवायद शुरू हो गई है। लल्लन सिंह, उपेंद्र कुशवाहा को नई जिम्मेदारियां देना इसी का परिणाम है। भाजपा ने भी सुशील मोदी की जगह नई पीढ़ी को आगे लाने के संकेत दे दिए हैं। ऐसे में कांग्रेस के पास कोई युवा नेता नहीं है। उसे कन्हैया कुमार में संभावनाएं दिख रही हैं। बिहार में जितनी जरूरत कांग्रेस को कन्हैया की है, उतनी ही जरूरत कन्हैया को कांग्रेस की है। क्योंकि कन्हैया सीपीआई में रहते हुए प्रदेश अध्यक्ष पद की उम्मीद कर रहे थे, लेकिन वहां उनको निराशा हाथ लगी। लेकिन उनकी यह इच्छा कांग्रेस पूरी कर सकती है।
दलित वोट बैंक साधने की कोशिश
एक समय दलित मतदाता कांग्रेस पार्टी का मजबूत वोट बैंक हुआ करता था। लेकिन 1990 के दशक के बाद से यह वोट बैंक उससे छिटकता गया। पंजाब में चरणजीत सिंह चन्नी को मुख्यमंत्री बनाना और गुजरात से जिग्नेश मेवाणी को पार्टी में शामिल करना, पार्टी की इसी रणनीति का हिस्सा है। जिग्नेश दलित आंदोलन का चेहरा रहे हैं। साल 2016 में ऊना में चार दलितों को कथित गोरक्षकों ने पीटा था। इसके बाद जिग्नेश ने पूरे राज्य में पदयात्रा की थी और दलितों को एकजुट किया था। इसके बाद वे दलितों के नेता बनकर उभरे। कांग्रेस हार्दिक पटेल और जिग्नेश मेवाणी को एक साथ लेकर 2022 में होने वाले विधान सभा चुनावों में भाजपा को चुनौती देने की कोशिश करेगी।
जितिन प्रसाद ,सिंधिया और पार्टी के असंतुष्ट नेताओं को जवाब
जब ज्योतिरादित्य सिंधिया, जितिन प्रसाद और सुष्मिता देव ने एक-एक करके पार्टी का साथ छोड़ा तो कांग्रेस के ही अंदर असंतुष्ट वरिष्ठ नेताओं के गुट ग्रुप-23 के नेता कपिल सिब्बल ने सवाल पूछ था "युवा नेता छोड़कर जा रहे हैं, जबकि हम बुजुर्ग जब पार्टी को मजबूत करने की कोशिश करते हैं तो इसके लिए हमें दोषी ठहराया जाता है।" ऐसे में निश्चित तौर पर कन्हैया कुमार , जिग्नेश मेवाणी की एंट्री, जी-23 नेताओं को भी संदेश देगी। साथ ही पार्टी यह भी जताने की कोशिश करेगी कि पार्टी के साथ युवा और जमीनी नेता जुड़ रहे हैं। हालांकि ये नेता कांग्रेस को कितना फायदा पहुंचा सकेंगे यह तो वक्त ही बताएगा।
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