Vijay Diwas: कारगिल युद्ध के ये 4 हीरो, जिन्होंने बदल दिया लड़ाई का रूख

Vijay Diwas: चार भारतीय जवानों को कारगिल युद्ध में अदम्य साहस के लिए सेना का सर्वोच्च पदक परमवीर चक्र प्रदान किया गया था। इनमें से दो को मरणोपरांत यह पदक मिला था।

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कारगिल युद्ध 1998 में लड़ा गया  |  तस्वीर साभार: BCCL
मुख्य बातें
  • साल 1998 में इस युद्ध की शुरूआत उस समय हुई थी, जब पाकिस्तानी सेना ने छल से भारत की जमीन हथियाने की कोशिश की थी।
  • कारगिल युद्ध के समय भारत के प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी थे।
  • उस समय पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ थे।

Vijay Diwas:कारगिल युद्ध को 24 साल हो चुके हैं। साल 1998 में इस युद्ध की शुरूआत उस समय हुई थी, जब पाकिस्तानी सेना ने जनरल परवेज मुशर्रफ के नेतृत्व में छल से भारत की जमीन हथियाने की कोशिश की थी। और उसके बाद भारतीय सेना के वीर जवानों ने शौर्य और बहादुरी का ऐसा इतिहास रचा जिसका लोहा पूरी दुनिया आज भी मानती है। इस युद्ध में पाकिस्तान को घुटने टेकने पड़े थे। और इसी विजय के उपलक्ष्य में 26 जुलाई को विजय दिवस मनाया जाता है। इस युद्ध में हमारे 500 से ज्यादा जवान शहीद हुए थे। और 1300 से ज्यादा जवान घायल हुए थे। चार भारतीय जवानों को इस युद्ध में अदम्य साहस के लिए सेना का सर्वोच्च पदक परमवीर चक्र प्रदान किया गया था। इनमें से दो को मरणोपरांत यह पदक दिया गया था। अपनी जमीन का एक-एक इंच वापस लेने के लिए भारतीय जवानों ने ऐसी बहादुरी दिखाई कि आज भी उनकी कहानी रोंगटे खड़े कर देती हैं। इन्ही सूरमाओं के बारे में आज हम बता रहे हैं...

कैप्टन विक्रम बत्रा

कारगिल युद्ध के दौरान कैप्टन विक्रम बत्रा की बटालियन द्रास में थी। और कैप्टन बत्रा को प्वाइंट 5140 को फिर से अपने कब्जे में लेने का आदेश मिला। लेकिन ऊंचाई पर बैठे दुश्मन को लगातार हमलों को छकाते हुए बत्रा ने फिर से प्वाइंट 5140 जीत लिया। और उसके बाद उनकी टीम को 17,000 फीट की ऊंचाई पर प्वाइंट 4875 पर कब्जा करने का काम सौंपा गिया। पाकिस्तानी फौज  ऊंचाई पर थीं और बर्फ से ढ़कीं चट्टानें 80 डिग्री पर तिरछी थीं। चुनौती को देखते हुए रात में कैप्टन बत्रा और उनके सिपाहियों ने चढ़ाई शुरू की। बत्रा जो पहले ही 5140 की जीत के बाद दुश्मन खेमे में भी शेरशाह के नाम से मशहूर हो गए थे। साथी अफसर अनुज नायर के साथ हमला किया। एक जूनियर की मदद को आगे आने पर दुश्मनों ने उन पर गोलियां चलाईं, उन्होंने ग्रेनेड फेंककर पांच को मार गिराया लेकिन एक गोली आकर सीधा उनके सीने में लगी। लेकिन शहीद होने से पहले बत्रा और उनकी टीम ने प्वाइंट 4875 चोटी पर तिरंगा फहरा दिया था। उनकी बहादुरी के लिए परम वीर चक्र से सम्मानित किया गया।

कैप्टन मनोज कुमार पांडे

गोरखा राइफल की पहली बटालियन के कैप्टन मनोज पांडे  बटालिक सेक्टर में तैनात थे। जुबार टॉप पर कब्जे के लिए दिखाई गई उनकी बहादुरी आज भी गर्व से सीना चौड़ कर देती है। वह दुश्मन की गोलीबारी के बीच भी आगे बढ़ते रहे। कंधे और पैर में गोली लगने के बावजूद दुश्मन के पहले बंकर में घुसे। सीधी लड़ाई दो दुश्मनों को मार गिराया और पहला बंकर नष्ट किया। कैप्टन मनोज अपने घावों की परवाह किए बिना  एक बंकर से दूसरे बंकर में हमला करते रहे।आखिरी बंकर पर कब्जा करने तक वे बुरी तरह जख्मी हो चुके थे। यही वह शहीद हो गए। कैप्टन पांडे की इस दिलेरी ने अन्य प्लाटून और बटालियन के लिए मजूबत बेस तैयार किया, जिसके बाद ही खालूबार पर कब्जा किया गया। इस अदम्य साहस के लिए उन्हें मरणोपरांत सेना का सर्वोच्च मेडल परम वीर चक्र प्रदान किया गया। 

ग्रेनेडियर योगेंद्र सिंह यादव 

ग्रेनेडियर योगेंद्र सिंह यादव का टाइगर हिल की फतह में सबसे बड़ा योगदान था। और उनके पराक्रम का ही नतीजा था कि योगेंद्र सबसे कम उम्र में ‘परमवीर चक्र’ प्राप्त करने वाले सैनिक हैं। 16,500 फीट ऊंची बर्फ से ढकी, सीधी चढ़ाई वाली चोटी टाइगर हिल पर कब्जा करना आसान नहीं था। टाइगर हिल पर कब्जे के लिए वह आधी ऊंचाई पर ही चढ़े थे कि दुश्मन के बंकर से मशीनगन गोलियां उगलने लगीं और उनके दागे गए राकेट से भारत की इस टुकड़ी का प्लाटून कमांडर तथा उनके दो साथी मारे गए। लेकिन फिर भी योगेंद्र लगातार ऊपर की ओर बढ़ रहे थे कि तभी एक गोली उनके कंधे पर और दो गोलियां जांघ व पेट के पास लगीं लेकिन वह रुके नहीं और बढ़ते ही रहे। और हिम्मत करके वह चढ़ाई पूरी की और दुश्मन के बंकर की ओर रेंगकर गए और एक ग्रेनेड फेंक कर उनके चार सैनिकों को वहीं ढेर कर दिया। अपने घावों की परवाह किए बिना यादव ने दूसरे बंकर की ओर रुख किया और उधर भी ग्रेनेड फेंक दिया। उस निशाने पर भी पाकिस्तान के तीन जवान आए मारे गए। और बाकी जवानों के आने के बाद आमने-सामने की मुठभेड़ शुरू हो गई। और टाइगर हिल फतह हो गया।

राइफलमैन संजय कुमार 

कारगिल युद्ध में संजय कुमार का  प्वाइंट 4875 की फतह में अहम योगदान रहा है। संजय जब अपनी टुकड़ी के साथ हमले के लिए आगे बढ़े तो दुश्मन ओटोमेटिक गन ने जबरदस्त गोलीबारी शुरू कर दी और उनकी टुकड़ी का आगे बढ़ना कठिन हो गया। ऐसे में स्थिति संजय ने एकाएक उस जगह हमला करने की रणनीति अपनाई। थोड़ा रूककर किए गए इस हमले ने दुश्मन को चौका दिया और तीन दुश्मन को मार गिराया और उसी जोश में गोलाबारी करते हुए दूसरे ठिकाने की ओर बढ़े। इस मुठभेड़ में वह खुद भी लहूलुहान हो गए थे ।अचानक हुए हमले  से पाकिस्तानी सैनिक भाग खड़े हुए। संजय की इस बहादुरी को  देखकर उसकी टुकड़ी के दूसरे जवानों ने बेहद फुर्ती से दुश्मन के दूसरे ठिकानों पर धावा बोल दिया। इस बीच संजय बुरी तरह घायल  हो चुके थे लेकिन वह तब तक दुश्मन से जूझते रहे , जब तक वह प्वाइंट फ्लैट टॉप दुश्मन से पूरी तरह खाली नहीं हो गया। और उनकी इस वीरता के लिए उन्हें भी परमवीर चक्र से नवाजा गया।

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