स्पेशल फ्रंटियर फोर्स की चर्चा पूरे विश्व में हो रही है। चीन ने एक बार फिर से भारतीय सीमा को लांघने की कोशिश क्या की स्पेशल फ्रंटियर फोर्स के जवानों ने न सिर्फ उसके मंसूबे पर पानी फेरा बल्कि उसे ढकेल कर पीछे करते हुए एक बार फिर से चीनियों को उनकी औकात दिखा दी। चीते सी चाल, बाज सी नजर वाले स्पेशल फ्रंटियर फोर्स के बारे में यहां जानिए एक-एक बात।
कब बनाई गई स्पेशल फ्रंटियर फोर्स?
14 नवंबर 1962 में इस फोर्स का गठन खासतौर पर चीन से युद्ध के लिए किया गया। इंटेलिजेंस ब्यूरो (IB) के प्रमुख भोला नाथ मुलिक की सलाह पर जवाहरलाल नेहरू ने 1962 के चीन-भारतीय युद्ध में चीनी सेना के खिलाफ बचाव के लिए स्पेशल फ्रंटियर फोर्स के गठन का आदेश दिया।
क्यों दिया गया ये नाम?
स्पेशल फ्रंटियर फोर्स को इसके पहले इंस्पेक्टर जनरल, मेजर जनरल सुजन सिंह उबान के कारण 'इस्टैब्लिशमेंट 22' या सिर्फ '22' के रूप में भी जाना जाता है। सुजन सिंह ने द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान यूरोप में 22वें माउंटेन डिवीजन की कमान संभाली थी।
अब तक कितने ऑपरेशन में लिया हिस्सा?
भारत को हर फ्रंट पर विजय का स्वाद चखाने के लिए इस फोर्स का गठन किया गया। इसके गठन के बाद से ही इसका करिश्मा देखने को मिलने लगा। 1971 के भारत-पाकिस्तान सैन्य संघर्ष के दौरान SFF पाकिस्तान के खिलाफ बेहद सफल था। 1971 की जंग से लेकर 2020 तक स्पेशल फ्रंटियर का दमदार रोल दिखता आ रहा है। 1984 में ऑपरेशन ब्लू स्टार में भी स्पेशल फ्रंटियर फोर्स के कमांडो शामिल थे। सियाचिन की बर्फीली वादियों में दुश्मन को मुंह की खिलाने के लिए भी SSF के कमांडो ही शामिल थे। 1999 में पाकिस्तान को कारगिल के युद्ध में स्पेशल फ्रंटियर फोर्स विजय का हिस्सा रही।
युद्ध में कैसे हथियार से दुश्मन पर करते हैं वार?
SSF के कमांडो की ट्रेनिंग से लेकर हथियार तक सब अलग होते हैं। इन्हें दुश्मन से लोहा लेने के लिए घातक हथियार दिए जाते हैं। इन्हें M4A1 कार्बाइन, FN SCAR असॉल्ट राइफल, सेमी-ऑटोमेटिक स्नाइपर राइफल समेत और भी कई घातक हथियार दिए जाते हैं। आधुनिक तकनीक से लैश इन कमांडो को सारे हथियार दिए जाते हैं ताकि ये दुश्मन के हौसले को पस्त कर सकें।
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